हम न मरब मरिहैं संसारा….
सत्तासी साल की उम्र में भी राव साहब हर रोज बिना नागा कुछ न कुछ लिखते रहे हैं, कुछ न कुछ रचते रहे हैं। उनके विचारों, उनकी लेखनी से कोई असहमत हो सकता है लेकिन उसे खारिज नहीं कर सकता है। राव साहब इस उम्र में लखनऊ के इकलौते पत्रकार रहे हैं जो हर रोज लिखते रहे हैं। उनके लेखन में धार रहती रही है, दिशा और दृष्टि भी।
-रतिभान त्रिपाठी
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फ़ना का होश आना ज़िंदगी का दर्द-ए-सर जाना।
अजल क्या है खुमार-ए-बादा-ए-हस्ती उतर जाना।।
पंडित ब्रज नारायन चकबस्त का यह शेर अपनी जगह दुरुस्त है लेकिन इसके बरक्स डॉ. के. विक्रम राव की हस्ती बरकरार है। शब्द ब्रह्म होता है और अक्षर अजर अमर अविनाशी। के. विक्रम राव साहब ने अक्षर-अक्षर शब्द रचे हैं। वह अक्षर वह शब्द कभी मिटेंगे नहीं। भौतिक शरीर तो एक न एक दिन छूटता ही है लेकिन किसी ने जो रचा होता है, वही उसकी कीर्ति बनकर उसे अमरता प्रदान करता है। इसीलिए तो युगदृष्टा कबीर ने कहा है – हम न मरब मरिहैं संसारा…।
सत्तासी साल की उम्र में भी राव साहब हर रोज बिना नागा कुछ न कुछ लिखते रहे हैं, कुछ न कुछ रचते रहे हैं। उनके विचारों, उनकी लेखनी से कोई असहमत हो सकता है लेकिन उसे खारिज नहीं कर सकता है। राव साहब इस उम्र में लखनऊ के इकलौते पत्रकार रहे हैं जो हर रोज लिखते रहे हैं। उनके लेखन में धार रहती रही है, दिशा और दृष्टि भी।
पत्रकारिता उन्हें विरासत में मिली थी। उनके पिता के. रामाराव नेशनल हेराल्ड के संस्थापक संपादक रहे हैं। तेलुगूभाषी दक्षिण भारतीय ब्राह्मण थे राव साहब लेकिन पत्रकार और लेखक के रूप में उन्होंने मुख्य रूप से अंग्रेजी और हिंदी में अपनी कलम का जौहर दिखाया है। इधर हिंदी में वह हर रोज आलेख लिखते थे तो पढ़ने का चाव होता रहा है। वाक्य विन्यास और शब्द प्रयोग की चाशनी में लिपटे उनके आलेख किसी भी पाठक को सम्मोहित करते थे। अंग्रेजी के अनेक शब्द उन्होंने हिंदी में ऐसे अनूदित किए मानो वह मूल शब्द हो। जैसे हम अक्सर बोलचाल में ‘बाॅडी लैंग्वेज’ कहते हैं लेकिन राव साहब ने इसे हिंदी में हमेशा ‘अंग भाषा’ लिखा। उनकी रचनात्मक लेखनी में ऐसे हीअनेक गुण समाहित हैं।
राव साहब पत्रकार थे, पत्रकार नेता थे, लेखक थे और राजनेताओं के बीच अपनी लेखनी की बदौलत लोकप्रिय रहे हैं। उनके परिवार में उनके दो पुत्र एक पुत्री और पत्नी डॉ. सुधा राव हैं। साधन संपन्नता के बावजूद वह अपने को सदा श्रमजीवी मानते रहे हैं और वैसा ही व्यवहार करते रहे हैं। उनके पिता संपादक के साथ साथ सांसद भी रहे हैं। उनके भाई और परिवार के सदस्य खासे ओहदेदार रहे हैं लेकिन राव साहब में ऐसा कोई गुमान नहीं था। वह जूनियर मोस्ट पत्रकारों को भी ‘जी’ लगाकर संबोधित करते थे। ऐसी थी उनकी विनम्रता।
वह आईएफडब्ल्यूजे के राष्ट्रीय अध्यक्ष के रूप में देश विदेश में प्रख्यात रहे हैं। जुझारू, संघर्षशील जैसे शब्द उन बिल्कुल फिट होते हैं। पत्रकार हितों के लिए वह आजीवन लड़ते रहे, उनकी चिंता करते रहे हैं।
