“मोदी सरकार” की तानाशाही के चलते… छोटे अखबारों ने आत्मसमर्पण करना शुरू कर दिया है …(एक प्रकाशक की कहानी)

वैश्विक महामारी कोरोना के बाद से सभी छोटे समाचारपत्र अपने अस्तित्व के लिए लगातार संघर्षरत है। इधर सरकार का कोई सहयोग मिलना तो दूर लगातार जटिलताएं बढ़ाई जा रही है। इन सब कारणों से मैं अपना पाक्षिक समाचार पत्र यथासंभव का टाइटल आपको सुपुर्द करता हूं क्योंकि बढ़ती पेचिदगियों के कारण इसका प्रकाशन जारी रखना संभव नहीं होगा।

भारत के समाचार पत्रों के रजिस्ट्रार (आरएनआई) - भारतीय मीडिया अध्ययनसेवा में
श्रीमान रजिस्ट्रार महोदय
भारत के समाचार पत्रों के पंजीकार का कार्यालय (आरएनआई)
नई दिल्ली

संदर्भ – दिन-प्रतिदिन बढ़ती जटिलताओं से दुखी हो समाचारपत्र बंद करना

महोदय,
पाक्षिक यथासंभव की ओर मैंने दिनांक को आपको ईमेल से अपनी शिकायत दर्ज कराई थी जिसके अनुसार मेरे द्वारा वार्षिक विवरणी जमा कराने के बावजूद हुए जुर्माने को गत वर्ष आपके दिए लिंक पर जमा करने पर आज भी बकाया दिखा रहा है। लेकिन अफसोस की आपने इतने दिन बीत जाने पर आज तक न तो कोई उत्तर दिया और न ही रिकार्ड में सुधार किया। इससे इस वर्ष की विवरणी जमा करना संभव नहीं हो पा रहा।
सभी छोटे समाचारपत्र व्यवसाय नहीं, जनून और सामाजिक प्रतिबद्धता के कारण साहित्य, कला, संस्कृति और समाज सेवा के लिए लगातार प्रयासरत है।
वैश्विक महामारी कोरोना के बाद से सभी छोटे समाचारपत्र अपने अस्तित्व के लिए लगातार संघर्षरत है। इधर सरकार का कोई सहयोग मिलना तो दूर लगातार जटिलताएं बढ़ाई जा रही है। इन सब कारणों से मैं अपना पाक्षिक समाचार पत्र यथासंभव का टाइटल आपको सुपुर्द करता हूं क्योंकि बढ़ती पेचिदगियों के कारण इसका प्रकाशन जारी रखना संभव नहीं होगा।
आशा है आप शीघ्र ही मेरे पत्र की पावति प्रदान करेंगे।

भवदीय

मुनीष गोयल
संपादक, प्रकाशक, मुद्रक- यथासंभव

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