आपकी अदालत के 21 वर्ष पर आयोजित कार्यक्रम को सही नहीं मानते अवधेश जी

aap ki adalat

Awadhesh Kumar! मेरे से लगातार यह पूछा गया कि हाल में एक सामचार चैनल के प्रमुख के शो पर जो कार्यक्रम हुआ और उसमें महामहिम राष्ट्रपति डॉ. प्रणब मुखर्जी, प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी सहित मंत्रिमंडल के अनेक सदस्य, राजनेता, शीर्ष अभिनेता, अभिनेत्री, गायक, उद्योगपति……….इन सबका जैसा जमावड़ा हुआ उस पर मुझे कुछ लिखना चाहिए। कुछ लोगों ने तो यह पूछ दिया कि आपने चुप्पी क्यों साध ली? कुछ इससे आगे बढ़कर जो कुछ कह गए उसकी चर्चा यहां आवश्यक नहीं।
मित्रों, मेरे मन में उस कार्यक्रम पर अपनी प्रतिक्रिया देने की कुलबुलाहट बनी रही है। मैं पत्रकारिता की जिस पाठशाला या विचारधारा से आता हूं और जो मुझे सर्वथ सही और उचित लगता है वह इस प्रकार के सारे आयोजनों पर मेरे अंदर उद्वेलन पैदा करतीं हैं। अगर कुछ न बोलूं और लिखूं तो अंतर्मन में एक अशांति छटपटाहट कायम रहती है। तो मैं उसी दशा में हूं।
लेकिन समस्या है कि उस पर क्यों लिखूं और क्या लिखूं? कई बार आम मनुष्य के नाते यह सोचता हंू कि पिछले 6 महीने या उससे पहले से मेरे खिलाफ जो संगठित अभियान चला है वह जारी है और अपने पेशागत जीवन में मैं उसके विपरीत परिणामों का सामना कर रहा हूं। उस मोर्चा पर विजय पानी है, लेकिन अभी समय लगेगा।
उसमें एक और मोर्चा खुल जाए यह कितना उचित होगा? एक पहलू यह भी है कि मेरे लिखने से यदि ऐसे कार्यक्रम के आयोजकों पर कोई नकारात्मक असर न पड़े तो लिखना बोलना सार्थक हो।
यह भी बता दूं कि आप सब मित्रों के आग्रह पर मैंने ऐसे कई पोस्ट लिखे, स्टैण्ड लिया, जिससे निजी पेशागत जीवन में केवल विपरीत परिणाम आए और उसका सामना कर रहा हूं। आप सब मेरे समर्थक, चाहने वाले, मेरे से भावनात्मक स्तर पर जुड़े रहने वाले, जिनमें से मैं व्यक्तिगत तौर पर अत्यंत कम लोगों को जानता हूं, असंगठित हैं। आपमें से ज्यादा के पास मीडिया की अंदरुनी स्थिति एवं यहां के दिखने और न दिखने वाले चेहरों के बीच जो कुछ होता है उसकी भी जानकारी शायद ही होती है। जो दावा करते हैं उनके पास तो होती ही नहीं। इसके विपरीत जो विरोधी हैं उनके पास थोड़ी ताकत है, संबंध है, कुछ संगठित हैं….इसलिए वे क्षति ज्यादा पहुंचा जाते हैं।
हालांकि मैं इसको क्षति न मानकर जो होना है वही हो रहा है इस भाव से लेता हूं और कायम रहता हूं। पर इससे कोई बेहतर परिणाम निकल रहा हो ऐसा कम हुआ है। उल्टे कई ऐसी गलतफहमियां और दुष्प्रचार हो जाते हैं जिनकी आप कल्पना नही करते। कारण, उतने नीचे स्तर पर मैं आप सोच नहीं सकते। खुले दिल से मैं काम करता हूं, सोचता हूं, व्यवहार करता हूं, पर जो हमारे सामने हैं सब तो वैसे नहीं हैं….।
बावजूद इसके आप सबकी सामूहिक चाहत का सम्मान करते हुए में श्री रजत शर्मा के आपकी अदालत के 21 वर्ष पूरे होने के अवसर पर अयोजित शो पर तत्काल संक्षिप्त टिप्पणी कर रहा हूं। जब इतना झेल रहा हूं तो कुछ और सहीं। मेरा दृढ़ मत है कि पत्रकारिता को जो मैंने समझा है उसकी कसौटी पर इस तरह के कार्यक्रम को पत्रकारिता की श्रेणी का माना ही नहीं जा सकता। कॉरपारेट, नेता, सरकार, राजनीति, स्टार का यह आडम्बरपूर्ण कॉकटेल पत्रकारिता के भविष्य की दृष्टि से मेरे जैसे लोगों को आतंकित करने वाला था। पता नहीं इस मेल का असर पत्रकारिता को कहां ले जाएगा।
