महिलाओं को लीडरशिप की भूमिका में आगे लाने की जिम्मेदारी मीडिया इंडस्ट्री की: नाविका कुमार
नाविका ने कहा, "आज यहां खड़े होकर मैं सिर्फ एक एंकर, न्यूज पर्सन या एडिटर के रूप में नहीं, बल्कि महिलाओं का जश्न मनाने के लिए खुद को गौरवान्वित महसूस कर रही हूं। हमें यह समझना होगा कि हम कर सकते हैं, हम कर रहे हैं और हम जीतेंगे। लेकिन मेरी एकमात्र चिंता यह है कि यह प्रक्रिया बहुत धीमी है और हमें इसे तेज करने की आवश्यकता है।"
टाइम्स नाउ और टाइम्स नाउ नवभारत की ग्रुप एडिटर-इन-चीफ नाविका कुमार ने “Women in Prime Time: The Weight of Influence & Responsibility” विषय पर अपना मुख्य भाषण दिया। इस दौरान उन्होंने मीडिया में महिलाओं की भागीदारी, उनके सामने आने वाली चुनौतियों और उनके सशक्तिकरण की आवश्यकता पर प्रकाश डाला।
उन्होंने कहा कि महिलाओं के योगदान को न केवल पहचाना जाना चाहिए, बल्कि उन्हें लीडरशिप की भूमिका में आगे बढ़ाने की जिम्मेदारी भी मीडिया इंडस्ट्री की है।
नाविका ने कहा, “आज यहां खड़े होकर मैं सिर्फ एक एंकर, न्यूज पर्सन या एडिटर के रूप में नहीं, बल्कि महिलाओं का जश्न मनाने के लिए खुद को गौरवान्वित महसूस कर रही हूं। हमें यह समझना होगा कि हम कर सकते हैं, हम कर रहे हैं और हम जीतेंगे। लेकिन मेरी एकमात्र चिंता यह है कि यह प्रक्रिया बहुत धीमी है और हमें इसे तेज करने की आवश्यकता है।”
उन्होंने इस बात पर भी जोर दिया कि महिलाओं के लिए सफलता का कोई तय फॉर्मूला नहीं होता। शादीशुदा महिलाएं, माताएं और बेटियां भी उतनी ही कुशल प्रोफेशनल हो सकती हैं, जितनी कि अविवाहित महिलाएं। उन्होंने कहा, “महिलाएं मल्टीटास्किंग में माहिर होती हैं, वे एक ही समय में दस काम कर सकती हैं और उनकी सांसों की रफ्तार भी नहीं बदलती। यह कुदरत का दिया हुआ हुनर है, जिसे हमें और निखारना चाहिए।”
मीडिया इंडस्ट्री में महिलाओं की स्थिति पर चर्चा करते हुए उन्होंने एक सर्वेक्षण का हवाला दिया, जिसमें बताया गया कि 55 न्यूज ऑर्गनाइजेशंस में पत्रिकाओं में केवल 13% महिलाएं निर्णय लेने की भूमिका में हैं। टीवी चैनलों में यह संख्या 20% है और अखबारों में 26%। उन्होंने सवाल उठाया कि जब महिलाएं समाज का 50% हिस्सा हैं, तो मीडिया में उनका नेतृत्व केवल 13-26% तक ही सीमित क्यों है?
उन्होंने इस असमानता को खत्म करने की जरूरत पर जोर दिया और कहा कि मीडिया में नेतृत्व कर रही महिलाओं को अपनी साथी महिलाओं का मार्गदर्शन करना चाहिए और उन्हें आगे बढ़ाने में मदद करनी चाहिए। नाविका ने यह भी कहा कि क्षेत्रीय भाषाओं और हिंदी मीडिया में नेतृत्वकारी पदों पर महिलाओं की संख्या अंग्रेजी मीडिया की तुलना में कम है, जिसे बदलने की जरूरत है।
उन्होंने मीडिया इंडस्ट्री में प्रतिस्पर्धा को लेकर भी अहम टिप्पणी की। उन्होंने कहा, “प्रतिस्पर्धा बाहर से होनी चाहिए, अपने न्यूजरूम के अंदर नहीं। न्यूजरूम में हमें एक-दूसरे की ताकत बनना चाहिए। मीडिया में राजनीति इस हद तक बढ़ गई है कि इसने राजनीति को भी शर्मिंदा कर दिया है। हमें इसे बदलना होगा।”
महिला पत्रकारों के सामने आने वाली चुनौतियों का जिक्र करते हुए नाविका ने बताया कि पुरुष पत्रकारों को अपने सूत्रों के साथ संबंध बनाने के अधिक अवसर मिलते हैं, जैसे कि अनौपचारिक मुलाकातें या साथ बैठकर ड्रिंक करना। लेकिन महिलाओं के लिए यह इतना आसान नहीं होता, जिससे उनकी नेटवर्किंग सीमित हो जाती है। उन्होंने कहा, “हमने अपने करियर के शुरुआती दिनों में ऑफिस में ही लोगों से मुलाकात की, बाहर जाकर नेटवर्किंग करना हमारे लिए संभव नहीं था। लेकिन क्या इससे हमारे करियर पर असर पड़ा? हां, पड़ा।”
अपने अनुभव साझा करते हुए उन्होंने कहा कि महिला पत्रकारों को अपने स्रोतों तक पहुंच बनाने के लिए अलग रास्ते अपनाने पड़ते हैं। उन्होंने कहा, “हमें सिर्फ अपने काम और रिपोर्टिंग के दम पर पहचान बनानी होगी। हमें यह भी सुनिश्चित करना होगा कि महिलाओं को आगे बढ़ाने के लिए एक मजबूत सपोर्ट सिस्टम बनाया जाए।”
नाविका कुमार ने अपने भाषण के अंत में कहा कि यह जरूरी है कि महिलाएं एक-दूसरे का साथ दें और एक-दूसरे को आगे बढ़ाएं। उन्होंने कहा, “हमें सिर्फ महिलाओं के संघर्ष की कहानियां नहीं दिखानी चाहिए, बल्कि उनकी उपलब्धियों को भी सामने लाना चाहिए। हमें अपनी सोच बदलनी होगी और यह समझना होगा कि महिलाओं की शक्ति केवल सामाजिक बदलाव लाने में ही नहीं, बल्कि आर्थिक क्रांति लाने में भी है।”
उन्होंने अपने संबोधन का समापन इस प्रेरणादायक संदेश के साथ किया कि महिलाओं को केवल सहयोग की जरूरत नहीं है, बल्कि नेतृत्व की जिम्मेदारी भी संभालनी होगी। उन्होंने कहा, “हम केवल बदलाव की प्रतीक्षा नहीं कर सकते, हमें खुद बदलाव बनना होगा।”
