जनविरोधी है सचिवालय प्रवेश व्यवस्था, बदलने को प्रत्यावेदन

नहीं बना सचिवालय प्रवेश पास

amitabh thakur

आज मैं और नूतन अपनी सुरक्षा और फर्जी मुकदमों से बचाव के लिए मुख्यमंत्री श्री अखिलेश यादव से मिलने के उद्देश्य से कालिदास मार्ग स्थित मुख्यमंत्री आवास गए जहां ज्ञात हुआ कि वे एनेक्सी (अर्थात मुख्यमंत्री सचिवालय) गए हुए हैं.

हम एनेक्सी पहुचे जहां अन्दर जाने के लिए पास बनवाना पड़ता है. एक आईजी के रूप में मेरे पास सचिवालय पास था पर नूतन को पास नहीं था, फिर यह भी है कि एनेक्सी में भी पंचम ताल (अर्थात मुख्यमंत्री सचिवालय) जाने के लिए अलग से पास चाहिए होता है, अतः हमने तय किया कि पास बनवा लिया जाए.

जब लगभग 11.15 बजे हम कोने पर अवस्थित पास बनवाने वाले कक्ष में पहुंचे तो बड़ी विचित्र स्थिति थी. कई सारे लोग वहाँ परेशान घूम रहे थे और कोई उनका सुनने वाला नहीं था.
उनमे दो पुलिस इंस्पेक्टर श्री धर्मपाल त्यागी और श्री राम प्रताप सिंह थे जो अन्दर जाना चाह रहे थे पर उन्हें पास नहीं मिल पा रहा था. पूछने पर बताया कि वे मुजफ्फरनगर में तैनात हैं और मुजफ्फरनगर दंगों की जाँच टीम में हैं. उन्हें श्री जे पी सिंह, विशेष सचिव गृह ने मुजफ्फरनगर दंगों की जाँच के सिलसिले में बुलाया था और वे काफी देर से श्री जे पी सिंह से संपर्क करना चाह रहे थे पर उनका संपर्क नहीं हो पा रहा था जिसके कारण वे काफी परेशान थे. उन्होंने एकाधिक बार कहा कि हम लोगों को बुला लिया जाता है पर इस बात का कत्तई ध्यान नहीं रखा जाता कि हम अन्दर कैसे जायेंगे, अब न जाने कब तक यहीं इंतज़ार करना पड़ेगा.

इसी प्रकार एक आरक्षी श्री अरुण कुमार सिंह वहां ऐसे ही परेशान भटक रहे थे. कैरियर डेंटिस्ट कॉलेज के भी एक सज्जन थे, जिनका नाम हम नहीं पूछ पाए, जिन्होंने बताया कि उन्हें मुख्यमंत्री कार्यालय के एक अनुसचिव ने बुलाया था पर अब उनसे संपर्क ही नहीं हो पा रहा है.

चंदौली जिले से एसडीएम चंदौली श्री बरनवाल को श्री शम्भू सिंह यादव, सचिव, मुख्यमंत्री द्वारा बुलाया था और वे भी उसी प्रकार भटक रहे थे क्योंकि श्री शम्भू सिंह से संपर्क नहीं हो पा रहा था.
मैनपुरी के रहने वाले सीआईएसएफ में बडौदा में तैनात श्री सतीश चन्द्र मिश्र भी अपने खेत पर अवैध कब्जे की समस्या के सम्बन्ध में बड़ी उम्मीद लगा कर मुख्यमंत्री या किसी अन्य जिम्मेदार अधिकारी से मिलने आये थे पर लाख प्रयास के बाद भी कोई अफसर उनसे मिलने को तैयार नहीं था और वे वहीँ मायूस भटक रहे थे.

ये सभी लोग अलग-अलग अधिकारियों से मिलना चाह रहे थे पर ऐसा लगता है कि सम्बंधित अधिकारी इनसे मिलने को विशेष इच्छुक नहीं थे या कम से कम उस समय उपलब्ध नहीं थे. अतः ये सभी लोग परेशालहाल भटक रहे थे.