हालांकि इसके पहले एनडीटीवी ने अपना कार्यक्रम राष्ट्रपति भवन में ही आयोजित कर दिया। यह भी पहली बार हुआ और उसमें भी ऐसे ही कॉकटैल की तस्वीर थी। यह पत्रकारिता के नाम पर चैनलों द्वारा शुरु की गई ऐसी धारा है जिसमें वास्तविक पत्रकारिता कम, बाजार की चकाचौंध मुख्य है, कॉरपोरेट और शीर्ष नेताओं के बीच धाक जमाने और अपने को शीर्ष व्यक्तित्व स्थापित करने की शास्त्रीय पत्रकारिता की सोच से परे लक्ष्य है…..।
ऐसी बहुत सारी बातें मैं कह सकता हूं। कॉरपारेट और न्यूज चैनल के बीच दुरभिसंधि की भी व्याख्या कर सकता हूं।
लेकिन मेरे मन मंें सबसे महत्वपूर्ण और पूरी पत्रकार बिरादरी ही नहीं, समूचे देश के लिए यह प्रश्न ज्यादा प्रासंगिक है कि क्या किसी पत्रकार का कोई एक कार्यक्रम ऐसा हो सकता है जिसके 21 वर्ष पूरा होने पर राष्ट्रपति एवं प्रधानमंत्री सहित मंत्रिमंडल के सदस्य और शीर्ष राजनेता तक वहां पहुंच जाएं? यही नहीं वे खुलेआम अपने संबंधों का उस तरह इजहार करें? मेरा उत्तर है, नहीं। पता नहीं आपका क्या उत्तर होगा। कभी इनने सोचा है कि इससे संदेश क्या जाएगा? दूसरे चैनलों के अंदर भी ऐसा कुछ करने की चाहत कुलबुला रही होगी। यह दौर पत्रकारिता को कहां ले जाएगा?
कभी किसी ने यह सोचा कि उस कार्यक्रम में आम या स्थापित वास्तविक पत्रकार कितने थे? कभी किसी ने ध्यान दिया कि उसमें आम आदमी कितने थे? एक भी नहीं। तो अगर शीर्ष नेता, सरकार के मुखिया, शीर्ष उद्योगपति या पूंजीशाह, सुपर स्टार, दूसरे क्षेत्रों के ऐसे ही आइकॉन को जुटाने मात्र तक ही यह सीमित था तो इसे पत्रकारिता का कार्यक्रम कैसे कहेंगे? यह पत्रकारिता कैसे हो सकती है, जिसमें मुख्य लक्ष्य ही जन सरोकार हो? समाज के सबसे निचले स्तर पर बैठे आदमी को केन्द्र में रखकर सकारात्मक सामचार एवं विचार देना हो…..?
अगर रजत जी ने अपनी तथाकथित उपलब्धि पर मुहर लगवाने के लिए इतना बड़ा आयोजन किया इस पर इतना बेतहाशा खर्च किया तो मेरे पास इसका घोर विरोध करने के और कोई चारा नहीं बचता है।
श्री रजत शर्मा की टेलीविजन पत्रकारिता में योगदान को मै नकार नहीं सकता। खासकर जी न्यूज में उन्होंने टेलीविजन समाचार को नया आयाम दिया। उससे दूसरे लोगों ने भी काफी कुछ सीखा। उसमें से निकले लोग आज अनेक जगह श्रेष्ठ काम कर रहे हैं। पर पत्रकार का कार्य श्रेयहीन होता है। वहीं तक सीमित रहे, तभी पत्रकारिता। तो इस कार्यक्रम को मैं उन सारे लोगों के लिए सतर्क होने, सावधान होने का संकेत मानता हूं जो कि पत्रकारिता को भी मूल्यों, जन सरोकारों के मुद््दोें और स्वस्थ जन कल्याणकारी विचारों की पटरी पर लाने के लिए समर्पित है।
उम्मीद है मेरी टिप्पणी को विचार के स्तर तक सीमित माना जायेगा…।

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