प्रमुख सचिव सूचना को अवमानना नोटिस, HC ने कहा- आदेश न मानने पर क्यों न हो कार्यवाही
यह आदेश न्यायमूर्ति सलिल कुमार राय ने अमरनाथ चौबे और एक अन्य की अवमानना याचिका की सुनवाई करते हुए दिया है. याचिकाकर्ता का कहना है कि 4दिसंबर 2015को पिता कि हत्या कर दी गई. दोनों भाई इसके गवाह हैं और ट्रायल न शुरू होने के कारण उनका बयान दर्ज नहीं हो सका है.
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने वाराणसी के चौबेपुर थाना क्षेत्र में पिता की हत्या के गवाह बेटों को सुरक्षा मुहैया कराने के आदेश का पालन न करने पर दाखिल अवमानना याचिका पर प्रमुख सचिव गृह संजय प्रसाद को नोटिस जारी की है. जवाब मांगा है कि क्यों न उनके खिलाफ आदेश की अवहेलना करने के लिए अवमानना की कार्यवाही शुरू की जाय. याचिका की अगली सुनवाई 9जनवरी 2025 को होगी.
यह आदेश न्यायमूर्ति सलिल कुमार राय ने अमरनाथ चौबे और एक अन्य की अवमानना याचिका की सुनवाई करते हुए दिया है. याचिकाकर्ता का कहना है कि 4दिसंबर 2015को पिता कि हत्या कर दी गई. दोनों भाई इसके गवाह हैं और ट्रायल न शुरू होने के कारण उनका बयान दर्ज नहीं हो सका है.
इस हत्याकांड में विधायक सुशील सिंह का हाथ होने का आरोप लगाया गया है और सुरक्षा को खतरा बताया गया है. सरकार ने 18 मार्च 2024को याचियों की सुरक्षा वापस ले ली. जिसपर हाईकोर्ट ने दाखिल याचिका पर सरकार से जानकारी मांगी. इस दौरान याचियों की सुरक्षा करने का आदेश दिया. वहीं जिसका पालन न करने पर यह अवमानना याचिका दायर की गई है.
अलोपीबाग क्षेत्र की निवासी सोनिया सिंह उर्फ डाली सिंह और कई अन्य के आवास के ध्वस्तीकरण कार्यवाही का नोटिस प्रयागराज विकास प्राधिकरण ने वापस ले लिया है. प्राधिकरण के अधिवक्ता अवधेश नारायण दुबे ने यह जानकारी इलाहाबाद हाईकोर्ट में न्यायमूर्ति विक्रम डी चौहान की सिंगल बेंच के समक्ष सोनिया सिंह और सात अन्य की याचिका पर सुनवाई के दौरान दी. कोर्ट ने उन्हें ध्वस्तीकरण आदेश वापस लेने का हलफनामा दाखिल करने के लिए समय देते हुए याचिका पर अगली सुनवाई के लिए 21 नवंबर की तारीख लगाई है.
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यूपी के प्रमुख सचिव संजय प्रसाद का यह पत्र शासन-प्रशासन की नाकामी और भ्रष्टाचार छुपाने के लिए है!
लोकतंत्र के चौथे स्तंभ पत्रकारिता संस्थानों की स्वतंत्रता पर कुठाराघात… प्रमुख सचिव संजय प्रसाद का यह पत्र स्पष्ट तौर पर दुर्भावना दिखाने और शासन प्रशासन की कारस्तानियों, नाकामियों, भ्रष्टाचार और कदाचार को छुपाने, दबाने के लिए आगे किया जा रहा है। पत्रकार और पत्रकारिता की आड़ में चोरी, धोखाधड़ी करने वालों की कारगुजारियों के लिए कोई वास्तविक पत्रकार या पत्रकारिता संस्थान जिम्मेवार नहीं हो सकता।
यह प्रकरण पूरी तरह कानून व्यवस्था का है। ठीक उसी तरह, जैसे फर्जी IAS फर्जी PCS फर्जी नेता/विधायक/सांसद/मंत्री फर्जी ATS/STF फर्जी CBI/कोई भी अधिकारी बनकर धोखाधड़ी करे तो उसके लिए जिसके नाम से फर्जी काम किया गया वह जिम्मेदार नहीं होता, ठीक वैसा ही यहां भी है।
कारण यह है कि यदि कोई सुधारात्मक प्रयास का इरादा होता तो प्रमुख समाचार पत्रों, मीडिया संस्थानों और स्वतंत्र पत्रकारों के साथ समाधान के प्रयास होते। विचार होता, उदाहरण स्वरूप कुछ प्रकरण रखे जाते, जिन पर स्पस्ट रूप से चर्चा होती कि आखिर किन समाचारों में कौन से तथ्य अनुचित या बे सिर पैर के हैं।
और उन खबरों के सामने आने के बाद संबंधित व्यक्ति/अधिकारी/ विभागाध्यक्ष ने लिखित रूप में कोई स्पस्टीकरण जारी किया है। यदि नहीं तो सिर्फ गाल बजाने से क्या होगा।
-जब लेखपाल अपराधी है तो क्या लिखा जाएगा।
-जब जिलाधिकारी किसी मामले का कोई संज्ञान नहीं ले रहा तो क्या लिखा जाएगा।
-जब तहसील दिवस और थाना दिवस में अनेकों मामले बार बार आने के बाद भी समाधान की दहलीज पर नहीं पहुंचते तो क्या लिखा जाएगा।
- जब हर थाना भ्रष्टाचार में आकंठ डूबा है तो क्या लिखा जाएगा। क्या व्यवस्था किसी ही योजना, विभाग, इकाई के बारे भ्रस्टाचार मुक्त होने का श्वेत पत्र जारी करने का माद्दा रखती है, यदि हाँ तो जारी करें।
- क्या सूचना एवं जनसंपर्क विभाग दूध का धुला है।
- क्या बड़े अखबारों और चैनलों को भारी विज्ञापन उनके सिर्फ सकारात्मक खबरें चलवाने के लिए ही नहीं दिए जाते।
- क्या सर्वोच्च न्यायालय और उच्चतम न्यायालयों के सभी आदेशों और निर्देशों पर अमल शुरू हो गया है।
- क्या 2012 में लागू हुई नागरिक संहिता पूरी तरह लागू हो गयी।
- क्या गृह विभाग की नागरिक संहिता के मुताबिक फरियादी के आवेदन पर पहले FIR दर्ज किए जाने के कानून का सभी थानों में अमल शुरू हो गया है।
- अगर यह नहीं हुआ है तो कोई भी पत्रकार इन विषयों को सकारात्मक कैसे लिखे, और भला क्यों लिखे ?
