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डॉ. के. विक्रम राव का निधन, भारतीय पत्रकारिता जगत ने आज अपना एक स्तंभ खो दिया

भारतीय पत्रकारिता जगत ने आज अपना एक स्तंभ खो दिया। देश के प्रतिष्ठित वरिष्ठ पत्रकार एवं इंडियन फेडरेशन ऑफ वर्किंग जर्नलिस्ट्स (IFWJ) के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ. के.विक्रम राव का आज प्रातः लखनऊ के एक निजी अस्पताल में निधन हो गया। वे साँस संबंधी तकलीफ़ के कारण आज सुबह अस्पताल में भर्ती कराए गए थे, जहाँ उन्होंने अंतिम सांस ली। डॉ. राव पत्रकारिता के क्षेत्र में दशकों से सक्रिय थे और उन्होंने श्रमजीवी पत्रकारों की आवाज़ को राष्ट्रीय स्तर पर मजबूती से उठाया। उनका जीवन संघर्षशील पत्रकारिता, सिद्धांतनिष्ठ विचारों और निर्भीक लेखनी का पर्याय रहा। उनका पार्थिव शरीर 703, पैलेस कोर्ट अपार्टमेंट, निकट कांग्रेस कार्यालय, मॉल एवेन्यू, लखनऊ में अंतिम दर्शनार्थ रखा गया है। पत्रकारिता जगत के लिए यह अपूरणीय क्षति है। ईश्वर दिवंगत आत्मा को शांति प्रदान करें और शोक संतप्त परिवार को यह वज्राघात सहने की शक्ति दे।

शोक संदेश

यह बताते हुए अत्यंत दुःख हो रहा है कि मेरे पूज्य पिताजी, डॉ. के. विक्रम राव, वरिष्ठ पत्रकार एवं इंडियन फेडरेशन ऑफ वर्किंग जर्नलिस्ट्स (IFWJ) के राष्ट्रीय अध्यक्ष, का आज प्रातः लखनऊ के एक निजी अस्पताल में निधन हो गया। वे सांस संबंधी समस्या से पीड़ित थे और उपचार के दौरान उन्होंने अंतिम साँस ली।

 

उनका पार्थिव शरीर अंतिम दर्शन के लिए 703, पैलेस कोर्ट अपार्टमेंट, निकट कांग्रेस कार्यालय, मॉल एवेन्यू, लखनऊ में रखा गया है।

 

मेरे बड़े भाई सुदेव राव मुंबई से लखनऊ के रास्ते में है। उनके लखनऊ पहुँचने के बाद राव साहब के अंतिम संस्कार संबंधी सूचना पृथक रूप से प्रेषित की जाएगी।

 

के.विश्वदेव राव

 

(पत्रकार)
9415010300


देश के प्रख्यात व इंडियन फेडरेशन ऑफ वर्किंग जर्नलिस्ट्स (आईएफडब्ल्युजे) के राष्ट्रीय अध्यक्ष, पत्रकारिता क्षेत्र में ट्रेड यूनियन के जुझारू पत्रकार डा. के. विक्रम राव जी का निधन हो गया है यह सूचना बहुत पीड़ादायक है। उनके निधन पर उप्र मान्यता प्राप्त संवाददाता समिति शोक प्रकट करती है।

डा. राव पत्रकार हितों के लिए आजीवन जीवन संघर्ष करते रहे। पत्रकार यूनियन नेता होने के साथ-साथ अनवरत उनकी लेखनी चलती रही। देश के भीतर पत्रकारिता क्षेत्र में काम कर रही यूनियनों को लेकर वह लगभग सभी से चर्चा भी करते और आपसी संवाद भी रखते थे। उत्तर प्रदेश मान्यता प्राप्त संवाददाता समिति की गतिविधियों पर वह नजर बनाए रखते और बीच-बीच में जानकारी भी प्राप्त करते थे। ऐसे में पत्रकारिता और यूनियन मूवमेण्ट क्षेत्र में अपूर्णीय क्षति हुई है। डा. राव साहब के न रहने है उस रिक्त की पूर्ति कर पाना कठिन होगा।
उत्तर प्रदेश मान्यता प्राप्त संवाददाता समिति भगवान से प्रार्थना करती है कि उनकी पुण्यात्मा को अपने श्रीचरणों में सुखद स्थान दें।

