तत्कालीन अखिलेश सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में दिया था झूठा हलफनामा, कहा था – हिंदुस्तान की दसों यूनिटों में मजीठिया लागू है

देश के अन्य राज्यों में भले ही प्रिंट मीडिया के कर्मचारियों को मजीठिया वेज बोर्ड के मुताबिक वेतनमान और एरियर न मिल रहा हो, लेकिन उत्तर प्रदेश में एचटी मीडिया कंपनी का अखबार ‘हिन्दुस्तान’ अपनी सभी यूनिटों में मजीठिया वेज बोर्ड को लागू करके सभी कर्मचारियों को इसका लाभ देकर सुप्रीम कोर्ट के आदेश का पूरी तरह अनुपालन कर रहा है। भले ही यह खबर मीडिया जगत के लिए चौंकाने वाली हो, हकीकत इससे परे है, मगर उत्तर प्रदेश में तत्कालीन अखिलेश सरकार के समय बनी श्रम विभाग की रिपोर्ट तो यही दर्शा रही है।

श्रम विभाग की यह रिपोर्ट उत्तर प्रदेश की तत्कालीन श्रमायुक्त शालिनी प्रसाद ने 06 जून 2016 को सुप्रीम कोर्ट में मजीठिया वेज बोर्ड के मामले में अखबार मालिकों के विरुद्ध विचाराधीन अवमानना याचिका संख्या- 411/2014 में सुनवाई के दौरान शपथपत्र के साथ दाखिल की है, जिसके मुताबिक यूपी में सिर्फ हिन्दुस्तान अख़बार ने ही मजीठिया वेज बोर्ड को लागू कर न्यायालय के आदेश का अनुपालन किया है।

उत्तर प्रदेश में हिन्दुस्तान की कुल दस यूनिटें हैं, जिनमें 955 कर्मचारी होना दर्शाया गया है। शासन की रिपोर्ट के मुताबिक हिन्दुस्तान लखनऊ में 159, मेरठ में 75, मुरादाबाद में 68, गोरखपुर में 51, अलीगढ़ में 48, बरेली में 82, नोएडा में 224, वाराणसी में 84, इलाहाबाद में 47, कानपुर में 117 यानि कुल मिलाकर 955 कर्मचारियों को हिन्दुस्तान अखबार मजीठिया वेज बोर्ड की सिफारिशों से लाभान्वित कर रहा है।

आइए जानते हैं, श्रम विभाग के रीजनल कार्यालय  के किस अधिकारी ने हिन्दुस्तान की किस यूनिट में कब जाकर जाँच-पड़ताल करके स्टेट्स रिपोर्ट तैयार की। वर्ष 2015 में 15 सितम्बर को डॉ. हरीशचंद्र ने लखनऊ, 17 सितम्बर को रामवीर गौतम ने मेरठ, 20 अगस्त को बी.पी. सिंह ने मुरादाबाद, 20 अगस्त को अमित प्रकाश सिंह ने गोरखपुर, 30 दिसंबर को एस.पी. मौर्या व एस.आर. पटेल ने अलीगढ़, 17 सितम्बर को राधेश्याम सिंह, बालेश्वर सिंह व ऊषा वाजपेयी की टीम ने नोएडा, 21 सितम्बर को आर.एल. स्वर्णकार ने वाराणसी, 04 जुलाई को एस.एन. यादव, आर.के . पाठक और अन्य तीन अधिकारियों की टीम ने इलाहाबाद, 13 अगस्त को सहायक श्रमायुक्त रवि श्रीवास्तव ने कानपुर यूनिट में जाकर पड़ताल की।

यूपी की तत्कालीन श्रमायुक्त शालिनी प्रसाद की ओर से कोर्ट में दाखिल स्टेट्स रिपोर्ट के मुताबिक यूपी के मुजफ्फरनगर का अखबार शाह टाइम्स अपने 22 और लखनऊ में इंडियन एक्सप्रेस अपने सात कर्मचारियों को मजीठिया वेज बोर्ड का लाभ दे रहा है। रिपोर्ट में यहां तक कहा गया कि शाह टाइम्स ने अपने सभी कर्मचारियों को मजीठिया वेज बोर्ड के मुताबिक बकाया एरियर का भी भुगतान कर दिया है। अमर उजाला ने आंशिक लागू कर बकाया एरियर 48 समान किस्तों में देने का कर्मचारियों से समझौता कर लिया है। दैनिक जागरण ने 20जे के तहत वेज बोर्ड उनके संस्थान पर लागू न होना बताया।