उनसे मेरा जुड़ाव तो बीस पच्चीस बरसों से ही रहा है लेकिन लखनऊ की पत्रकारिता में राव साहब लगभग साठ पैंसठ बरस से अपरिहार्य रहे हैं। पिछले वर्षों में मैं जब हेमवती नंदन बहुगुणा नामक ग्रंथ का संपादन कर रहा था तो राव साहब से आलेख मांगा। बहुगुणा जी पर उन्होंने ऐसा आलेख लिखा जो केवल वही लिख सकते थे। राव साहब जब अधिक अस्वस्थ रहने लगे तो मैं सिर्फ टेलीफोन पर उनसे बातें करता था। उम्रदराज होने के बावजूद जिज्ञासा प्रति जिज्ञासा उनमें रची बसी लगती थी। अस्वस्थता की स्थिति में भी उनकी हंसी में ऐसी खनक होती थी मानो उन्हें कुछ हुआ ही न हो। यह उनके आत्मविश्वास और आत्मबल का प्रमाण है।
राव साहब का व्यक्तित्व और व्यवहार ऐसा था कि बड़े-बड़े राजनेता राव साहब से संपर्क रखते हुए अपने को धन्य मानते थे। न जाने कितने प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री और राज्यपाल उनकी लेखनी के प्रशंसक रहे हैं। मौजूदा मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जी भी राव साहब का बहुत सम्मान करते हैं।
राव साहब लंबे समय से अस्वस्थ थे। उन्हें किडनी में समस्या थी। हफ्ते में दो दिन डायलिसिस हो रही थी लेकिन जिजीविषा ऐसी कि काल को मात देते हुए वह न केवल निरंतर लिखते रहे बल्कि कार्यक्रमों में शामिल होते रहे, और तो और कार्यक्रम आयोजित करते रहे हैं। अभी छह महीने पहले पत्रकारों का एक राष्ट्रीय कार्यक्रम वृंदावन में हुआ था तो राव साहब दो दिन लगातार इतने सक्रिय रहे, मानो कोई युवा हो। उनकी सक्रियता का आलम यह था कि अभी परसों ही मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जी से मिलने गए थे। अपनी दो पुस्तकें भी उन्हें भेंट की थीं। उनकी 13 पुस्तकों का विमोचन प्रस्तावित था।
लेकिन ईश्वर की नियति कुछ और ही थी। आज सुबह उनकी तबियत बहुत बिगड़ गई। उनके सुपुत्र के. विश्वदेव राव अस्पताल ले गए लेकिन उन्हें बचाया नहीं जा सका। के. विक्रम राव का जाना भारतीय पत्रकारिता की अपूरणीय क्षति है। पत्रकार समुदाय ही नहीं, उनके लेखों के लाखों पाठक भी उनके निधन से मर्माहत हैं। अभी कल उनका आलेख आया। मैंने प्रतिप्रश्न करते हुए कुछ जिज्ञासाओं को शांत करने का आलेख लिखने की उनसे अपेक्षा की थी। काश! नियति ने उन्हें कुछ समय और दिया होता तो शायद वह उन जिज्ञासाओं का समाधान भी दे पाते। श्रमजीवी पत्रकारों के लिए आजीवन संघर्ष करने वाले महायोद्धा के. विक्रम राव भले ही सशरीर हमारे बीच अब नहीं रहे लेकिन उनकी लेखनी, उनके विचार और उनका व्यक्तित्व हम सबके लिए सदैव प्रेरणादाई और मार्गदर्शक रहेगा। इन्हीं चंद शब्दों के साथ मैं अपने प्रिय लेखक, अग्रज, मनीषी और ऋषितुल्य राव साहब को अश्रुपूरित नेत्रों से श्रद्धांजलि अर्पित करता हूं।
