दिनेश जुयाल जी पत्रकारों और पत्रकारिता के छात्रों के लिए संपूर्ण संस्थान थे
देशभर में पत्रकारिता कर चुके दिनेश जुयाल जी, एक सच्चे, संवेदनशील व्यक्ति थे, आपके पास विविध विषयों का ज्ञान, जानकारियां थीं। आपकी सरल भाषा शैली, अपने जूनियर्स को कुछ सिखाने, बताने के लिए आपका सहज, सरल व्यवहार, पत्रकारिता की दशा और दिशा पर चिंतन आपको पत्रकारिता का संपूर्ण संस्थान बनाता था। वास्तव में आप एक संस्थान थे। आप कहते थे, पत्रकारों के लिए डिजीटल तकनीक का ज्ञान अत्यंत आवश्यक हो गया है, क्योंकि यह तकनीक उनको लोगों से जोड़ती है।
राजेश पांडेय
वरिष्ठ पत्रकार दिनेश जुयाल जी के निधन का समाचार सुना, मन बहुत उदास है। लगभग 47 साल से भी अधिक समय पत्रकारिता को देने वाले दिनेश जुयाल जी ने उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, बिहार, दिल्ली, मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, हिमाचल प्रदेश, पंजाब जैसे राज्यों में प्रमुख मीडिया संस्थानों में बतौर वरिष्ठ संपादक सेवाएं प्रदान की थीं।
देशभर में पत्रकारिता कर चुके दिनेश जुयाल जी, एक सच्चे, संवेदनशील व्यक्ति थे, आपके पास विविध विषयों का ज्ञान, जानकारियां थीं। आपकी सरल भाषा शैली, अपने जूनियर्स को कुछ सिखाने, बताने के लिए आपका सहज, सरल व्यवहार, पत्रकारिता की दशा और दिशा पर चिंतन आपको पत्रकारिता का संपूर्ण संस्थान बनाता था। वास्तव में आप एक संस्थान थे। आप कहते थे, पत्रकारों के लिए डिजीटल तकनीक का ज्ञान अत्यंत आवश्यक हो गया है, क्योंकि यह तकनीक उनको लोगों से जोड़ती है।
आप बहुत याद आओगे जुयाल जी।
लगभग दो साल पहले अप्वाइंटमेंट लेकर दून यूनिर्वसिटी में वरिष्ठ पत्रकार दिनेश जुयाल जी से मिलने गया था। मुझे रेडियो केदार के लिए इंटर्न जर्नलिस्ट के बारे में आपसे बात करनी थी। वहां आपने मुझे क्लासरूम में ले जाकर फैकल्टी और छात्रों से मिलवाया। आपने छात्रों से कहा, आपके लिए सामुदायिक रेडियो से जुड़ने का अवसर है, वहां बहुत कुछ सीखने को मिलेगा। जो इच्छुक हों, वो अपने नाम दे सकते हैं।
यूनिवर्सिटी से जुयाल जी मुझे अपने घर लेकर आए। बिना भोजन किए मुझे घर से आने नहीं दिया। इस दौरान जुयाल जी से पत्रकारिता पर एक लंबी बात हुई, जिसे मैंने कैमरे में रिकार्ड किया। आप इस बातचीत को नीचे दिए गए लिंक में सुन सकते हैं।
सरल, सहज व्यक्तित्व के धनी दिनेश जुयाल जी देहरादून में 2008 में लांच हुए हिन्दुस्तान अखबार के संपादक थे। इससे पहले मैंने 1999 में आपके सानिध्य में हिमाचल प्रदेश में अमर उजाला के लिए पत्रकारिता की। आप चंडीगढ़ कार्यालय से हिमाचल प्रदेश के संस्करण का मार्गदर्शन कर रहे थे।
बेहद जमीनी पत्रकार, अमर उजाला, हिंदुस्तान जैसे अखबारों के संपादक रहे दिनेश जुयाल जी का निधन
