……..तो विश्ववार्ता में भी कुछ ठीक नहीं

logo_vishwavartaलखनउ से प्रकाशित दैनिक समाचार पत्र विश्ववार्ता में लगभग आधा दर्जन कर्मचारियों के छोड़ देने के बाद भारी उथल-पुथल शुरू हो गई है। संपादकीय निदेशक अशोक पाण्डेय के अखबार पर कब्जा करने की रणनीति के चलते वहां भयानक अराजक माहौल बन गया है। एमडी आशीष बाजपेयी एकदम असहाय हो गए हैं।वे अलग-थलग पड़ गए हैं।

दूसरी तरफ पिछले सप्ताह संस्थान को अलविदा कह चुके कर्मचारियों को अभी उनका बकाया वेतन नहीं दिया गया है। कारण यह कि एमडी तो चाहते हैं कि वेतन दे दिया जाए लेकिन संपादकीय निदेशक अभी फंसाए रखना चाहते हैं। इन्हीं के चलते दीपावली पर भी कर्मचारियों को वेतन नहीं दिया जा सका।

यही नहीं, संस्थान में गैरजरूरी से लगने वाले पदाधिकारी ज्ञान स्वामी और एमडी के बीच भी कुछ ठीक नहीं चल रहा है। स्वामीजी अपने ज्ञान के आगे किसी की कोई बात नहीं सुनते। वे एमडी की हर बात की उपेक्षा करते हैं। कर्मचारियों के संस्थान छोड़ने की एक वजह ज्ञान स्वामी भी हैं।

लखनउ में अखबारों का इतिहास देखें तो पता चलता है कि तेजी से उभरते अखबारों में चंद ऐसे लोगों की एंटृी हो जाती है जो अपने निजी स्वार्थ और निकम्मेपन के चलते पूरे संस्थान को दीमक की तरह खा जाते हैं। उसे फिर उबरने नहीं देते। नाम लेने की जरूरत नहीं है, पत्रकार मित्र इशारा समझ रहे होंगे।

ऐसे बहुत से अखबार आज वेंटीलेटर पर पड़े आखिरी सांसें ले रहे हैं। विश्ववार्ता भी उसी स्थिति की ओर बढ़ रहा है। ईमानदारी से काम करने वालों की जगह जब अपने कृपापात्र अयोग्य लोगों को रखा जाता है तो संस्थान बहुत आगे तक नहीं चल पाता। शायद यही वजह है कि अखबार में गलतियों की भरमार शुरू हो गई है। जैसे क्रिकेटर ईशांत शर्मा को ईशांत सिंह लिख दिया जाता है

(इस खबर का www.bhadas4journalist.com से कोई वास्ता नहीं है खबर से संबंधित किसी प्रकार के जानकारी के लिए खबर भेजने वाले बी के सिंह से उनके ई.मेल [email protected] पर संपर्क कर सकते हैं। )

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