चुनावी चक्कलस : ‘मान्यता प्राप्त पत्रकारों’ की एक ‘गैर मान्यता प्राप्त समिति’ का ‘वैश्विक मान्यता प्राप्त’ चुनाव आज

बहरहाल, 'चिंताएं –चुनौतियां –चर्चाएं' असंख्य हैं पर सब कुछ चुनाव के इर्दगिर्द सिमटा है इस उठापटक-आपाधापी से दूर आम पत्रकार अपने असाईनमेंट-डे प्लान-डेस्क वर्क-इंक्रीमेंट-वेतन और परिवार की जरूरतों के चक्र में उलझा हुआ है। खांटी कलमजीवी अपनी नौकरी-रोजीरोटी को लेकर हलकान है-उलझा हुआ है। पर उसके नाम पर होने वाले चुनाव में ‘गैरकलमजीवी’ जीत की आस संजोए हैं। कई ‘गैरकलमजीवियों’ को ‘कलमजीवियों’ के आशीर्वाद व समर्थन की दरकार है।

ज्ञानेन्द्र शुक्ला

राजधानी के ‘मान्यता प्राप्त पत्रकारों’ की एक ‘गैर मान्यता प्राप्त समिति’ का ‘वैश्विक मान्यता प्राप्त’ चुनाव हो रहा है। यहां मान्यता प्राप्त पत्रकार का अभिप्राय किसी पत्रकारीय मापदंड के अनुसार पत्रकार होना कदापि नहीं, ये तो कुछ कागजी औपचारिकताएं होती हैं जिसे पूर्ण करके किसी नेता का विश्वस्त-गनर-ड्राईवर या किसी नौकरशाह के परिजन भी मान्यता प्राप्त पत्रकार बन सकते हैं, कारोबारी-ठेकेदार-दुकानदारों को मान्यता प्राप्त होने की दैवीय सुविधा रहती है। हां कई मौकों पर कुछ असल पत्रकारों को भी मान्यता प्राप्त होने का सुअवसर मिल जाता है। खैर इन मान्यता प्राप्त पत्रकारों के वैश्विक चुनाव की ओर वापस रुख करते हैं। इसे लेकर कुछ ‘छोटी-छोटी’ अति ‘लघु कथाएं’ हैं जिनका आनंद लीजिए,

1—हमारे जानने वाले एक ‘रचनाधर्मी गरिष्ठ पत्रकार’ हैं, उनकी सघनतम समस्या इन दिनों है कि वे तय नहीं कर पा रहे कि किसे वोट दें क्योंकि उनकी शाम की नितांत आवश्यक दवाई का बंदोबस्त एक उच्च पद के लिए अपना ‘सर्वस्व अर्पण तर्पण’ करने को तत्पर कई उम्मीदवार कर दे रहे हैं। ऐसे में वे धर्मसंकट में हैं किसे अपनाए किसे छोड़ें, कई बार सांयकालीन दवा सेवन के बाद देर रात्रि तक वे बैलट पेपर पर सब पर मुहर लगा देने के अतिवादी विचार से भर जा रहे हैं।

2-एक गरिष्ठ सदस्य के मन में एक मौजूदा पदाधिकारी के प्रति विद्वेष चरम पर है लिहाजा वे उन्हें प्रतिस्थापित करने पर आमादा हैं, इसके लिए यूक्रेन-इस्रायल-गाजा से लेकर तमाम शांतिपसंद देशों की तरफ निगाहें लगाए हैं कि कोई मदद कर दे, वे किसी पवित्र क्लब या होटल पहुंचकर सोमरस सेवन करके देर रात तक तख्तापलट का तानाबाना बुनते रहते हैं। चूंकि वे चुनाव प्रक्रिया संचालन से भी जुड़े हैं उनकी निष्पक्षता पर अब तक किसी ने सीधे तौर से उंगली नहीं उठाई है इसलिए उन्हें ‘आशंकायुक्त विश्वास’ है कि वे बचे हुए हैं पर उनकी रात्रिकालीन आध्यत्मिक बैठकों के डिजिटल सुबूत उनके प्रतिपक्षियों के पास मौजूद हैं। उनके मन का एक छोटा सा कोना भविष्य की संभावित लानत मलामत को लेकर शंकित भी है पर सोमरस की शक्ति से वे अल्पकालिक निडरता बनाए हुए हैं।