जुयाल जी ने हमारी हर खबर को सही दिशा और दशा देने में कोई कसर नहीं छोड़ी। कई बार अखबार में अपनी ही खबर को पढ़कर लगता था कि यह हमारे नाम से प्रकाशित हुई है, पर इसमें हमारा योगदान केवल सूचना देने भर का है, खबर को पढ़ने लायक तो जुयाल जी ने बनाया है। मुझे उस समय मात्र तीन साल का अनुभव था, पर आपके मार्गदर्शन में मैंने 1999 के लोकसभा चुनाव में मंडी संसदीय क्षेत्र को कवर करने का साहस दिखाया।
देहरादून में हिन्दुस्तान अखबार के स्थानीय संपादक की जिम्मेदारी संभाल रहे थे। तमाम व्यस्तता के बाद भी आप खास खबरों को खुद संपादित करते थे। खबर का संपादन करना और उससे जुड़ी बारीक जानकारियां आप बताते थे। जुयाल जी एक संपादक नहीं, बल्कि पत्रकारों और पत्रकारिता के छात्रों के लिए संपूर्ण संस्थान थे।
दो साल पहले आपसे मीडिया पर लंबी बातचीत के प्रमुख अंश, जिसमें उन्होंने बेबाकी से अपनी राय रखी थी। लंबा समय गुजर गया यही कोई 40-45 साल। जितने बदलाव पत्रकारिता में आए हैं, शायद कहीं आए हों। पहले, पत्रकारिता में चयन सामाजिक सरोकारों को देखकर होता था। उनमें कितनी समझ है और कुछ spark है या नहीं, यह देखा जाता था। पहले बहुत कम लोग पत्रकारिता में आते थे।
अब हजारों बच्चे, देहरादून शहर में ही पत्रकारिता की पढ़ाई कर रहे हैं। यहां बहुत सारे कॉलेज और यूनिवर्सिटी हैं, जहां पत्रकारिता के पाठ्यक्रम चल रहे हैं। पर, बच्चों को पत्रकारिता के लिए, जिस सोच विचार से तैयार किया जाना चाहिए, वो काम नहीं हो रहा है। बच्चों में सपने जगाए जा रहे हैं, पर इस तरफ ध्यान नहीं है कि इतने बच्चे आखिर कहां जाएंगे, क्योंकि मीडिया में space कम होता जा रहा है।
टेलीविजन देखकर बच्चों में पत्रकारिता का ग्लैमर बढ़ रहा है। उनमें फिल्म मेकिंग का सपना जगाया जा रहा है, वो फिल्म मेकर बनना चाह रहे हैं। सच यह है कि उनके लिए पत्रकारिता में जगह कहां है। या तो पब्लिक रिलेशन (पीआर) में या फिर एडवर्टाइजिंग में जाएंगे, यानी हम उन्हें कुछ और बना रहे हैं।
सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि पत्रकारिता के पाठ्यक्रम में प्रवेश के इच्छुक बच्चों के चयन का कोई criteria नहीं है। जेब में पैसा है तो मोटी फीस भरकर आप पत्रकारिता पढ़ने के पात्र हैं। बच्चे में पत्रकारिता को लेकर कोई उत्साह और कुछ करने की चाह हो या न हो, एडमिशन मिल जाएगा। एजुकेशन बिजनेस मॉडल पर है और पत्रकारिता के छात्र भी इसी पैटर्न में आ रहे हैं।
दुखद स्थिति यह है कि पढ़ाने वाले भी सिर्फ औपचारिकता पूरी कर रहे हैं। यह बिल्कुल भी सही नहीं हो रहा है। हमें अच्छे पत्रकार चाहिए तो गुरुकुल भी अच्छे बनाने होंगे। इन गुरुकुल का बेहतर सिस्टम होना चाहिए, जिनसे अच्छे पत्रकार निकलें। पर, यदि आपको अच्छे पत्रकार मिल जाएं, तो वो जाएंगे कहां। आज पत्रकारिता का हाल आप देख रहे हैं, जिस दौर में पत्रकारिता है, वहां अच्छे पत्रकारों के लिए जगह नहीं है। अब तो आपको पीआर पर्सन चाहिए। क्लाइंट को संतुष्ट रखने वाले पत्रकारों की फौज तैयार की जा रही है। अब सरकारें मीडिया को जकड़ें बैठी हैं। सरकार मीडिया से अपना बढ़िया कराना चाहती हैं।
