जनसंदेश गोरखपुर को कई करारे झटके …….

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शैलेन्द्र मणि त्रिपाठी के जनसंदेश गोरखपुर से जाने के अटकलों के बीच कुछ अन्य महत्वपूर्ण लोगों के और इस अख़बार से जाने की चर्चाएँ जोरो पर हैं। खबर है कि अभी हाल ही में हिंदुस्तान से आये सर्कुलेशन मैनेजर प्रेम श्रीवास्तव एक महीने की नौकरी कर के जनसंदेश को गुडबाय कर गए। काफी ताम-झाम और योजनाओ के साथ अख़बार की संख्या बढ़ाने की बातें करने वाले प्रेम जनसंदेश गोरखपुर की पांच लोगों की ‘चांडाल चौकड़ी कमेटी’ और अपने वेतन के मुद्दे में उलझ कर रह गए थे। पिछले कई महीनो से सर्कुलेशन विभाग मनीष पाण्डे और सूरज सिंह के जाने के बाद बिना किसी मुखिया के संचालित हो रहा था, प्रेम के जाने से एक बार फिर सर्कुलेशन विभाग खाली हो गया।
साथ ही खबर है कि विज्ञापन विभाग के असिस्टेंट मैनेजर अजीत राय भी लगभग पिछले दो माह से आफ़िस नही आ रहे हैं। तबियत ठीक न होने की बात कहके संस्थान न आने वाले अजीत राय पर संस्थान ने दवाब बनाने के लिए उनका वेतन और मोबाइल भी बंद करवाया पर वो आफ़िस नहीं आ रहे हैं। पूछने पर कहते हैं कि छुट्टी पर हैं। हालाँकि अजीत राय की विज्ञापनदाताओं पर अच्छी पकड़ थी और उनके जाने का असर अख़बार पर भी दिखने लगा है।
विज्ञापन विभाग में ही लांचिंग के समय से ही आपरेशन हेड की भूमिका निभा रहे प्रदीप पाण्डेय भी अचानक छुट्टी पर चले गए और अब उनकी जगह विनय मौर्या ने अपने जान-पहचान के एक अनुभवहीन नए लड़के को नियुक्त कर दिया है।
एकाउंटेंट अतुल जो पिछले एक साल से अकाउंट विभाग का लगभग सारा काम-काज देख रहे थे वो भी अख़बार छोड़कर जा चुके है। इसी तरह अख़बार के एडमिनिस्ट्रेशन हेड यतीन्द्र मिश्र की भी सैलेरी जब से विनय मौर्या के इशारे पर रोकी गई तो वो भी असंतुष्ट हो गए और बार-बार अख़बार छोड़ने की धमकी दे रहे है। यतीन्द्र मिश्र खुलेआम अख़बार प्रबंधन को अंजाम भुगतने की धमकी भी दे रहे है। उनका कहना है की यदि प्रबंधन उन्हें गंभीरता से नही लेगा तो वो संस्थान के पी० एफ० घोटाले से लेकर तमाम राज फाश कर देंगे।
दरअसल ये सारी समस्याएं शैलेन्द्र मणि के जाने और वेतन में बिना किसी आधार के अप्रत्याशित कटौती से शुरू हुयी है। साथ ही पीएफ और ई यस आई की कटौती होने के बाद भी ये पैसे प्रबंधन द्वारा जमा नही किया जाता। मान्यता है जी० यम० अनिल सिंह, एच० आर० सुजीत सिंह, एडिटोरियल हेड उपेन्द्र पाण्डेय ने नए-नए और अनुभवहीन विनय मौर्या को अपने गिरफ्त में ले लिया है। बिना किसी काबिलियत के और शैलेन्द्र मणि त्रिपाठी की चापलूसी और उनके सहयोग से आज इस मुकाम पर पहुंचे ये लोग शैलेन्द्र मणि की ही कब्र खोदने लगे। चूँकि ये लोग अब और कहीं नौकरी करने लायक नहीं हैं इसलिए अपनी तनख्वाह और नौकरी के लालच में ये लोग विनय मौर्या के किसी भी तुगलकी निर्णय का समर्थन करते जाते है। इससे कर्मचारियों में हताशा फैलती जा रही है और परिणाम ये हो रहा है कि अपने काम में महारथी लगभग सभी लोग काम छोड़ कर धीरे-धीरे जा रहे हैं या अन्य जगहों पर नौकरी की तलाश में हैं।
शैलेन्द्र मणि की तमाम कमजोरियों के बावजूद उनके आभामंडल से कर्मचारी में उनका दबाब और सम्मान था, जो कि विनय मौर्या और उनकी चौकड़ी में से किसी भी आदमी में नहीं है। विनय मौर्या से स्थिति सुधर नही रही है और वो इन सब से बेफिक्र हो कर्मचारियों की समस्याओ का जवाब फ़िल्मी डायलाग में देते है कि जिसे काम करना हो वो करे और जिसे समस्या हो वो जाये। ऐसे में अख़बार का भविष्य संदेह के घेरे में ही है।
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