भारत सिंह
सचिव

देश के प्रतिष्ठित वरिष्ठ पत्रकार एवं इंडियन फेडरेशन ऑफ वर्किंग जर्नलिस्ट्स (IFWJ) के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ. के.विक्रम राव का आज प्रातः लखनऊ के एक निजी अस्पताल में निधन हो गया। वे साँस संबंधी तकलीफ़ के कारण आज सुबह अस्पताल में भर्ती कराए गए थे, जहाँ उन्होंने अंतिम सांस ली।

डॉ. राव पत्रकारिता के क्षेत्र में दशकों से सक्रिय थे और उन्होंने श्रमजीवी पत्रकारों की आवाज़ को राष्ट्रीय स्तर पर मजबूती से उठाया। उनका जीवन संघर्षशील पत्रकारिता, सिद्धांतनिष्ठ विचारों और निर्भीक लेखनी का पर्याय रहा।

*उनका पार्थिव शरीर 703, पैलेस कोर्ट अपार्टमेंट, निकट कांग्रेस कार्यालय, मॉल एवेन्यू, लखनऊ में अंतिम दर्शनार्थ रखा गया है।* पत्रकारिता जगत के लिए यह अपूरणीय क्षति है।

ईश्वर दिवंगत आत्मा को शांति प्रदान करें और शोक संतप्त परिवार को यह वज्राघात सहने की शक्ति दे।

श्यामल कुमार त्रिपाठी 

संपादक भड़ास4जर्नलिस्ट 

विख्यात पत्रकार एवं IFWJU के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉक्टर के वक्रम राव के निधन की खबर समूचे पत्रकारिता जगत के लिए एक पक्षाघात जैसा है। देश की पत्रकारिता के लिए अपूरणीय क्षतिहै। पत्रकार और पत्रकारिता के लिए उनका जीवन पर्यंत संघर्ष उनकी जीवंतता का एक सटीक उदाहरण है। जो कभी विस्मृत होने वाला नहीं है। वह पत्रकारिता के इतिहास पुरुष है। मैं उन्हें भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित करता हूं और ईश्वर से प्रार्थना कि उन्हें अपने श्री चरणों में स्थान दें और उनके परिवार को यह असहनीय पीड़ा सहन करने का साहस प्रदान करें।

प्रेम शंकर अवस्थी वरिष्ठ पत्रकार


वरिष्ठ पत्रकार एवं इंडियन फेडरेशन ऑफ वर्किंग जर्नलिस्ट्स के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ. के. विक्रम राव जी के निधन का दुःखद समाचार पत्रकारिता जगत के साथ मेरे लिए भी अपूर्णीय क्षति है।ईश्वर पुण्य आत्मा को अपने श्रीचरणों में स्थान दे।ईश्वर शोक संतप्त परिजनों को इस दुःख को सहने की शक्ति दे।
विनम्र श्रद्धांजलि

हेमंत मैथिल
एसोसिएट एडिटर
sangbadpratidin.in


श्रद्धांजलि: के. विक्रम राव सर— कलम के सच्चे प्रहरी

वरिष्ठ पत्रकार, विचारक और श्रमजीवी पत्रकार संघ के मजबूत स्तंभ के. विक्रम राव का निधन पत्रकारिता जगत के लिए एक अपूरणीय क्षति है। वे न केवल एक निर्भीक और स्पष्टवादिता से भरपूर लेखक थे, बल्कि एक ऐसे व्यक्तित्व थे जिन्होंने कलम को सामाजिक चेतना का माध्यम बनाया।

उनकी लेखनी में तथ्य, दृष्टि और संवेदना का अद्भुत संतुलन देखने को मिलता था। चाहे वह राजनीतिक विहंगम दृष्टि हो या सामाजिक विसंगतियों पर गहरी चोट—राव साहब ने हमेशा जनता के पक्ष में, सत्ता से सवाल करने की परंपरा को जीवित रखा। उनका हर लेख विचारों की लौ जलाने वाला और पाठकों को चिंतन के लिए विवश कर देने वाला होता था।

उनका जाना केवल एक पत्रकार का जाना नहीं है, बल्कि उस जुझारूपन, उस ईमानदारी और उस निर्भीकता का अवसान है, जो आज के समय में और भी दुर्लभ होती जा रही है। वे आज भले ही शारीरिक रूप से हमारे बीच नहीं हैं, परंतु उनकी लेखनी, उनके विचार और उनके शब्दों की शक्ति हमें सदैव मार्गदर्शन देती रहेगी।