समय की जरूरत के अनुसार पत्रकार बनना चाहिए। आज से 40 साल पहले पत्रकार क्यों बनना चाहिए , इसकी एक अलग व्याख्या थी, आज संदर्भ बदल गए।
मीडिया की नॉरमेटिव्स थ्योरीज ( Normative theories) में एक थ्योरी है, डेमोक्रेटिक पार्टिशिपेंट थ्योरी (Democratic-participant Theory), जिसमें Denis McQuail ने एक कल्पना की है, उन्होंने Authoritarian theory से लेकर छह स्टेप्स बताए हैं। छठां स्टेप यानी फ्यूचर ऑफ जर्नलिज्म (future of journalism), मीडिया पर तमाम तरह के दबाव हैं, जो एडवर्टाइजर है, वो मीडिया को अपने हिसाब से चलाना चाह रहे हैं, पॉलिटिशयन, जो पावर में हैं, वो अपने हिसाब से मीडिया को चलाना चाह रहा है। ऐसे में भविष्य की पत्रकारिता में people participation हो।
हिन्दुस्तान के कुछ चंद घराने मीडिया को चला रहे हैं। मीडिया इन चंद घरानों की पकड़ में है। ये घराने किनकी पकड़ में है, यह देखने की बात है। कुल मिलाकर पत्रकारिता सत्ता कें इस समय धनार्जन, अर्थ केंद्रित पत्रकारिता का दौर चल रहा है।
फ्यूचर में छोटे-छोटे प्लेटफार्म तैयार करने होंगे। अब छोटे छोटे ब्लागर्स अपना इम्पैक्ट छोड़ रहे हैं। सॉफ्ट से लेकर हार्ड न्यूज तक के लिए प्लेटफार्म तैयार हो रहे हैं। इनका प्रभाव क्षेत्र बढ़ रहा है। अब जर्नलिस्ट को इस तरह बनना चाहिए।
मैन स्ट्रीम मीडिया को समाज के सरोकारों से कोई लेना देना नहीं है, उसकी सीधे सीधे सोच यह है कि वो खैरात बांटने के लिए नहीं बैठा है। वो बिल्कुल निष्ठुर होता जा रहा है। जबकि, डिजीटल मीडिया के छोटे-छोटे प्लेटफार्म सरोकारों पर काम कर रहे हैं। इनमें वो लोग शामिल हैं, जो मैन स्ट्रीम मीडिया में थे, पर सच बोलने और सत्यनिष्ठा की वजह बाहर कर दिए गए या उनको छोड़ना पड़ गया।
जब टीआरपी का खेल, सेल्स का खेल, विज्ञापन बटोरने का खेल यह सोच है मैनस्ट्रीम मीडिया में, उससे इतर मुझे लगता है कि आम आदमी का कन्सर्न, आम आदमी की जो आदमियत मरती जारी रही है, उसको जिंदा रखने के लिए तीन मुख्य सूत्र sensitivity, sensibility और objectivity हैं। तीन बातों का ध्यान रखें, Accuracy, Gravity, Clarity का ध्यान रखें।
पत्रकार बनने के लिए sensitivity, sensibility और objectivity अनिवार्य तत्व हैं। 35 न्यूज वैल्यू में से आठ-दस न्यूज वैल्यू को समझकर पत्रकारिता करें तो तभी भविष्य है, यही सही पत्रकारिता है।
मीडिया की पावर एक बार नहीं, बल्कि कई बार देखी। इस बात को समझाने की आवश्यकता है कि मीडिया एक बहुत ही पावरफुल इंस्ट्रूमेंट है। इस पर मनी मेकर्स, प्राफिट मेकर्स का कब्जा हो गया है। इनसे इसको मुक्त कराना है। एक मीडिया तैयार करना है, जो समाज का भला करे।