- आखिर क्या कारण है कि सभी जनपदों में बेहिसाब कुकुरमुत्तों की तरह उगे अप्रमाणित, बिना किसी मानकों के वसूली कर्म वाले कथित पत्रकारों को जिलाधिकारी और CDO ज्यादा तरजीह देते हैं। जब चापलूसों को संरक्षण स्वयं IAS और IPS सिर्फ महिमामंडन और गुड वर्क छपवाने दिखाने वाले ही चाहिए तो भला स्थिति में सुधार कैसे होगा ?
और हाँ यदि आपको ऐसे प्रकरण जो तथ्यहीन केवल नकारात्मक अवधारणा से किए गए हों तो आपने ऐसी कितनी शिकायतें प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया यानी भारतीय प्रेस परिषद से की हैं, यदि नहीं तो क्यों ?
मेरी मांग है कि इस आदेश को तत्काल वापस लेकर माफी मांगे और भविष्य में लोकतंत्र के चौथे स्तंभ को कमजोर करने की जगह मजबूत करने की दिशा में काम करें।
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प्रमुख सचिव गृह संजय प्रसाद के खिलाफ वारंट जारी, इलाहाबाद हाईकोर्ट ने डीजीपी को दिया आदेश
गुरुवार को यूपी के प्रमुख सचिव गृह संजय प्रसाद के खिलाफ वारंट जारी (Warrant against UP Principal Secretary Home Sanjay Prasad) हो गया है. इलाहाबाद हाईकोर्ट के आदेशों के अनुपालन में लापरवाही के कारण उनके खिलाफ जमानती वारंट जारी किया है.
प्रयागराज। हाईकोर्ट के आदेशों के अनुपालन में लापरवाही बरतने से नाराज कोर्ट नेयूपी के प्रमुख सचिव गृह संजय प्रसाद के खिलाफ जमानती वारंट (Warrant against UP Principal Secretary Home Sanjay Prasad) जारी किया है. कोर्ट ने डीजीपी को आदेश दिया है कि वह स्वयं एक सप्ताह के भीतर इस वारंट को प्रमुख सचिव गृह संजय प्रसाद को शामिल कराएं तथा अगली तय की गई तारीख पर उनकी उपस्थिति अदालत में सुनिश्चित करें. कोर्ट ने डीजीपी से इस संबंध में व्यक्तिगत हलफनामा भी मांगा है. इसके अलावा कोर्ट ने अगली तारीख पर प्रमुख सचिव न्याय व विधि परामर्शी को व्यक्तिगत रूप से तलब किया है. सुरेश चंद रघुवंशी की अवमानना याचिका पर सुनवाई करते हुए यह आदेश न्यायमूर्ति पीयूष अग्रवाल ने दिया.
अवमानना याचिका 10 नवंबर 2021 के हाईकोर्ट के आदेश का अनुपालन कराने के लिए दूसरी बार दाखिल की गई थी. इसमें कहा गया कि हाईकोर्ट ने याची को उसकी प्रशिक्षण अवधि जोड़ते हुए अतिरिक्त इंक्रीमेंट देने का निर्देश दिया था. मगर इस आदेश का आज तक पालन नहीं किया गया. याची ने इससे पहले भी अवमानना याचिका दाखिल की थी जिस पर कोर्ट ने यूपी के प्रमुख सचिव गृह संजय प्रसाद को एक अवसर देते हुए आदेश का अनुपालन करने के लिए कहा था. आदेश का पालन नहीं हुआ, तो दोबारा अवमानना याचिका दाखिल की गई.
इस बार कोर्ट ने प्रमुख सचिव गृह को व्यक्तिगत रूप से तलब किया था मगर प्रमुख सचिव न तो स्वयं आए और ना ही आदेश का पालन किया. उनकी ओर से कोर्ट में हलफनामा दाखिल किया गया मगर उस हलफनामे में आदेश के अनुपालन के संबंध में कोई बात नहीं कही गई थी. प्रमुख सचिव की ओर से व्यक्तिगत उपस्थिति से छूट देने के लिए एक प्रार्थना पत्र भी प्रस्तुत किया मगर उस प्रार्थना पत्र में व्यक्तिगत उपस्थिति से छूट देने का कोई कारण नहीं बताया गया.
कोर्ट ने अपने आदेश (Allahabad High Court Order) में यह भी कहा कि राज्य के अधिकारी जिस तरह का व्यवहार कर रहे हैं वह बेहद अफसोस नाक है. कोर्ट ने प्रमुख सचिव विधि एवं न्याय को भी अगली सुनवाई पर व्यक्तिगत रूप से उपस्थिति उपस्थित रहने का निर्देश देते हुए कहा है कि उनके आदेश की प्रति प्रदेश के कानून मंत्री को आवश्यक कार्यवाही हेतु उपलब्ध कराई जाए.