उनकी स्मृति को नमन।

शाश्वत तिवारी


देश-दुनिया के पत्रकारों और मीडियाकर्मियों को एकजुट कर उनके हक-हुकूक की लड़ाई की परंपरा को धार देने वाले इंडियन फेडरेशन ऑफ वर्किंग जर्नलिस्ट के राष्ट्रीय अध्यक्ष डाक्टर के विक्रम राव का निधन हो गया। आठ दशक से निरंतर चलने वाला कलम खामोश हो गया। सांस संबंधित समस्या के बाद आज तड़के उन्हें लखनऊ के एक अस्पताल ले जाया गया जहां कलम के इस सिपाही ने ज़िन्दगी से हार मान ली। मीडिया कर्मियों की आवाज विश्वभर में बुलंद करने वाले राव साहब के जाने से IFWJ यतीम हो गया। कई देशों में फैली पत्रकार यूनियन चलाने के साथ उनका कलम भी निरंतर चलता रहा।

तमाम भाषाओं पर मजबूत पकड़ रखने वाले राव साहब ने देश के विख्यात अखबारों में काम किया और दशकों तक स्वतंत्र पत्रकार के रूप में दुनियाभर के पत्र-पत्रिकाओं में उनके लेख छपते रहे। इमरजेंसी के जमाने में जेल जाने वाले पत्रकारों के इस भीष्म पितामाह ने अपने जीवन की नौवी दहाई तक लिखने का सिलसिला जारी रखा। चंद दिन पहले ही श्रमिक दिवस पर वो अपने IFWJ के यूपी प्रेस क्लब के कार्यक्रम में शरीक हुई। दो दिन पहले ही उन्होंने पत्रकारों की जायज जरुरतों की दरख्वास्त के लिए मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से भेंट की।

तीन पीढ़ियों के पत्रकारों से आत्मीयता का रिश्ता रखने वाले डाक्टर राव के पिछले जन्म दिन पर उनके व्यक्तित्व पर लिखा एक लेख उनके बारे में बहुत कुछ बताता है- श्रद्धांजलि


आसमान से चमकेगा भारतीय पत्रकारिता जगत का जगमगाता सितारा

शेखर पंडित

पत्रकारिता जगत को रोशन करके एक नए युग का प्रारंभ करने वाले के विक्रम राव का निधन हम सबके लिए बेहद कष्टकारी है, डॉ. राव पत्रकारिता के क्षेत्र में दशकों से सक्रिय थे और उन्होंने श्रमजीवी पत्रकारों की आवाज़ को राष्ट्रीय स्तर पर मजबूती से उठाया। उनका जीवन संघर्षशील पत्रकारिता, सिद्धांतनिष्ठ विचारों और निर्भीक लेखनी का पर्याय रहा। इंडियन फेडरेशन ऑफ वर्किंग जर्नलिस्ट IFWJ के राष्ट्रीय अध्यक्ष होने के साथ जहां एक तरफ उन्होंने विश्व भर के पत्रकारों को एकजुट करके संगठनात्मक ढांचे में लाने का प्रयास किया गया तो वही उत्तर प्रदेश के हर छोटे बड़े पत्रकारों को अपना सानिध्य और मार्गदर्शन देकर पत्रकारिता की सही दिशा और दशा दिखाने का हमेशा प्रयास किया गया। जिस तरह एक सिपाही जंग के मैदान में ही वीरगति प्राप्त करना चाहता है ठीक उसी तरह के विक्रम राव का कलम कभी रुका नहीं और अपनी लंबी बीमारी के दौरान भी प्रतिदिन उनके द्वारा स्वर्णिम अक्षरों के लेख लिखे जाते रहे और समस्त पत्रकार बिरादरी के लिए अत्यंत गर्व की बात है की जीवन चक्र समाप्ति से पहले भी उनके लिखे को समाचार पत्रों में प्रकाशित किया गया भारत-पाकिस्तान के युद्ध को जिस तरह से उन्होंने अपनी कलम के माध्यम से अनोखा दृष्टांत दिखाते हुए लिखा वह आने वाली मीडिया के लिए यादगार बन गया है
कलम न रूकती है और न ही टूटती है , के विक्रम राव का परिवार इसका जीवंत उदाहरण है जहां पीढ़ी दर पीढ़ी कलम अपना अस्तित्व और अपना रंग दिखाती रहती है, भले ही आज पत्रकारिता जगत के एक मजबूत स्तंभ के जीवन चक्र का अंत हुआ है लेकिन उनकी लेखनी उनके जीवन के अमरत्व को दर्शाती रहेगी और जिस तरह अपने पिताजी के जीवन चक्र समाप्ति के उपरांत के विक्रम राव का नाम पत्रकारिता जगत में चमकता रहेगा वैसे ही उनकी अगली पीढ़ी अपने पिता से मिले गुणों से समाज को जाग्रत करने का काम करते रहेंगे। के विक्रम राव के अंतिम समय मे सेवा करते रहे उनके पुत्र के विश्वदेव राव का नाम भी भविष्य में अपने पिता द्वारा लिखी पुस्तकों और उनके कार्यकलापो को आगे बढ़ाने में दिखता रहेगा।
विश्व के पत्रकारों को एकजुटता और संगठन ढांचे में ढालने का कार्य के विक्रम राव द्वारा IFWJ संगठन से किया गया और उनके पुत्र द्वारा बचपन से ही अपने पिता के साथ रहकर पत्रकारिता के हर दांव में दक्षता हासिल की गयी है और आने वाले भविष्य में के विक्रम राव की कलम भी अपने पिता के नामों को उज्जवल करती हुई चलती रहेगी और के विक्रम राव द्वारा लिखी 13 पुस्तको का विमोचन पूरी भव्यता से कराया जायेगा क्योंकि ये पुस्तकें नहीं बल्कि पत्रकारिता के लिए धर्मग्रंथ होगा जिसको के विक्रम राव ने अपने जीवन काल में कलमबद्ध किया गया है। 💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏
शेखर पंडित
9415922005
सदस्य राज्य मुख्यालय मान्यता प्राप्त समिति