उत्तर प्रदेश में मजीठिया वेज बोर्ड को लेकर शासन की सर्वाधिक चौंकाने वाली स्टेट्स रिपोर्ट हिन्दुस्तान समाचार पत्र की है। यही वजह है कि हिन्दुस्तान प्रबंधन सुप्रीम कोर्ट के फैसले को लेकर निश्चिंत नजर आ रहा है क्योंकि उत्तर प्रदेश का श्रम विभाग उनको पहले ही क्लीन चिट दे चुका है, वह यदि परेशान है, तो उन कर्मचारियों को लेकर है, जिन्होंने हाल ही में श्रम विभाग में मजीठिया वेज बोर्ड के मुताबिक वेतनमान और बकाया एरियर न मिलने का क्लेम ठोंक कर हिन्दुस्तान प्रबंधन की आरसी जारी करा दी हैं। हिन्दुस्तान के खिलाफ आगरा से 11 और बरेली से 3 आरसी कटने के बाद से प्रबंधन की चूलें हिली हुई हैं। बरेली में एक और आरसी कटने के कगार पर है। इसके अलावा लखनऊ के 16 कर्मचारी भी ताल ठोकर हिन्दुस्तान प्रबंधन के खिलाफ मैदान में कूद पड़े हैं।

इन आरसी के कटने से जहां एक और श्रम विभाग की हिन्दुस्तान के पक्ष में कोर्ट में दाखिल स्टेट्स रिपोर्ट झूठी साबित हो रही है, वहीं हिन्दुस्तान प्रबंधन को यदि इन क्लेमकर्ताओं को पैसा देना पड़ा, तो अन्य कर्मचारियों में जबरदस्त असंतोष फैलेगा। उस गंभीर स्थिति से निपटना प्रबंधन के लिए बेहद मुश्किल भरा होगा।

तत्कालीन श्रमायुक्त की स्टेट्स रिपोर्ट वायरल होते ही हिन्दुस्तान में अभी भी मजीठिया का लाभ मिलने की आस में नौकरी कर रहे कर्मचारियों में अब अंदर ही अंदर असंतोष बढ़ रहा है। इस खुलासे के बाद अब उनकी यह आस भी खत्म होने लगी है कि सुप्रीम कोर्ट का फैसला आने पर हिन्दुस्तान प्रबंधन उनको मजीठिया का कोई लाभ देगा।

क्या योगी सरकार करेगी कार्रवाई :

उत्तर प्रदेश में श्रम विभाग के रीजनल कार्यालय के जिन अफसरों ने हिन्दुस्तान में मजीठिया वेज बोर्ड लागू होने की स्टेट्स रिपोर्ट श्रमायुक्त को सौंपी, क्या उनको खरीदा गया? अगर नहीं तो इस तरह की रिपोर्ट बनाने का उन पर किसका दबाव था, यह जांच की विषय है। हालांकि सभी दसों यूनिटों की एक जैसी ही रिपोर्ट इस बात का संकेत है कि हिन्दुस्तान के बारे में ऐसी ही रिपोर्ट मांगी गई। हिन्दुस्तान प्रबंधन ने किसको धनलक्ष्मी से मैनेज किया? तत्कालीन श्रमायुक्त शालिनी प्रसाद ने किस वजह से इतना बड़ा महाझूठ देश की सर्वोच्च अदालत में शपथ पत्र देकर बोलना पड़ा? हालांकि उस समय की तत्कालीन सरकार के मुखिया अखिलेश यादव और उनके पिता मुलायम सिंह यादव की हिन्दुस्तान अखबार के समूह संपादक शशि शेखर और लखनऊ के प्रादेशिक संपादक केके उपाध्याय से नजदीकियां और गलबहियां भी किसी से छिपी नहीं है।

ये भी संभव है कि उत्तर प्रदेश में चुनाव में मदद देने के नाम पर मुलायम-अखिलेश की शशि शेखर और केके उपाध्याय से डील हुई हो? ये ऐसे सवाल हैं, जिनका जवाब उत्तर प्रदेश की मौजूदा योगी आदित्यनाथ सरकार ही कोई उच्चस्तरीय जांच बैठाकर तलाश सकती है। अगर ऐसा होता है तो अखबार मालिकों के हाथों की कठपुतली बने श्रम विभाग का बदनुमा चेहरा उजागर हो जाएगा। उधर, केंद्र की मोदी सरकार के ऊर्जा मंत्रालय में तैनात अतिरिक्त सचिव शालिनी प्रसाद की भी मुश्किलें बढ़ जाएंगी।हालाँकि हिंदुस्तान के समूह संपादक शशिशेखर और लखनऊ के संपादक केके उपाध्याय जब से योगी आदित्यनाथ ने मुख्यमंत्री की कुर्सी संभाली है, तभी से उनकी गणेश परिक्रमा कर सैटिंग में लगे हुए हैं।

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