मुश्किल में मान्यता समिति के शहंशाह !

लगातार पांच बार से जीत रहे अध्यक्ष पद पर हेमंत तिवारी की मुश्किलें बढ़ीं

सरकारी मकान का किराया 23 लाख रुपये के पार, बिजली का बिल भी लाखों में

पत्रकारों को मिलने वाले रियायती दर पर ले चुके हैं मकान फिर भी रहते हैं सरकारी आवास में

बड़ी खबर -मुक़दमा दर्ज होने पर मान्यता समाप्ति पर समिति ने लगाई मोहर

हेमंत तिवारी, सुरेश बहादुर सिंह, श्रेय शुक्ला, योगेश मिश्रा, शशि नाथ दुबे, अरुण त्रिपाठी आदि की मान्यताओं पर मंडराया खतरा, शपथ पत्र समर्थित शिकायत पर होगी कार्यवाही

One समिति, No इलेक्शन, Only Two लीडर

अभी हाल में ही अपने पसंदीदा चुनाव आयोग के निर्देशन में पांचवीं बार राज्‍य मुख्‍यालय मान्‍यता समिति के अध्‍यक्ष चुने गये हेमंत तिवारी की मुश्किलें बढ़ गई हैं। उन्‍हें राज्‍य संपत्ति विभाग की तरफ से 11 सितंबर को सरकारी आवास खाली करने का नोटिस दिया गया है।

हेमंत तिवारी पर 23 लाख रुपये से ज्‍यादा का सरकारी किराया बाकी है। उन्‍होंने सरकारी योजना के तहत सब्सिडी पर प्‍लॉट भी ले रखा है। नियमानुसार जिनके पास राजधानी लखनऊ में प्‍लॉट या अपना आवास है, उन्‍हें सरकारी आवास नहीं दिया जाता है, लेकिन तिवारी ने इस तथ्य को छुपाकर सरकार से आवास आवंटन कराया था, जिसका लंबे समय से उन्‍होंने किराया भी नहीं चुकाया है।

पत्रकार भूखे मर रहे हैं और उनके नेता शादी की सालगिरह पर आलीशान जश्न मना रहे हैं

श्री तिवारी जी के अतीत के तमाम कारनामों की बिना पर स्‍वतंत्र पत्रकार डा. मोहम्‍मद कामरान ने इसकी शिकायत राज्‍य संपत्ति विभाग में की थी, जिस पर कार्रवाई करते हुए राज्‍य संपत्ति विभाग ने नोटिस जारी किया है।

सरकारी आवास में रहने वाले और आवास की आकांक्षा वाले पत्रकार सावधान हो जाएं। अगर सरकारी आवास लेने के लिए कोई झूठा हलफनामा तो जेल की हवा भी खा सकते हैं। साथ ही नियमों से खिलवाड़ किया तो आवास आवंटन रद हो जाएगा। राज्य सम्पत्ति विभाग ने पत्रकारों के आवास के लिए एक नया फार्म जारी किया है। जिसमें पत्रकारों से ऐसी-ऐसी सूचनाएं मांगी हैं, जिन्हें देने से तमाम दिक्कतें आ सकती हैं।

सरकारी आवासों के दुरुपयोग को लेकर एक जनहित याचिका में सुप्रीम कोर्ट ने मुख्यमंत्रियों को सरकारी बंगले खाली कराने का आदेश दिया था। इसके बाद गैरसरकारी व्यक्तियों को सरकारी आवास खाली कराने के लिए नोटिस दिया गया। जिसके बाद से पत्रकारों में सबसे ज्यादा हडक़म्प मच गया था। अपने सरकारी आवास बचाने के लिए सरकार से पैरवी में जुट गए। इस आदेश के बाद यूपी सरकार राज्य सम्पत्ति विभाग के नियंत्रणाधीन भवनों का आवंटन नियमावली 2016 लाई। जिसमें कई संशोधन किए गए। जिससे पूर्व मुख्यमंत्री के सरकारी आवास को खाली करने न करना पड़े। इस संशोधन से अधिकारी और पत्रकार भी प्रभावित हुए।

 