के.विक्रम राव मतलब कलम की निरंतरता

Dr. K. Vikram Raoये कोई ताज्जुब की बात नहीं, हर कलमकार लिखता ही है। लेकिन उम्र की दूसरी दहाई से लेकर आठवीं दहाई पार करने के बाद भी निरंतर लिखने वाले को के.विक्रम राव कहते हैं। ये शख्सियत कोई मोजिज़ा, चमत्कार या सरस्वती की विशेष कृपा वाली लगती है। मुझे नहीं मालूम कि कोई और भी ऐसा लिखाड़ सहाफी है जो तकरीबन पचास बरस से निरंतर लिख रहा हो। हमने तो करीब तीस साल से ग़ौर किया है लेकिन राव साहब के हमउम्र बुजुर्ग पत्रकार और पाठक बताते हैं कि पचास सालों में शायद पचास दिन भी ऐसे नहीं गुजरे जब उनके क़लम ने विश्राम किया हो।

पहले सिर्फ देश के प्रतिष्ठित अखबारों में ही पढ़ते थे अब अखबारों के साथ सोशल मीडिया में भी कलम के इस जादूगर के आर्टिकल हर दिन छाए रहते हैं। अमूमन ये होता है कि जो अंग्रेजी की पत्रकारिता से जुड़ा होता है उसकी हिंदी का लेखन फ्लो कमज़ोर होता है, और जो हिंदी का होता है उसके लिए अंग्रेजी में धाराप्रवाह लिखना मुश्किल होता है। राव साहब के क़लम की ये भी खासियत है कि अंग्रेजी और हिंदी में इनका समान अधिकार है। इसके अलावा तेलगु और दुनिया की तमाम जबानो के ये धनी हैं।

IFWJ के राष्ट्रीय अध्यक्ष होने के नाते दुनियाभर की पत्रकार बिरादरी से इनका सीधा रिश्ता है। श्रमजीवी पत्रकारों/अखबार कर्मियों की लड़ाई लड़ने वाले के.विक्रम राव ने इमरजेंसी के दौर में हुकूमत की तानाशाही से भी दो-दो हाथ किए थे। ये जेल भी गए। अतीत के इस सुनहरे साहस को याद कर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने इन्हें फ्रीडम फाइटर पत्रकार का सम्मान भी दिया था।

