भारतीय मीडिया व एंटरटेनमेंट इंडस्ट्री के लिए उतार-चढ़ाव भरा रहा साल 2024
मैं दक्षिण भारतीय मीडिया इंडस्ट्री का हिस्सा होने के नाते यह समझ सकता हूं कि 2024 भारतीय मीडिया व एंटरटेनमेंट (M&E) इंडस्ट्री के लिए काफी उतार-चढ़ाव भरा साल रहा।
अनूप चंद्रशेखरन सीओओ (रीजनल कंटेंट), IN10 मीडिया नेटवर्क ।।
हर पुनर्जागरण अपने समय के सामाजिक मानकों की झलक दिखाता है। क्षेत्रीय सिनेमा ने अपनी समृद्ध विविधता के साथ इस साल सबसे अच्छा प्रदर्शन किया और भारत सहित अन्य देशों के दर्शकों को भी मोहित किया। तमिल फिल्मों जैसे ‘द ग्रेटेस्ट ऑफ ऑल टाइम’, ‘अमरन’ और ‘महाराजा’ ने बेहतरीन प्रोडक्शन और दमदार कहानियों के साथ दर्शकों को प्रभावित किया, जिससे तमिल सिनेमा की गुणवत्तापूर्ण कहानी कहने में बढ़त और मजबूत हुई। तेलुगु सिनेमा ने ‘पुष्पा 2: द रूल’ और ‘काल्कि 2898 एडी’ जैसी फिल्मों के साथ अपनी अखिल भारतीय लोकप्रियता को और मजबूत किया। इन फिल्मों ने दिखाया कि सांस्कृतिक रूप से जुड़ी हुई कहानियां, जो व्यापक रूप से आकर्षक हों, भाषाई बाधाओं को पार कर सकती हैं। ‘पैन इंडिया’ शब्द को एक नई स्पष्टता और ताजगी भरी दृष्टि के साथ पुनर्परिभाषित किया गया।
वहीं, बॉलीवुड के लिए यह साल उतार-चढ़ाव भरा रहा। ‘स्त्री 2’ और ‘भूल भुलैया 3’ ने हास्य और डरावनी शैली के अनोखे मिश्रण से दर्शकों का दिल जीतकर सफलता हासिल की। वहीं, ‘मुंजया’, ‘आर्टिकल 370’ और ‘तेरी बातों में ऐसा उलझा जिया’ जैसी कम बजट की, लेकिन सार्थक फिल्मों ने यह साबित किया कि प्रतिस्पर्धी माहौल में भी छोटी लेकिन महत्वपूर्ण फिल्में सफल हो सकती हैं।हालांकि, ‘सिंघम अगेन’ और ‘बड़े मियां छोटे मियां’ जैसी बड़े बजट की फिल्में अपने अनुमानित कथानक और पुराने फॉर्मेट के कारण असफल रहीं। इससे यह साफ हुआ कि बॉलीवुड को खुद को विकसित करने में कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है।
धर्मा प्रोडक्शंस की 50% हिस्सेदारी एक निजी इक्विटी फर्म को बेचे जाने की खबर ने दिखाया कि वित्तीय दबाव ने बड़े और स्थापित स्टूडियोज को भी प्रभावित किया है। इससे रचनात्मक नवाचार और वित्तीय अनुशासन की आवश्यकता को बल मिला। मैं हमेशा मानता हूं कि कला का विकास मानव व्यवहार और मानसिकता में हुए परिवर्तनों को दर्शाता है। कला मानव मनोविज्ञान का प्रतिबिंब है और इसके बदलते स्वभाव को पकड़ती है। जब कोई कंटेंट इन बदलावों को समझने और उनके अनुरूप बनने में असफल होती है, तो सबसे बेहतरीन मार्केटिंग रणनीतियां भी विफल हो सकती हैं। यह रचनाकारों के लिए यह संदेश है कि वे अपने दर्शकों के साथ तालमेल बनाए रखें।
एमेजॉन प्राइम वीडियो को ‘सिटाडेल: हनी बनी’ से सफलता मिली, लेकिन ‘कॉल मी बे’ और ‘वैक गर्ल्स’ जैसे प्रोजेक्ट्स की असफलता ने दिखाया कि दर्शकों की अपेक्षाओं के साथ कंटेंट को जोड़ने में चुनौतियां मौजूद हैं। ‘मिर्जापुर’ और ‘पंचायत’ जैसी फ्रेंचाइज़ सीरीज ने अपने दर्शकों को बनाए रखा, लेकिन जैसे-जैसे नयापन फीका पड़ता गया, इनका आकर्षण कमजोर पड़ने का खतरा भी दिखा। 40 मिलियन बी2सी सब्सक्राइबर्स पर सब्सक्रिप्शन ग्रोथ रुकने से ओटीटी प्लेटफॉर्म अपने पेड यूजर बेस को बढ़ाने में कठिनाई का सामना कर रहे हैं।