सरकारी आवासों में रह रहे पत्रकार जब अपने आवास का नवीनीकरण कराने के लिए राज्य सम्पत्ति विभाग गए तो विभाग ने एक प्रोफार्मा भी थमा दिया गया। जिसमें इतने सख्त प्रावधान किए गए हैं। अगर कोई भी लापरवाही की तो जेल जाने के सिवाए कोई विकल्प नहीं बचेगा। नई नियमावली के तहत पत्रकारों से प्रावधानों के तहत यह जानकारी मांगी गई है कि लखनऊ में आपके और परिजनों के नाम से कोई निजी आवास तो नहीं है।
अपने संस्थान से आवास भत्ता कितना प्राप्त किया जा रहा है। लखनऊ के बाहर तबादला होने या फिर रिटायरमेंट होने अथवा आवंटन तिथि पूरी होने पर शासन से एक माह की विशेष अवधि को प्राप्त करने के तुरंत आवास खाली करना होगा। यदि किराया वसूली के लिए भू राजस्व की भांति कार्रवाई की गई तो कोई आपत्ति नहीं होगी। इसके साथ ही इस बात का भी शपथ पत्र देना होगा कि आपने लखनऊ विकास प्राधिकरण और आवास विकास परिषद से कोई आवास अपने और अपने परिजनों के नाम आवंटन तो नहीं कराया है।  सरकारी बैंक से कोई लोन तो नहीं लिया है। इस सबसे अतिरिक्त आपके द्वारा दी सूचनाएं और हलफनामें की जानकारियों के लिए आपके संस्थान के मुखिया सत्यापन करना होगा। गलत सूचना देने के लिए संस्थान के मुखिया को जिम्मेदार ठहराया गया है। गलत सूचना पर संस्थान का मुखिया पर कानूनी कार्रवाई का प्रावधान किया गया है।

 

 

उत्तर प्रदेश राज्य मुख्यालय मान्यता प्राप्त संवाददाता समिति के अध्यक्ष हेमंत तिवारी ने कहा कि राज्य संपत्ति की ओर से बनायी गयी नयी नियमावली के अव्यवहारिक होने से सरकारी मकानों में रहने वाले पत्रकारों को परेशानी हो रही है जिसका निराकरण तत्काल प्रभाव से किया जाए। श्री तिवारी ने  कहा कि राज्य मुख्यालय पर मान्यता प्राप्त पत्रकारों को सरकारी आवास के लिए प्रख्यापित नियमों को शिथिल कर उसे पूर्व की भांति किया जाए जिससे इस अति गंभीर समस्या का निराकरण हो सके। उन्होंने अवगत कराया कि इस संदर्भ में समिति ने पूर्व की सरकार को कई ज्ञापन भी सौंपे थे पर समुचित निराकरण नहीं  हो सका है।

 मुख्यमंत्री ने समिति अध्यक्ष को आश्वासन दिया कि जल्दी ही इस समस्या पर अधिकारियों की बैठक बुला कर हल खोजा जाएगा और पत्रकारों को किसी भी हाल में परेशानी का सामना नहीं करना पड़ेगा। हेमंत तिवारी ने मुख्यमंत्री को सौंपे ज्ञापन में मान्यता समिति के गठन का मामला उठाते हुए मांग की कि राज्य मुख्यालय पर दशकों से चली आ रही प्रेस मान्यता समिति को तत्काल प्रभाव से पुनर्जीवित / गठित किया जाय और इसकी अध्यक्षता भी कोई पत्रकार ही करे। उन्होंने कहा कि कि राज्य मुख्यालय एवं विभिन्न जिलों में कार्यरत पत्रकारों को मान्यता प्रदान करने वाली कमेटी का गठन वर्ष 2008 में आखिरी बार हुआ था जो 2011 तक कार्यरत थी। विगत वर्षों में इस कमेटी का गठन नहीं किया गया जिसके लिए समिति एक दर्जन से ज्यादा मौकों पर लिखित और मौखिक तौर पर प्रदेश शासन से अनुरोध कर चुकी है। इस अवधि में सूचना विभाग के अफसरों की कमेटी ही पत्रकारों को मान्यताएं प्रदान करती रही है।
स्वतंत्र पत्रकार मो. कामरान द्वारा की गई शिकायत…
बकाया किराया भरने संबंधी प्रपत्र…

 

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