डॉक्टर के विक्रम राव के निधन से पत्रकारिता के एक युग का अंत हो गया 1 मई को प्रेस क्लब में आयोजित कार्यक्रम में आदरणीय राव साहब बीमार होने के बाद आए और मैं काफी देर तक उनके पास में बैठा रहा बातचीत हुई उनका एक अलग अंदाज था पत्रकार हितों के लिए चिंतित भी रहते थे इसका उदाहरण 1 मई को जब वह प्रेस क्लब में आए कार्यक्रम के मुख्य अतिथि आदरणीय चिकित्सा एवं स्वास्थ्य मंत्री मयंकेश्वर सिंह थे उन्होंने मुझसे उनके बारे में जानकारी मांगी जो उपलब्ध कराई गई राव साहब ने माननीय मंत्री जी से अनुरोध किया पत्रकारों की चिकित्सा की व्यवस्था सुनिश्चित कर दें उन्होंने कहा मैं तो एक रेलवे अधिकारी का पति हूं मुझे इलाज की पूरी सुविधाएं मिल रही है लेकिन दूसरे पत्रकारों को ऐसी सुविधा नहीं है आप मुख्यमंत्री जी से पत्रकारों के बेहतर इलाज के लिए बात करें अन्य कई बातें उन्होंने माननीय मंत्री से पत्रकार के हितों को लेकर कही उनकी पूरे देश में शोहरत थी और सबसे अच्छी क्वालिटी जो पत्रकारों में नहीं दिखाई देती वह यह थी की अखबार पढ़ते ही अगर आपकी कोई स्टोरी उनको अच्छी लगी तो तत्काल फोन करके वह बधाई देते थे अपना आशीर्वाद देते थे यह उनका सबसे और अलग अंदाज था जो पत्रकारों के लिए एक प्रोत्साहन और जज्बा पैदा करता था मेरे बीच नहीं रहे लेकिन उनके जज्बे को पत्रकारिता जगत हमेशा याद करेगा मुझे नहीं पता था की 1मई मजदूर दिवस पर आयोजित कार्यक्रम में राव साहब से मेरी अंतिम मुलाकात होगी मैं बड़े दावे के साथ कह सकता हूं कि पूरे देश में अगर उत्तर प्रदेश की धरती से किसी एक पत्रकार को पूरा मीडिया जगत जानता है तो वह थे आदरणीय के विक्रम राव साहेब मैं पिछले काफी दिनों से देश के अलग-अलग राज्यों का भ्रमण किया और जब भी बाहर जाता था राव साहब के बेटे विश्व देव राव से पूछता था की भाई कर्नाटक जा रहा हूं केरला जा रहा हूं तमिलनाडु जा रहा हूं आंध्र प्रदेश जा रहा हूं पश्चिम बंगाल जा रहा हूं और बहुत सारे राज्यों में जहां मैं जाता था उनसे पूछता था किसी वरिष्ठ पत्रकार का मोबाइल नंबर दो और मुझे मोबाइल नंबर मिलते थे और जब भी मैं राव साहब के रेफरेंस फोन करता था कोई भी राज्य हो विशेष कर दक्षिण राज्यों में बहुत सम्मानजनक रिस्पांस मिलता था और जब भी मैं वहां जाता था तो वरिष्ठतम पत्रकार पूरा सम्मानदेते थे जो चाहता था उसमें पूरा सहयोग करते थे डाटा हो या ऐतिहासिक घटनाक्रम हो तथ्यों के साथ उपलब्ध कराते थे यही नहीं कई स्थानों पर उनके साथ यात्रा भी की और हर पत्रकार राव साहब के साथ अपनी मुलाकातों का जिक्र करता कई वरिष्ठतम पत्रकारों के आवास पर भी दक्षिण भारत के राज्यों में गया राव साहब के साथ चित्र भी उनके ड्राइंग रूम में लगे थे राव साहब इस उम्र में इतने सक्रिय की हर दिन उनका पोस्ट तथ्यों के साथ इतिहास के पन्नों से व्हाट्सएप ग्रुप में पढ़ने को मिलता था ऐसे ऐसे तथ्य और अनुभव अपनी लेखनी में साझा करते थे जो आपको पुस्तकों में नहीं मिलेंगे अभी एक दिन पहले ही एक फोटो आई थी जिसमें राव साहब बेटे के साथ आदरणीय मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जी से मिलकर अपनी पुस्तक भेंट किए हैं बहुत सक्रिय थे राव साहब के नेतृत्व में वर्ष 2000 में श्रीलंका के एक हफ्ता यात्रा भी की थी बहुत सुखद और यादगार यात्रा थी आज हमारे बीच नहीं है लेकिन उनके व्यक्तित्व की छाप हमेशा जीवन में बनी रहेगी उनके साथ बिताए समय और समय-समय पर मिलता रहा आशीर्वाद हमेशा याद रहेगा ऐसे महान शख्सियत को प्रभु अपने चरणों में स्थान दे और परिवार को इस दुख की घड़ी में सहनशक्ति की अपार क्षमता दे ओम शांति