पत्रकारिता की यूनिवर्सिटी,..जानकारियों का खजाना..अतीत के किस्सों के हीरे-जवाहरातों से सजा महल.. भाषाओं का समुंदर.. विक्रम राव की तमाम विशेषताओं में मुझे प्रभावित करने वाली बात हमेशा यादगार रहेगी। बात उस जमाने की है जब मोबाइल फोन तो नहीं आया तो लेकिन लैंडलाइन फोन आम हो चला था। छोटे-बड़े किसी भी अखबार में किसी युवा पत्रकार की बायलाइन खबर छपती थी तो वो सुबह-सुबह नवोदित पत्रकार को फोन करके उसका हौसला बढ़ाते थे। मेरे पास भी उनके खूब फोन आते थे। खबर की तारीफ में उनका फोन आना हमे अवार्ड मिलना जैसा होता था।

इससे अंदाजा लगाइए कि वो शहर का हर अखबार पढ़ते थे और पत्रकारिता की नई पौध को वो हर सुबह प्रोत्साहन का पानी अवश्य डालते थे।खूबियों की खिचड़ी में आलोचना का एक चुटकी नमक भी ना हो तो जायकेदार खिचड़ी का मज़ा बदमज़ा हो जाता है। लोग कहते हैं कि इमरजेंसी के बाद राव साहब के लेखों में सत्ता पर सवाल उठाने का माद्दा नदारद दिखना पाठकों को निराश करता है।पत्रकारिता के महागुरु के विक्रम राव सर का आज जन्मदिन है।बधाई-मंगलकामनाएं।आप दीर्घायु हों और लम्बे तजुर्बों की रोशनायी वाला आपका क़लम ऐसे ही युवा बना रहे।


मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव

मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादवने वरिष्ठ पत्रकार एवं पत्रकार संगठन के पदाधिकारी डॉ. के. विक्रम राव के निधन पर दु:ख व्यक्त किया है। मुख्यमंत्री डॉ. यादव ने कहा कि दु:ख की इस घड़ी में मेरी संवेदनाएं शोकाकुल परिजन के साथ हैं।

मुख्यमंत्री डॉ. यादव ने बाबा महाकाल से डॉ. राव की आत्मा की शांति और उनके शोकाकुल परिजन को दु:ख की इस घड़ी में संबल प्रदान करने की प्रार्थना की है।

मौत से कुछ घंटे पहले फेसबुक पर आर्टकिल लिखा था-

रामभक्त सुन्नी ने पाकिस्तान को हराया!

के. विक्रम राव

इस्लामी पाकिस्तान की जबरदस्त शिकस्त के प्रमुख कारणों में भारतीय सेना से कहीं अधिक प्रभावशाली भूमिका एक तमिलभाषी, गीतापाठी, रामभक्त और वीणावादक अब्दुल कलाम की रही। भारत के ग्यारहवें राष्ट्रपति (2002) के निर्वाचन में सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी, विपक्ष की कांग्रेस, समाजवादी पार्टी तथा बहुजन समाज पार्टी ने आपसी मतभेदों को भुलाकर सुदूर दक्षिण के इस गैर-राजनीतिक विज्ञानशास्त्री डॉ. अबुल पाकिर जैनुलआबिदीन अब्दुल कलाम को अपना साझा उम्मीदवार बनाया था।

गणतंत्रीय भारत के तीसरे मुस्लिम राष्ट्रपति के रूप में कलाम का नाम आगे आते ही दोनों प्रमुख कम्युनिस्ट पार्टियों ने उनका जमकर विरोध किया और कानपुर निवासी 90 वर्षीय कैप्टन लक्ष्मी सहगल को अपना प्रत्याशी घोषित किया। मतदान का परिणाम एकतरफा था, पर वामपंथियों ने अपनी द्वंद्वात्मक शैली में कलाम के विरुद्ध कई तर्क प्रस्तुत किए। यद्यपि वामपंथी क्रांति के हरावल दस्ते माने जाते हैं, इस बार वे आत्मघाती रास्ते पर चल पड़े।

“मिसाइल मैन” के नाम से प्रसिद्ध अब्दुल कलाम द्वारा विकसित प्रक्षेपास्त्रों ने शायद ही पाकिस्तान का कोई बड़ा शहर छोड़ा हो, जिस पर हमला न किया गया हो। पाकिस्तान को यह घमंड था कि मिसाइल क्षमता में वह भारत से अधिक शक्तिशाली है, इसी कारण उसने अपने मिसाइलों के नाम भारत पर आक्रमण करने वाले लुटेरों — मोहम्मद गौरी, जहीरुद्दीन बाबर, मोहम्मद अब्दाली — के नाम पर रखे थे। लेकिन इन सबके सामने दक्षिण भारत के इस मुसलमान वैज्ञानिक द्वारा निर्मित भारतीय मिसाइलें कहीं अधिक प्रभावशाली सिद्ध हुईं।

