कोविड काल में भी करोड़ों कूट रहे थे राजदीप सरदेसाई, बीवी सागरिका घोष के हलफनामे से खुलासा: घर से लेकर निवेश तक की पूरी डिटेल

सागरिका के हलफनामे से पता चलता है कि राजदीप सरदेसाई 2019 में 4.55 करोड़ रुपए कमा रहे थे जबकि कोविड के दौरान उनकी कमाई घटकर 2.83 करोड़ रुपए हो गई और 2023 में वह दोबारा 3.54 करोड़ रुपए पहुँच गई।

राजदीप सरदेसाई और सागरिका घोषपश्चिम बंगाल की सत्तारूढ़ पार्टी तृणमूल कॉन्ग्रेस (TMC) द्वारा पत्रकार सागरिका घोष को राज्यसभा का टिकट दिए जाने के बाद सागरिका ने एक हलफनामा जमा कराया था जिसमें उनकी संपत्ति की जानकारी थी। अब इस हलफनामे की डिटेल सामने आई है। इसमें सागरिका घोष ने जानकारी दी है कि वह कोविड से पहले 2019 में 40 लाख रुपए कमा रही थीं, वहीं 2021 के कोविड में उनकी कमाई 10 लाख रुपए हो गई और फिर 2023 में 17 लाख रुपए हुई।

तस्वीर साभार: सागरिका घोष का हलफनामा

वहीं उनके पति राजदीप की कमाई का खुलासा भी इस हलफनामे से हुआ। इसमें बताया गया कि राजदीप 2019 में 4.55 करोड़ रुपए कमा रहे थे जबकि कोविड के दौरान उनकी कमाई घटकर 2.83 करोड़ रुपए हो गई और 2023 में वह दोबारा 3.54 करोड़ रुपए पहुँच गई।

तस्वीर साभार: सागरिका घोष का हलफनामा

हलफनामे में खुलासा हुआ कि राजदीप सरदेसाई ने 25 करोड़ रुपए म्यूच्युल फंड, स्टॉक्स और बॉन्ड में लगा रखे हैं।

तस्वीर साभार: सागरिका घोष का हलफनामा

इसके बाद जानकारी दी गई है कि राजदीप सरदेसाई और सागरिका ने मिलकर 2008 में एक घर खरीदा था। तब वह करीब 25 करोड़ रुपए का था और अब उसकी कीमत 49 करोड़ रुपए हो गई है।

तस्वीर साभार: सागरिका घोष का हलफनामा

गौर देने वाली बात है कि कोविड के दौरान या उससे पहले भी मीडियाकर्मियों की नौकरी पर खतरा हमेशा से बना देखा गया है। ऐसा हमेशा से होता आया है कि मीडिया को सालोंसाल देने वाले टेक्निकल कर्मचारियों की छँटनी कर दी जाती है जबकि कुछ बड़े पत्रकार अपनी करोड़ों की कमाई का आनंद लेते हैं और आवाज तक नहीं उठाते।

2017 में एनडीटीवी ने जब अपने 70 कर्मचारियों को निकाला था उस समय शायद रवीश जैसे रवीश भी इतना कमा रहे थे। इसी तरह 2013 की रिपोर्टों को यदि देखें तो पता चलेगा कि टीवी18 ब्रॉडकास्ट लिमिटेड, नेटवर्क18 लिमिटेड की शाखा, जो सीएनबीसी-टीवी18, सीएनबीसी आवाज, सीएनएन-आईबीएन, आईबीएन7 और आईबीएन लोकमत चैनल चलाती है, उसने अपने विभिन्न विभागों के 300 कर्मचारियों – को बर्खास्त कर दिया था। खबर थी कि उस समय कर्मचारियों को बस अंदर बुलाया गया और उनके पत्र सौंप दिए गए थे, उन्हें दूसरी नौकरी ढूँढने तक का समय नहीं दिया गया था।

कोविड के सालों में ये काम कई मीडिया हाउसों ने किया। टाइम्स ऑफ इंडिया, इंडियन एक्सप्रेस, क्विंट जैसे संस्थान भी ऐसा करने के काऱण चर्चा में आए थे जबकि उनके बड़े पत्रकारों पर कोई असर नहीं देखने को मिला था।

बता दें कि सागरिका घोष ने तृणमूल कॉन्ग्रेस पार्टी का हाथ ऐसे समय पर थामा है जब संदेशखाली का मुद्दा गरमाया हुआ है। उन्होंने न इस मुद्दे पर महिला होने के नाते अपनी बात रखी है न ही पत्रकार होने के नाते। उलटा उन्होंने अपने टीएमसी ज्वाइन करने को यह कहकर बचाव किया कि ममता बनर्जी लोकतांत्रिक मूल्यों का चेहरा हैं।

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