राजेंद्र द्विबेदी
इंडियन फेडरेशन ऑफ वर्किंग जर्नलिस्ट्स IFWJ के राष्ट्रीय अध्यक्ष, ट्रेड यूनियन जगत के जुझारू पत्रकार के. विक्रम राव जी के निधन की सूचना अत्यंत कष्टकारी है। वे मीडियाकर्मियों के हितों के लिए जीवन भर संघर्षरत रहे। यूनियन लीडर होने के साथ साथ अंतिम समय तक लेखनी चलाते रहे। यूनियन मूवमेंट को लेकर वे हमेशा चिंतित रहते थे। हम लोगों की यूनियन NUJ के साथ भी उनका सतत संवाद रहता था। उनके निधन से पत्रकारिता जगत और मीडिया में ट्रेड यूनियन मूवमेंट को बड़ी क्षति हुई है,इसे पूरा करना असंभव है। ईश्वर से प्रार्थना है कि राव साहब की आत्मा को सद्गति प्रदान करे। परिवार को इस दुख को सहन करने की शक्ति प्रदान करे। ॐ शांति। विनम्र श्रद्धांजलि।
सर्वेश कुमार सिंह
अध्यक्ष
उत्तर प्रदेश एसोसिएशन ऑफ जर्नलिस्ट्स (उपज)
अतुल मोहन सिंह-
दुःखद समाचार…
देश के प्रतिष्ठित वरिष्ठ पत्रकार एवं इंडियन फेडरेशन ऑफ वर्किंग जर्नलिस्ट्स (IFWJ) के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ. के. विक्रम राव का आज प्रातः लखनऊ के एक निजी अस्पताल में निधन हो गया। वह सांस संबंधी तकलीफ़ के कारण आज ही सुबह अस्पताल में भर्ती कराए गए थे, जहाँ उन्होंने अंतिम सांस ली। डॉ. राव Swadesh के लिए भी नियमित लिखते रहे।
डॉ. राव पत्रकारिता के क्षेत्र में दशकों से सक्रिय थे और उन्होंने श्रमजीवी पत्रकारों की आवाज़ को राष्ट्रीय स्तर पर मजबूती से उठाया। उनका जीवन संघर्षशील पत्रकारिता, सिद्धांतनिष्ठ विचारों और निर्भीक लेखनी का पर्याय रहा। उनके पिताजी श्री के. रामाराव भी देश के ख्यातिलब्ध पत्रकार थे और बेटे श्री के विश्वदेव राव भी पत्रकार हैं।
उनका पार्थिव शरीर 703, पैलेस कोर्ट अपार्टमेंट, निकट कांग्रेस कार्यालय, मॉल एवेन्यू, लखनऊ में अंतिम दर्शनार्थ रखा गया है। पत्रकारिता जगत के लिए यह अपूरणीय क्षति है। ईश्वर से प्रार्थना है कि गोलोकवासी आत्मा को शांति प्रदान करें और शोक संतप्त परिवार को यह वज्राघात सहने की शक्ति दें। ॐ शांति।
नवेद शिकोह-
एशियाई पत्रकारों के नेता के. विक्रम का निधन
देश-दुनिया के पत्रकारों और मीडियाकर्मियों को एकजुट कर उनके हक-हुकूक की लड़ाई की परंपरा को धार देने वाले इंडियन फेडरेशन ऑफ वर्किंग जर्नलिस्ट के राष्ट्रीय अध्यक्ष डाक्टर के विक्रम राव का निधन हो गया। आठ दशक से निरंतर चलने वाला कलम खामोश हो गया। सांस संबंधित समस्या के बाद आज तड़के उन्हें लखनऊ के एक अस्पताल ले जाया गया जहां कलम के इस सिपाही ने ज़िन्दगी से हार मान ली। मीडिया कर्मियों की आवाज विश्वभर में बुलंद करने वाले राव साहब के जाने से IFWJ यतीम हो गया।