इसके इतर कुछ राजनैतिक लोग भी थे जो मुख्यमंत्री से मिलने आये थे, जैसे मिर्जापुर के श्री अनुराग तिवारी आदि. इन लोगों द्वारा राजनैतिक पार्टी का नाम बताये जाने पर इनके लिए अलग से व्यवस्था बनायी जा रही थी

हमने भी पूछा कि हमें मुख्यमंत्री से मिलना है तो बताया गया कि हम 2236181 फोन नंबर पर बात करें. समय 11.23 बजे मैंने इस नंबर पर बात किया, अपना नाम बताया और अपने प्राणों के भय के कारण आने का कारण दिया और कहा कि मुख्यमंत्री से मिलना है तो उस तरफ से सज्जन ने कहा कि मुलाकात नहीं हो पाएगी. मैंने उनसे उनका नाम पूछा तो नाम बताने से साफ़ इनकार कर दिया. फिर नूतन ने समय 11.27 पर उसी नंबर पर फोन कर अपना नाम बता कर कारण सहित मुलाकात की बात कही तो उसे भी मना कर दिया गया. इसके बाद नूतन ने फोन नंबर 2238291 पर प्रमुख सचिव गृह के कार्यालय से उनसे मिलने का प्रयास किया तो वहां से भी मना कर दिया गया.
इसके बाद कोई अन्य तरीका नहीं होने पर हम लौट आये.

इस अनुभव से हमने निम्न बातें पूरी तरह समझ लीं-
1. सचिवालय में केवल वही जा सकता है जिसकी अन्दर किसी अधिकारी से जान-पहचान हो अथवा जो सत्तारूढ़ पार्टी का सदस्य हो अथवा जो किसी प्रकार से प्रभावशाली हो
2. ज्यादातर मामलों में जहां बाहर बैठा आदमी अन्दर जाने को बेचैन होता है वहीँ अन्दर का अधिकारी इन्हें बुलाने को कत्तई बेचैन नहीं दीखता और इस प्रकार इन्हें लम्बे समय तक इंतज़ार करना पड़ता है और परेशान होना पड़ता है

लेकिन इसमें सबसे गंभीर बात यह है कि इस व्यवस्था के कारण सामान्य आदमी (या कुछ थोड़ी-बहुत औकात वाले लोग भी) सचिवालय में अन्दर अपने काम से नहीं जा सकते. स्पष्ट है कि यह व्यवस्था पूरी तरह से दूषित है क्योंकि इससे आम आदमी को अकारण सचिवालय में जाने से रोका जा रहा है. यह व्यवस्था जनहित के विरुद्ध है क्योंकि इससे कोई भी आम आदमी जो अन्दर किसी को नहीं जानता अथवा जिसकी कोई पहुँच नहीं है वह किसी भी स्थिति में अपने काम से अन्दर नहीं जा सकता. यह बड़ी अनुचित स्थिति भी है क्योंकि इसमें अन्दर के अफसर के आदेश पर किसी को अन्दर प्रवेश मिलेगा जबकि जाहिर है कि यदि किसी को कोई शिकायत है, कोई परेशानी है, कोई दिक्कत है अथवा कोई शिकायत करनी है तो उसे अन्दर का अधिकारी क्यों बुलाएगा. यह व्यवस्था इस कारण भी पूरी तरह गलत है क्योंकि इससे सुरक्षा का कोई लेना-देना नहीं है. किसी व्यवस्था में एक आदमी के अन्दर प्रवेश करने, नहीं करने से खतरा नहीं हो सकता और न ही आम आदमी को अन्दर प्रवेश करने से रोकने से सुरक्षा बढ़ जायेगी. यदि वास्तव में सुरक्षा को ध्यान में रखना है तो इस प्रकार की अनुचित प्रवेश व्यवस्था की जगह प्रत्येक व्यक्ति को अनुमति देते हुए उनकी ठीक से चेकिंग की जाए. जाने वाले प्रत्येक व्यक्ति की चेकिंग की बात तो समझ में आती है, अचानक बहुत भीड़ बढ़ जाने पर नियंत्रण की बात तो समझ में आती है पर इस प्रकार आम आदमी और तमाम सरकारी सेवकों को घंटों बिना कारण बाहर लटकाए रहना अथवा अन्दर जाने से प्रवेश करने से रोकना सीधे-सीधे आम आदमी के हितों के विरुद्ध स्थिति है.

हमने आज इस सम्ब्वंध में प्रमुख सचिव सचिवालय प्रशासन को पत्र लिख कर अनुरोध किया है और हमने यह निश्चय किया है कि यदि पंद्रह दिवस में आवश्यक परिवर्तन नहीं हुए तो हम इस व्यवस्था के हर प्रकार से आम आदमी के हितों के विरुद्ध होने और किसी भी प्रकार से सुरक्षा के लिए उपयोगी नहीं होने के कारण हाई कोर्ट में चुनौती देंगे और मा० कोर्ट से इस व्यवस्था को समाप्त करने और प्रत्येक व्यक्ति को अपने काम से बिना अन्दर के अधिकारी से पूछे या उसकी इच्छा जाने अन्दर प्रवेश करने का अधिकार देने का अनुरोध करेंगे.

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