इस युद्ध में कौन जीता और कौन हारा — इस पर बहस हो सकती है, लेकिन नेक, आस्तिक और सच्चे मुसलमान डॉ. अब्दुल कलाम पर शक या संदेह नहीं किया जा सकता। आश्चर्य की बात यह है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, रक्षामंत्री राजनाथ सिंह और किसी अन्य प्रमुख नेता ने इस युद्ध में भारत की सफलता के लिए अब्दुल कलाम का आभार नहीं जताया।

यदि कम्युनिस्टों को 2002 में कलाम का विरोध करना ही था, तो वे यह दलील दे सकते थे कि 77 वर्षीय अब्दुल कलाम मुसलमान नहीं हैं क्योंकि उन्हें उर्दू नहीं आती — जबकि यह एक सामान्य बात है कि अधिकांश तमिल मुसलमानों ने कभी उर्दू नहीं सीखी। वामपंथी यह प्रचार कर सकते थे कि कलाम केवल दही-चावल और अचार खाते हैं, मांसाहार से दूर रहते हैं। रक्षा मंत्रालय में अपनी पहली नियुक्ति से पूर्व वे ऋषिकेश जाकर स्वामी शिवानंद से आशीर्वाद ले चुके थे। उनके पिता जैनुल आबिदीन के परम मित्र और रामेश्वरम शिवमंदिर के प्रधान पुजारी पंडित पक्षी लक्ष्मण शास्त्री से धर्म के गूढ़ रहस्यों में तरुण अब्दुल ने रुचि ली थी।

डॉ. कलाम संत कवि त्यागराज के रामभक्त पदों को गुनगुनाते थे, नमाज़ के साथ-साथ रुद्रवीणा भी बजाते थे, और एम.एस. सुब्बुलक्ष्मी के भजनों को बड़े चाव से सुनते थे — जबकि उनके मज़हब में संगीत वर्जित माना जाता है।

कुल मिलाकर, वामपंथी यह प्रचार कर सकते थे कि अब्दुल कलाम “बिना जनेऊ वाले ब्राह्मण” हैं। उत्तर भारत के मुसलमानों को वे भड़काकर यह कह सकते थे कि अब्दुल कलाम के पूर्वजों ने इस्लाम को उन अरब व्यापारियों के माध्यम से अपनाया था जो दक्षिण भारत के समुद्री तटों पर शांति के साथ आए थे — न कि उत्तर भारत के उन मुसलमानों की तरह जो गाजी मोहम्मद बिन कासिम की सेना द्वारा तलवार के बल पर धर्मांतरण के बाद बने।

यह स्थिति वैसी ही हो सकती थी जैसी मौलाना भाशानी ने ढाका में कही थी — “ये पश्चिम पाकिस्तानी मुसलमान हम पूर्वी पाकिस्तानी (बांग्लादेशी) मुसलमानों को इस्लामी मानते ही नहीं। तो क्या मुसलमान होने का प्रमाण देने के लिए हमें लुंगी उठानी पड़ेगी?”

कलाम के विरोधी इसी तरह हिन्दुओं को भी यह कहकर भटका सकते थे कि कलाम की माँ ने उन्हें बाल्यावस्था से ही नमाज़ पढ़ने की शिक्षा दी थी, मगरीब में मक्का की ओर मुंह करके प्रार्थना करने को कहा था — यानी पूर्व की ओर, अपने देश की ओर, न देखने की हिदायत दी थी। उनके पिता ने सिखाया था कि हर कार्य की शुरुआत “बिस्मिल्लाह” से होनी चाहिए।

परंतु सबसे बड़ा सवाल यह उठाया जा सकता था कि हिन्दू बहुल भारत का राष्ट्रपति एक सुन्नी मुसलमान कैसे हो सकता है? एक ऐसा युवक, जिसने 250 रुपये मासिक वेतन से अपनी सरकारी नौकरी शुरू की थी, आज उसे 50,000 रुपये मासिक करमुक्त वेतन और राष्ट्रपति पद क्यों मिले? सत्तालोलुप दलाल यह कह सकते थे कि राजनीति की दुनिया इस अंतरिक्ष वैज्ञानिक के लिए उपयुक्त नहीं है।