3-चूंकि इस महान चुनाव में ‘खर्च करने की सीमा’ तय नहीं है इसलिए कुछ समृद्ध प्रत्याशियों ने ‘तिकड़म की हाड़तोड़ मेहनत’ से जोड़तोड़ करके कमाई गई अकूत दौलत से लोगों को उपकृत करने की ‘दयालु रणनीति’ अपनाई है। कलेजे पर पत्थर रखकर अपने खजाने के एक हिस्से का ‘सदाशयी त्याग’ करके शाम की दावतों का इंतजाम करते हैं, आस है कि इससे लाभार्थी समूह तैयार होगा जो वोटों की कृपा बरसा देगा। जाति-धर्म-मजहब के लिहाज से जिन ‘वीर वोटरों’ के पास कुछ अतिरिक्त थोक वोटों का जुगाड़ है उन्हें ‘नगदी’ व ‘स्मार्ट वॉच’ सरीखी योजनाओं का भी लाभ प्राप्त हुआ है। पर इन चुनावी उपहारों से वंचितजनों में बैचेनी है वे क्षुब्ध हैं।

4-चुनावी बिसात पर पीडीए से लेकर जाति व धर्म के दांव बहुत ईमानदारी से चले जा रहे हैं। ‘तिकड़म-षडयंत्र का इंद्रजाल’ रचकर सत्य और भ्रम का फर्क मिटा दिया जा रहा है। हर प्रत्याशी अपने सरनेम वाली जाति के वोट पाने को लेकर भरोसा पाले हुए है हालांकि दिक्कत वहां हैं जहां एक ही जाति के कई प्रतिद्वंदी हैं, ऐसे में गोत्र-गांव-क्षेत्र-कुनबे के अनुसार विभक्त करके भी जीत की संभावनाएं दबोची जा रही हैं। चूंकि बुद्धिजीवियों का चुनाव है इसलिए लोग अपनी जाति-धर्म-मजहब का ‘बुद्धि’ में ध्यान रख करके ही कदम बढ़ा रहे हैं।

5-अब चूंकि चुनावी प्रक्रिया अंतिम पड़ाव पर है इसलिए कई मान्यता प्राप्त गरिष्ठ जनों का हृदय बैठा जा रहा है कि अब चुनाव के बाद उनका ख्याल कौन रखेगा, बीते महीने भर से रंगीन उनकी शामों में जो ‘कालिमा’ छा जाएगी उसका निवारण कैसे हो सकेगा। प्रत्याशियों द्वारा उपलब्ध कराए गए वाहनों पर ठसक से बैठकर शहर भ्रमण करने वाले इस क्षणिक चुनावी सुविधा से ‘वंचित’ होने की सोचकर ही ‘चिंतित’ हो जा रहे हैं, वे विचलित हो जा रहे हैं।

बहरहाल, ‘चिंताएं –चुनौतियां –चर्चाएं’ असंख्य हैं पर सब कुछ चुनाव के इर्दगिर्द सिमटा है इस उठापटक-आपाधापी से दूर आम पत्रकार अपने असाईनमेंट-डे प्लान-डेस्क वर्क-इंक्रीमेंट-वेतन और परिवार की जरूरतों के चक्र में उलझा हुआ है। खांटी कलमजीवी अपनी नौकरी-रोजीरोटी को लेकर हलकान है-उलझा हुआ है। पर उसके नाम पर होने वाले चुनाव में ‘गैरकलमजीवी’ जीत की आस संजोए हैं। कई ‘गैरकलमजीवियों’ को ‘कलमजीवियों’ के आशीर्वाद व समर्थन की दरकार है।

(नोट–उक्त पोस्ट श्रमजीवी खांटी पत्रकारों के आनंद हेतुक है बाकी को लोड लेने की जरूरत नहीं)

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