ऑरमैक्स एसवीओडी ऑडियंस रिपोर्ट 2024 (The Ormax SVOD Audience Report 2024) ने इंडस्ट्री को आकार देने वाले कई प्रमुख रुझानों को रेखांकित किया। AVOD (एड-सपोर्टेड वीडियो ऑन डिमांड) का प्रभुत्व बना हुआ है, जो भारत के डिजिटल वीडियो दर्शकों का 72% हिस्सा बनाता है, जबकि SVOD (सब्सक्रिप्शन वीडियो ऑन डिमांड) अपनी मार्केट हिस्सेदारी को बढ़ाने के लिए संघर्ष कर रहा है।
टेलीविजन नेटवर्क नए बदलाव लाने में संघर्ष करते रहे और दर्शकों को बनाए रखने के लिए ‘कौन बनेगा करोड़पति’ और ‘बिग बॉस’ जैसे अंतरराष्ट्रीय फॉर्मेट्स पर अत्यधिक निर्भर रहे। सोनी एंटरटेनमेंट टेलीविजन ने ‘सीआईडी’ और ‘बड़े अच्छे लगते हैं’ जैसे पुराने लोकप्रिय शो को फिर से प्रस्तुत किया, लेकिन अपने दर्शकों का दायरा बढ़ाने में मुश्किलों का सामना करना पड़ा।
इस बीच, ‘सन टीवी’ बढ़ती प्रतिस्पर्धा के बीच तमिलनाडु में अपनी स्थिति मुश्किल से बनाए रख सका और अन्य दक्षिण भारतीय बाजारों में अपनी पकड़ बनाने में भी संघर्ष करता रहा। वहीं, दूसरी ओर, जी एंटरटेनमेंट एंटरप्राइजेज लिमिटेड (ZEEL) ने राजस्व दबाव के बीच लाभप्रदता स्थिर करने के लिए लागत नियंत्रण पर ध्यान केंद्रित किया। ‘जियो’ एक प्रमुख खिलाड़ी बना रहा, और ₹70,000 करोड़ के डिज्नी -रिलायंस विलय ने जियो स्टार को एक संभावित गेम-चेंजर के रूप में स्थापित किया। इसके टेलीकॉम, ब्रॉडबैंड और एंटरटेनमेंट को एकीकृत करने वाली बंडल्ड सेवाएं ध्यान आकर्षित करती रहीं, लेकिन इसकी प्रोग्रामिंग रणनीति की सफलता अभी देखी जानी बाकी है। जियो की भारत के विविध दर्शक वर्ग को नवीन और उच्च गुणवत्ता वाली पेशकशों से संतुष्ट करने की क्षमता इसके दीर्घकालिक प्रभाव को निर्धारित करेगी। मार्केटिंग के रुझान मुख्य रूप से इन्फ्लुएंसर-ड्रिवन कैंपेन पर आधारित रहे।
जैसे-जैसे 2024 समाप्त हो रहा है, भारतीय मीडिया व एंटरटेनमेंट (M&E) इंडस्ट्री में स्थिरता और संवेदनशीलता का मिश्रण दिखाई देता है। रीजनल सिनेमा ने मार्गदर्शन किया और कनेक्टेड टीवी ने देखने की आदतों को नया रूप दिया, जबकि प्रणालीगत चुनौतियां जैसे कंटेंट का अतिप्रवाह, वित्तीय दबाव और दर्शकों का विभाजन बनी रही। इस विकसित हो रहे परिप्रेक्ष्य में सफल होने के लिए, इंडस्ट्री को साहसिक नवाचार को अपनाना चाहिए, दर्शकों से मेल-जोल पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए और रचनात्मक जोखिमों और स्थिर रणनीतियों के बीच संतुलन बनाना चाहिए। आशा है कि 2025 आवश्यक बदलाव लेकर आएगा।
(यह लेखक के निजी विचार हैं। किसी भी तरह से bhadas4journalist विचारों का प्रतिनिधित्व नहीं करता है।)