दो माह से सिर्फ बिस्कुट खाकर जी रहे सहारा के असिस्टेंट प्रोड्यूसर ने दम तोड़ा

सहारा के न्यूज चैनल ‘समय’ उत्तर प्रदेश/उत्तराखंड में असिस्टेंट प्रोड्यूसर के पद पर कार्यरत अमित पांडेय (35) की अकाल मौत हो गई। सहारा संस्थान में काम कर रहे किसी कर्मी की हाल के दिनो में ये दूसरी दुखद मौत है। इससे पहले लखनऊ में सहारा कोआपरेटिव के डिप्टी मैनेजर ने छत से कूद कर जान दे दी थी। पता चला है कि सैलरी नहीं मिलने के कारण दो महीने से अमित पांडेय बिस्कुट खा कर चैनल के दफ्तर आ-जा रहे थे। इससे वह कमजोर और लगातार बीमार चल रहे थे। आखिरकार मल्टी आर्गन फेल हो जाने से उन्होंने दम तोड़ दिया। जब उनकी जान चली गई, उसके बाद सहारा ने उनकी तीन महीने की बकाया सैलरी परिजनों को जारी की।

गोरखपुर के दुर्गा चौक, प्रयागपुरम् रुस्तमपुर निवासी मदनराज पाण्डेय के पुत्र अमित पाण्डेय के बारे में सहारा प्रबंधन का दावा है कि बीमारी के चलते उन्हें लखनऊ के एक अस्पताल में भर्ती कराया गया था। इलाज के दौरान ही उन्होंने अंतिम सांस ली। उनका अंतिम संस्कार 27 मार्च को गोरखपुर में राप्ती तट पर किया गया। बताया जा रहा है कि सहारा प्रबंधन अपने यहां कार्यरत मीडिया कर्मियों और अन्य छोटे-बड़े कर्मचारियों को वेतन न देते हुए हकीकतों पर पर्दा डाले रहना चाहता है।इस समय सहारा की अंदरूनी हालत कितनी डांवाडोल है और उसके लिए मीडिया कर्मियों और अन्य कर्मचारियों को कितनी बड़ी कीमत चुकानी पड़ रही है, इसका खुलासा अमित पांडेय की मौत और उससे पहले छत से कूद कर आत्महत्या कर चुके सहारा क्रेडिट कोऑपरेटिव सोसायटी के डिप्टी मैनेजर प्रदीप मंडल की घटना से होता है। ‘गुड’ (?) सहारा के अखबार और चैनल में शीर्ष पदों पर बैठे अधिकारी तक अपने भविष्य को लेकर गंभीर असमंजस में हैं।  पता चला है कि इन्ही सब स्थितियों के चलते सहारा की वाराणसी यूनिट के देवकीनंदन एक माह से छुट्टी पर चल रहे हैं। पटना सहारा के संपादक दयाशंकर राय के अलावा कानपुर और लखनऊ सहारा के संपादकों के भी लंबे समय ड्यूटी न जाने की सूचनाएं हैं। कंपनी के वर्कर्स को दो जून की रोटी के भी लाले पड़ने लगे हैं, क्योंकि समूह में कार्यरत कर्मचारियों को महीनों से सैलरी नहीं मिल रही है। एक परिवार का दंभ भरने वाला यह समूह अब बिखरता दिख रहा है, क्योंकि इस परिवार के प्रमुख सुब्रतो सहारा पिछले करीब आठ महीने से तिहाड़ जेल में बंद है और उनकी इस कैद ने उनके सहारा इंडिया परिवार को मौजूदा हालात में बेसहारा सा बना दिया है। अखबार, टेलिविजन, फिल्म-निर्माण, जीवन बीमा, रीयल-इस्टेट, आईटी, खेल जैसे तमाम क्षेत्रों में फैला यह समूह बंजर हो चला है। मीडियाकर्मियों के कर्जदारों की कतार लंबी होती जा रही है। इससे पहले हाल ही में लखनऊ में कपूरथला चौराहा स्थित सहारा भवन की नौवीं मंजिल से गिरने से सहारा क्रेडिट कोऑपरेटिव सोसायटी के डिप्टी मैनेजर प्रदीप मंडल की मौत हो गई। प्रदीप ने आत्महत्या की या हादसे में उनकी मौत हुई, इस पर भले ही अभी कोई कुछ बोलने को तैयार न हो, लेकिन उनकी आर्थिक परिस्थियां उनकी पूरी कहानी बयां कर देती हैं। मूलरूप से कोलकाता के रहने प्रदीप मंडल जानकीपुरम सहारा स्टेट में पत्नी शोभा और बेटी श्वेता के साथ रहते थे। 24 मार्च दोपहर करीब 12:30 बजे प्रदीप भवन की नौवीं मंजिल से नीचे गिर गए। आनन-फानन में प्रदीप को ट्रॉमा सेंटर ले जाया गया, जहां डॉक्टरों ने उन्हें मृत घोषित कर दिया। पुलिस भी सीसीटीवी फुटेज में प्रदीप को आखिरी मंजिल पर जाते हुए देखे जाने की बात कह रही है। उनकी मौत भले ही हादसा या आत्महत्या, वक्त गुजरने के साथ इस राज से पर्दा तो हट जाएगा, लेकिन उनकी आत्मा की मौत, उनके उम्मीदों की मौत जोकि उनके गुजर जाने से पहले तिल-तिल कर्जदारों के सामने जाती रही, उसका क्या? क्या कोई इस रहस्य पर्दा हटाएगा? प्रदीप कर्ज में थे और दो माह पूर्व अपनी कार भी बेच दी थी। पड़ोसियों के मुताबिक करीब छह वर्ष पूर्व प्रदीप ने बैंक से लोन लेकर सहारा स्टेट में मकान खरीदा था। प्रदीप की पत्नी शोभा एक निजी स्कूल में पढ़ाने के साथ-साथ बच्चों को ट्यूशन भी पढ़ाती हैं। प्रदीप की बेटी श्वेता एक निजी स्कूल में दसवीं की छात्रा है। खबरों की माने तो प्रदीप पिछले कई महीने से आर्थिक तंगी के शिकार थे जिससे वह परेशान थे। चंद लाइनों में सिमट गई प्रदीप ये कहानी भले ही आम सी लगे लेकिन ये कहना गलत नहीं होगा कि ये सिर्फ बानगी है, क्योंकि हकीकत को टटोला जाए तो इस समूह के अंदर ऐसे कई और कर्मी हैं जो हर दिन अपनी आजीविका से लड़ रहे हैं, हर दिन के गुजरने के साथ उनकी उम्मीद की किरण भी छोटी होती जा रही है।

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