आज के समय में पत्रकारिता को प्रोफेशन के रूप में चुनना उचित है?

अगर आपके मन में बहुत रुपया कमाने का सपना है तो पत्रकारिता में आने से बचना चाहिए। क्योंकि यहाँ आज भी किसी अन्य प्रोफेशन से ज्यादा मेहनत और कम पैसा मिलता है।

इस सवाल का सामना मैं अक्सर करता आ रहा हूँ। जवाब भी देता हूँ। इसलिए मुझे लगा कि इसे सम्यक रूप से दर्ज कर दूँ, जिससे वक्त जरूरत काम आ सके।

मेरी जितनी समझ है उसके हिसाब से इस सवाल का जवाब हाँ या नहीं में नहीं दिया जा सकता। मैं 33 वर्ष से इसी पेशे में हूँ। मुझे कोई शिकायत नहीं है। मैं खुश भी हूँ। मेरी जरूरतें बहुत सीमित हैं।
पर इस पेशे में रुचि रखने वाले युवाओं से कुछ जरूरी तथ्य साझा करना अपना कर्तव्य समझता हूँ।
-अगर आपके मन में बहुत रुपया कमाने का सपना है तो पत्रकारिता में आने से बचना चाहिए। क्योंकि यहाँ आज भी किसी अन्य प्रोफेशन से ज्यादा मेहनत और कम पैसा मिलता है।
हिंदी में पैसों के हिसाब से बहुत कमजोर शुरुआत होती है। अंग्रेजी तो फिर भी अच्छी है।
उदाहरण के लिए-अगर आप हिंदी में एनसीआर में कहीं काम शुरू करते हैं और यहाँ किराए का कमरा लेकर रहना पड़ेगा तो कई बार बजट बिगड़ जाएगा। संभव है कि दोस्तों के साथ साझे के फ्लैट में रहना पड़े।
-यह पेशा धैर्य माँगता है। यहाँ जल्दी से बहुत कुछ तभी हासिल होगा जब कंपनी अपने पिता की हो अन्यथा कुछ भी पाने में समय लगना तय है। रातों रात यहाँ कुछ नहीं होने वाला। आप दोषी किसी को भले ठहरा लें।
-यह शायद अकेला ऐसा पेशा है, जहाँ पहले दिन से आपसे परफेक्शन की उम्मीद की जाती है। मतलब विषय की समझ, लिखने की कला आदि। अब डिजिटल और टीवी के दौर में सिखाने वाला कोई नहीं है। आपको सीधे मोर्चे पर खड़ा होने को तैयार रहना होगा। अखबारों में भी कमोवेश यही स्थिति है।
-बड़ी संख्या में स्टूडेंट्स टीवी एंकर बनने को पत्रकारिता पढ़ने चल देते हैं। जबकि किसी बड़े चैनल में अगर एंकर 10 हैं तो बाकी टीम सौ की है। ऐसे में बिना संगठनात्मक ढाँचा जाने यह फ़ैसला न करें कि आपको पत्रकारिता में क्या काम करना है?
-हिंदी क्षेत्र के युवाओं को अक्सर ऐसा लगता है कि हिंदी अखबार में अंग्रेजी की जरूरत भला क्यों है? ऐसे साथियों से कहना चाहता हूँ कि बिना अंग्रेजी, हिंदी पत्रकारिता के बारे में अब सोचा भी नहीं जाना चाहिए। यह पेशे की जरूरत है।
-अगर आप पत्रकारिता का शौक रखते हैं तो घर की वित्तीय स्थिति भी जरूर देखें। घर में सब ठीक है तो काम आसान हो जाता है अन्यथा मुश्किल तय है। यह बात उन पत्रकार साथियों पर लागू नहीं होती जो पैसे कमाने को कई नाजायज रास्ते अपनाते हुए देखे जाते हैं।
-अंतिम और महत्वपूर्ण बात यह कि भाषा पर पकड़ जरूरी है। फ्लॉलेस कॉपी बनाने की समझ हो।
आरोप जितने भी लगते हों लेकिन अभी भी कंटेंट ही किंग है। यह बनता है खूब पढ़ने, लिखने से।
अब फैसला आप खुद कर लें कि आपको इस पेशे में आना है या नहीं। मैंने मोटी-मोटी बातें आपके सामने रख दी है।

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