न्यू मीडिया प्रभावी है, दुर्भाग्य से इसका नैगेटिव यूज ज्यादा हो रहा है। देखना यह है सोशल मीडिया प्लेटफार्म पर किनकी पकड़ है। इन पर मनी मेकर्स का वर्चस्व बना हुआ है, लेकिन धीरे-धीरे कुछ नये पौधों को उगता हुआ देख रहे हैं। इनका भी इम्पेक्ट होगा। बड़े बड़े आर्टिस्ट इसमें आ रहे हैं, पहले जिन लोगों का मीडिया से कोई वास्ता नहीं था, पर वो यहां सामाजिक सरोकारों के लिए आने लगे हैं।
पावर फुल लोगों की पकड़ ज्यादा है। उम्मीद है कि ये छोटे छोटे पौधे एक दिन बड़े होंगे और असर लाएंगे। पॉजिटिव फैक्टर्स ग्रो कर रहे हैं, हालांकि ये सभी संगठित नहीं हैं। असंगठित रूप से बिखरे हुए पौधे भी एक दिन असर लाएंगे, इस बात की पूरी उम्मीद है।
वर्ष 2000 में यह कहा जा रहा था कि डिजीटल से प्रिंट मीडिया संकट में आ जाएगा। पर, अखबारों का सर्कुलेशन आज भी ठीकठाक है। अखबार पढ़ना लोगों की आदत में शामिल है। कोई ऐसा अखबार नहीं होगा, जिसका डिजीटल टीवी, वेबसाइट, पॉडकास्ट नहीं है। अखबार ई पेपर को सब्सक्राइब करा रहे हैं। ऐसा नहीं है कि प्रिंट खत्म हो जाएगा।
डिजीटल बहुत पहले से शुरू हो चुका है, लेकिन अभी भी अखबारों का सर्कुलेशन ठीकठाक है। अखबारों से लोगों का मोह भंग होने का कारण डिजीटल युग नहीं है, बल्कि कुछ और है।
अखबार मोनोटॉनस हो गए हैं। अखबार पीपी कर रहे हैं, किसी एक की खबर छाप रहे हैं तो उसी की खबर छाप रहे हैं । सरकारों के पक्ष में खबरें छाप रहे हैं और जनता की आवाज दबा रहे हैं। यही वजह अखबारों को गिरा रही हैं, अगर अखबार दमदार है, तो उसके लिए गुंजाइश है।
अभी भी सदन में अखबार लहराए जा रहे हैं। अभी भी यह बात है कि अखबार में दम है। सरकारें अखबारों की खबरों पर ध्यान देती हैं, पर अब अखबारों में उस तरह के काम नहीं हो रहे हैं।
अखबारों से इन्वेस्टीगेटिव जर्नलिज्म, एक्सक्लूसिव, स्कूप्स खत्म हैं, तो फिर वो इम्पैक्ट कहां से आएगा। अखबारों में सॉफ्ट खबरों का भी इम्पैक्ट होता है। पर, सॉफ्ट खबरें भी कम ही दिखती हैं। रुरल और डेवलपमेंट जर्नलिज्म छोटे-छोटे डिजीटल प्लेटफार्म कर रहे हैं।
व्हाट्सएप एक ऐसी ‘यूनिवर्सिटी’ है, जिसमें कचरा ज्यादा भरा है। इसमें ऐसे तत्व भी हैं, जो ब्रेन को खोखला कर रहे हैं। यह स्थिति कहीं का भी नहीं छोड़ रही। यहां हताशा होती है।
मैनस्ट्रीम मीडिया जनजागरूकता की दिशा में कदम नहीं उठा रहा। छोटे-छोटे प्लेटफार्म सरोकारों के लिए काम कर रहे हैं। इन प्लेटफार्म पर वो लोग हैं, जो मैनस्ट्रीम मीडिया को छोड़कर बाहर आए हैं या उनको उनकी सत्यनिष्ठा की वजह से बाहर कर दिया गया है। कई लोग सच बोलने की वजह से हटा दिए गए।
टेलीविजन देखना काफी लोगों ने बंद कर दिया है, कुछ टेलीविजन एंकर ने भी कहा, अब बेकार है टेलीविजन देखना। लोग ऊब चुके हैं, , ब्लड प्रेशर बढ़ रहा है। मैनस्ट्रीम मीडया से लोग ऊब रहे हैं, नये मीडिया प्लेटफार्म से थोड़ा-थोड़ा राहत मिल रही है।
पत्रकारों के लिए डिजीटल तकनीक का ज्ञान अत्यंत आवश्यक हो गया है, क्योंकि यह तकनीक उनको लोगों से जोड़ती है।