कई देशों में फैली पत्रकार यूनियन चलाने के साथ उनका कलम भी निरंतर चलता रहा। तमाम भाषाओं पर मजबूत पकड़ रखने वाले राव साहब ने देश के विख्यात अखबारों में काम किया और दशकों तक स्वतंत्र पत्रकार के रूप में दुनियाभर के पत्र-पत्रिकाओं में उनके लेख छपते रहे। इमरजेंसी के जमाने में जेल जाने वाले पत्रकारों के इस भीष्म पितामाह ने अपने जीवन की नौवी दहाई तक लिखने का सिलसिला जारी रखा। चंद दिन पहले ही श्रमिक दिवस पर वो अपने IFWJ के यूपी प्रेस क्लब के कार्यक्रम में शरीक हुई। दो दिन पहले ही उन्होंने पत्रकारों की जायज जरुरतों की दरख्वास्त के लिए मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से भेंट की।
तीन पीढ़ियों के पत्रकारों से आत्मीयता का रिश्ता रखने वाले डाक्टर राव के पिछले जन्म दिन पर उनके व्यक्तित्व पर लिखा एक लेख उनके बारे में बहुत कुछ बताता है-
के. विक्रम राव मतलब कलम की निरंतरता
ये कोई ताज्जुब की बात नहीं, हर कलमकार लिखता ही है। लेकिन उम्र की दूसरी दहाई से लेकर आठवीं दहाई पार करने के बाद भी निरंतर लिखने वाले को के. विक्रम राव कहते हैं।
पहले सिर्फ देश के प्रतिष्ठित अखबारों में ही पढ़ते थे अब अखबारों के साथ सोशल मीडिया में भी कलम के इस जादूगर के आर्टिकल हर दिन छाए रहते हैं। अमूमन ये होता है कि जो अंग्रेजी की पत्रकारिता से जुड़ा होता है उसकी हिंदी का लेखन फ्लो कमज़ोर होता है, और जो हिंदी का होता है उसके लिए अंग्रेजी में धाराप्रवाह लिखना मुश्किल होता है। राव साहब के क़लम की ये भी खासियत है कि अंग्रेजी और हिंदी में इनका समान अधिकार है। इसके अलावा तेलगु और दुनिया की तमाम जबानो के ये धनी हैं।
IFWJ के राष्ट्रीय अध्यक्ष होने के नाते दुनियाभर की पत्रकार बिरादरी से इनका सीधा रिश्ता है। श्रमजीवी पत्रकारों/अखबार कर्मियों की लड़ाई लड़ने वाले के.विक्रम राव ने इमरजेंसी के दौर में हुकूमत की तानाशाही से भी दो-दो हाथ किए थे। ये जेल भी गए। अतीत के इस सुनहरे साहस को याद कर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने इन्हें फ्रीडम फाइटर पत्रकार का सम्मान भी दिया था।
पत्रकारिता की यूनिवर्सिटी,..जानकारियों का खजाना..अतीत के किस्सों के हीरे-जवाहरातों से सजा महल.. भाषाओं का समुंदर.. विक्रम राव की तमाम विशेषताओं में मुझे प्रभावित करने वाली बात हमेशा यादगार रहेगी। बात उस जमाने की है जब मोबाइल फोन तो नहीं आया तो लेकिन लैंडलाइन फोन आम हो चला था। छोटे-बड़े किसी भी अखबार में किसी युवा पत्रकार की बायलाइन खबर छपती थी तो वो सुबह-सुबह नवोदित पत्रकार को फोन करके उसका हौसला बढ़ाते थे। मेरे पास भी उनके खूब फोन आते थे। खबर की तारीफ में उनका फोन आना हमे अवार्ड मिलना जैसा होता था।
इससे अंदाजा लगाइए कि वो शहर का हर अखबार पढ़ते थे और पत्रकारिता की नई पौध को वो हर सुबह प्रोत्साहन का पानी अवश्य डालते थे।
खूबियों की खिचड़ी में आलोचना का एक चुटकी नमक भी ना हो तो जायकेदार खिचड़ी का मज़ा बदमज़ा हो जाता है। लोग कहते हैं कि इमरजेंसी के बाद राव साहब के लेखों में सत्ता पर सवाल उठाने का माद्दा नदारद दिखना पाठकों को निराश करता है।
पत्रकारिता के महागुरु के विक्रम राव सर का आज जन्मदिन है। बधाई-मंगलकामनाएं। आप दीर्घायु हों और लम्बे तजुर्बों की रोशनायी वाला आपका क़लम ऐसे ही युवा बना रहे।