 

इस पूरे संघर्ष में यह स्पष्ट हो गया कि पाकिस्तान के प्रक्षेपास्त्र — महमूद गजनवी, मोहम्मद गौरी और अहमदशाह अब्दाली — भारतीय मिसाइलों (अग्नि, त्रिशूल, नाग) से तो टकराए ही, पर सबसे प्रभावशाली व्यक्ति सिद्ध हुए मिसाइल मैन अब्दुल कलाम। पोखरण-II परीक्षण के इस शिल्पी ने राष्ट्रपति बनकर अपने तीसरे विस्फोट का प्रभाव डाला। हरिद्वार के स्वामी शिवानंद के इस शिष्य को भारत सदैव आभारी रहेगा — शरीफ़ के पाकिस्तान को शिकस्त देने में।

 

K. Vikram Rao

वरिष्ठ पत्रकार के. विक्रम राव का निधन पत्रकारिता जगत की अपूर्णीय क्षति: आलोक त्रिपाठी

 लखनऊ जर्नलिस्ट्स एसोसिएशन ने गहरा दुःख व्यक्त किया

लखनऊ। देश के प्रतिष्ठित वरिष्ठ पत्रकार एवं इंडियन फेडरेशन ऑफ वर्किंग जर्नलिस्ट्स (IFWJ) के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ. के. विक्रम राव के निधन पर लखनऊ जर्नलिस्ट्स एसोसिएशन ने गहरा दुःख व्यक्त किया है। एसोसिएशन के अध्यक्ष एवं उ. प्र. मान्यता प्राप्त संवाददाता समिति के कोषाध्यक्ष आलोक कुमार त्रिपाठी ने कहा कि डॉ. राव पत्रकारिता के क्षेत्र में दशकों से सक्रिय थे। उनका पूरा जीवन संघर्षशील पत्रकारिता, सिद्धांतनिष्ठ विचारों और निर्भीक लेखनी का पर्याय रहा। उन्होने कहा कि विक्रम राव जी के स्थान की पूर्ति नहीं हो सकती है।
एलजेए के उपाध्यक्ष मो. इनाम खान, महामंत्री विजय आनंद वर्मा, कोषाध्यक्ष संजय पाण्डेय, मंत्री त्रिनाथ शर्मा एवं एलजेए महिला इकाई की अध्यक्ष डॉ. वंदना अवस्थी, विशेष आमंत्रित सदस्य डॉ गीता, संगठन मंत्री मोहम्मद फहीम, मीडिया प्रभारी रवि शर्मा, सदस्य डॉ. अर्चना छाबड़ा ने भी श्री राव के निधन पर गहरा दुःख व्यक्त करते हुए इसे पत्रकारिता जगत की अपूर्णीय बताया है।

पत्रकारिता के शिखर सम्मान से सम्मानित हो चूके हैं वरिष्ठ पत्रकार के. विक्रमराव जी 

आईवॉच समूह और भड़ास के संपादक श्यामल त्रिपाठी ने किया था सम्मानित


लखनऊ। वरिष्ठ पत्रकार के. विक्रमराव का शुक्रवार को आईवाच के संपादक श्यामल त्रिपाठी ने उनके आवास पर हिंदी पत्रकारिता का शिखर सम्मान सौंपा। हिंदी पत्रकारिता दिवस के मौके पर उन्हें सम्मानित किया जाना था। लेकिन उनकी अनुपस्थिति के चलते यह संभव नहीं हो सका और उन्हें शुक्रवार को सम्मानित किया गया। इस मौके पर श्री राव ने पत्रकारिता से जुड़े कुछ संस्मरण भी सुनाये और आज के समय में पत्रकारिता की चुनौतियों पर भी प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि आज पत्रकारिता के मायने बदल गये हैं। ऐसे में उसके मिशन को संभालना आने वाली पीढ़ी की जिम्मेदारी है। इस मौके पर उन्होंने आईवाच समूह के उज्ज्वल भविष्य की कामना भी की।
गौरतलब है कि के. विक्रम राव किसी परिचय के मोहताज नहीं हैं।

