कल्पतरु एक्सप्रेस, हर शाख पर उल्लू बैठा है….

एक समय था जब वरिष्ठ पत्रकार पंकज सिंह के समय में कल्पतरु एक्सप्रेस अखबार ने नई उंचाइयां प्राप्त की थीं। उस समय अखबार द्वारा चलाए गए मीडिया विमर्शों में जिस तरह मीडिया की नामी गिरामी हस्त‍ियां शामिल हुई थीं उसे देख तमाम स्थानीय मीडिया इकाइयों में हलचल-सी मचने लगी थीं। पर अरुण त्रिपाठी का प्रयोग कर पहले तो प्रबंधन ने अखबार के कर्मचारियों में दरार डाली। फिर मजीठिया से बचने के लिए उपर से नीचे तक तमाम लोगों को धीरे-धीरे बाहर कर दिया।

तमाम संपादकों, उपसंपादकों और निचले स्तर के कर्मचारियों से लेकर एचआर तक को बाहर का रास्ता दिखा दिया गया। अब अखबार में जो हो रहा है उसका अंदाजा अखबार के पहले पन्ने पर 31 दिसंबर और 5 जनवरी को छपी विज्ञप्ति से लगाया जा सकता है। विज्ञप्ति में जिन सरोज अवस्थी के बारे में पहले बताया गया कि वे आफिस में शराब के नशे में आकर हंगामा करते रहे और अखबार के नाम पर धन उगाही करते रहे। अगली विज्ञप्त‍ि में उनसे कोई विवाद नहीं होने की खबर छापी गयी।

इससे यह साफ जाहिर हो गया कि अखबार के दफ्तर में अब क्या हो रहा है। शाम ढलते ही वहां शराब की महफिल जमने लगती है और जो माहौल होता है उसमें हंगामा मारपीट की आशंका बराबर रहती है। जिस घटना का विज्ञापन 31 को छपा है उसमें जैसी की खबर है, अवस्थी ने मालिकान में से एक की पिटाई कर दी थी और खुद भी पिटे थे। फिर कई दिनों तक मालिकान को पुलिस खोजती रही। वे छुपते रहे। उसके बाद वे मालिकान ठंडे पड़ गए हैं, नहीं तो हर अखबार के कर्मचारी की नाक में वे दम किए रहते थे।

अन्य मालिकान की इसी बीच आफिस के आगे से गाड़ी चोरी हो गयी। पंकज सिंह के आने के पहले भी बताया जाता है कि ऐसा ही माहौल था। चर्चा है कि प्रबंधन अब सेबी के कसते शि‍कंजे के कारण अखबार को नये मालिकों के सहारे बेच बाच कर जो भी निकल आए वह निकाल लेना चाहता है।  नीचे अखबार में छपे दोनों विज्ञापनों की जेपीजी संलग्न है। साथ एक और जेपीजी है एक खबर की जिसे देखकर यह अंदाजा लगाया जा सकता है कि अब किस तरह की कल्प्ना के अधार पर बे-सिर पैर की खबरें छप रही हैं अखबार में। कल्पतरु अब रसातल को जा रहा है।

एक कर्मचारी द्वारा भेजे गए पत्र पर आधारित

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