उन्होंने पत्रकारों के लिए संघर्ष करते हुए पत्रकारिता की। प्रेस परिषद में रहकर मीडिया के नियमन जैसे कार्यों में भागीदारी की तो प्रेस सेंसरशिप के विरोध में 13 महीने तक जेल में भी गुजारे। श्रमजीवी पत्रकारों के वेतन के लिए सरकारों से लंबी लड़ाई लड़ी तो देश और विदेश में भारतीय मीडिया का लोहा भी मनवाया। ये कुछ बातें पहचान कराती हैं भारतीय श्रमजीवी पत्रकार फ़ेडरेशन के अध्यक्ष के. विक्रम राव की। राजनीति शास्त्र से परास्नातक श्री राव को पत्रकारिता और संघर्ष विरासत में मिले। उनके पिता स्व. के. रामाराव लखनऊ में पं. जवाहरलाल नेहरू द्बारा स्थापित नेशनल हेराल्ड के 1938 में संस्थापक-संपादक थे। लाहौर, बम्बई, मद्रास, कोलकाला तथा दिल्ली से प्रकाशित कई अंग्रेजी दैनिकों में भी उन्होंने संपादन किया था। उन्हें ब्रिटिश राज ने 1942 में कारावास की सजा दी थी। आजादी के बाद पत्रकारिता ने एक लंबा अरसा गुजार दिया है। उसके स्वरूप में जमीन-आसमान का अंतर आ चुका है। उसमें पत्रकारों की स्थिति, संपादकीय ढांचा, प्रबंधन और सरकार से रिश्तों आदि हर एक क्षेत्र में बहुत कुछ बदल चुका है।
पत्रकारिता के क्षेत्र में आए इन बदलावों के लिए श्री राव एक हस्ताक्षर हैं। उनकी जुझारू प्रवृत्ति और हक के लिए हर स्तर तक जाने की जिद ही है जिससे पत्रकारिता क्षेत्र अपने में आए पूंजीवाद के तमाम दुर्गुणों के बावजूद आज एक विशिष्ट मुकाम पर है और आम आदमी के भरोसे को भी कायम रखे है। जब-जब पत्रकारिता में कोई विसंगति नजर आई, उसे दूर करने के लिए श्री राव हमेशा अग्रिम पंक्ति में नजर आए।
श्री राव पत्रकारिता लेखन और संगठन दोनों के क्षेत्र में भी अग्रणी रहे हैं। गद्यकार, संपादक और टीवी-रेडियो समीक्षक श्री राव श्रमजीवी पत्रकारों के मासिक ‘दि वîकग जर्नलिस्ट’ के प्रधान संपादक हैं। वे न्यूज के लिए चर्चित अमेरिकी रेडियो ‘वॉयस ऑफ अमेरिका’ (हिन्दी समाचार प्रभाग, वॉशिगटन) के दक्षिण एशियाई ब्यूरो में संवाददाता रहे। वे 1962 से 1988 तक यानी पूरे 36 वर्ष तक अंग्रेजी दैनिक ‘टाइम्स ऑफ इंडिया’ (मुंबई) में कार्यरत थे। उन्होंने दैनिक ‘इकोनोमिक टाइम्स’, पाक्षिक ‘फिल्मफ़ेयर’ और साप्ताहिक ‘इलस्ट्रेटेड वीकली’ में भी काम किया है।
श्री राव ने पत्रकारिता और सरकार के बीच में भी सेतु की तरह कार्य किया। प्रेस की नियामक संस्था ‘भारतीय प्रेस परिषद’ में वे सन 1991 से 6 वर्षों तक लगातार सदस्य के रूप में पत्रकारों की आवाज बने रहे। श्रमजीवी पत्रकारों के लिए भारत सरकार द्बारा गठित जस्टिस जीआर मजीठिया वेतन बोर्ड और मणिसाना वेतन बोर्ड के वे सदस्य रहे।
सांगठनिक कौशल के धनी श्री राव ने भारतीय श्रमजीवी पत्रकार फ़ेडरेशन के बारहवें राष्ट्रीय अध्यक्ष के रूप में पुन: निर्वाचित होकर पत्रकारों का भरोसा खुद पर बनाए रखा। इसके अलावा पत्रकारों के कोलम्बो सम्मेलन एशियाई पत्रकार यूनियनों के परिसंघ में श्री राव को अध्यक्ष चुना गया।

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