फीमेल एम्प्लॉयीज की सुरक्षा के बिना कोई भी न्यूजरूम अधूरा: बांसुरी स्वराज
लोकसभा सांसद बांसुरी ने पत्रकारिता में महिलाओं के कम प्रतिनिधित्व पर प्रकाश डालते हुए कहा कि वैश्विक स्तर पर न्यूजरूम में महिलाओं की हिस्सेदारी 20% से भी कम है।
सुप्रीम कोर्ट की वरिष्ठ अधिवक्ता और लोकसभा सांसद बांसुरी स्वराज ने “जेंडर, कानून और न्यूजरूम: समावेशी मीडिया परिदृश्य का निर्माण” (Gender, Law & Newsrooms: Building an Inclusive Media Landscape) विषय पर अपने विचार साझा किए। उन्होंने पत्रकारिता में लैंगिक पूर्वाग्रह और महिलाओं को मीडिया और अन्य क्षेत्रों में सशक्त बनाने के लिए आवश्यक कानूनी ढांचे पर चर्चा की।
अपने भाषण की शुरुआत स्वाभाविक चतुराई के साथ करते हुए, स्वराज ने खुद की तुलना एक “ओपनिंग बैट्समैन” से की, जो मीडिया में लैंगिक प्रतिनिधित्व, कानून में निहित अचेतन पूर्वाग्रह और विभिन्न उद्योगों में कार्यस्थलों की संरचनात्मक चुनौतियों पर एक व्यापक चर्चा की नींव रख रही थीं।
न्यूजरूम में लैंगिक बाधाओं को तोड़ना
स्वराज ने पत्रकारिता में महिलाओं के कम प्रतिनिधित्व पर प्रकाश डालते हुए कहा कि वैश्विक स्तर पर न्यूजरूम में महिलाओं की हिस्सेदारी 20% से भी कम है। उन्होंने बताया कि प्रगति के बावजूद, खोजी पत्रकारिता और राजनीतिक रिपोर्टिंग अब भी पुरुष-प्रधान क्षेत्र बने हुए हैं, जबकि महिलाओं को अक्सर “सॉफ्ट” बीट्स जैसे लाइफस्टाइल और मानव-रुचि की खबरों की जिम्मेदारी दी जाती है।
उन्होंने इस पूर्वाग्रह को उजागर करने के लिए एक दिलचस्प उदाहरण दिया कि किस प्रकार महिला पत्रकारों के करियर की दिशा उनके पुरुष सहयोगियों की तुलना में अलग निर्धारित की जाती है। जहां एक पुरुष पत्रकार को राजनीतिक घोटाले पर रिपोर्टिंग की जिम्मेदारी दी जाती है, वहीं महिला पत्रकार को फीचर लेखन या मनोरंजन खबरों तक सीमित रखा जाता है।
हालांकि, उन्होंने उन महिला पत्रकारों की सराहना की जिन्होंने इन सीमाओं को तोड़ा और नेतृत्वकारी भूमिकाएं निभाईं। उन्होंने दूरदर्शन की ग़जाला अमीन, ऊषा राय और शोभना भरतिया जैसी अग्रणी महिलाओं का उल्लेख किया, जिन्होंने साबित किया कि महिलाएं न्यूजरूम की संस्कृति को पुनर्परिभाषित कर सकती हैं और नेतृत्व कर सकती हैं।
अचेतन पूर्वाग्रह और महिलाओं पर प्रमाण का बोझ
अपने कानूनी अनुभवों से उदाहरण देते हुए, स्वराज ने अपने करियर की एक घटना साझा की। उन्होंने बताया कि एक मामले में सफलतापूर्वक बहस करने के बाद, एक कोर्ट अधिकारी जो पहले उन्हें “मैडम” कहकर संबोधित कर रहा था- अचानक उन्हें “सर” कहने लगा, मानो उनकी योग्यता ने उनके लिंग की सीमाओं को पार कर लिया हो।
उन्होंने कहा, “यह अचेतन पूर्वाग्रह सिर्फ कानून में नहीं है- यह न्यूजरूम, राजनीति और हर पेशे में मौजूद है। महिलाओं से अक्सर दोगुना परिश्रम करने की अपेक्षा की जाती है ताकि उन्हें गंभीरता से लिया जाए।”
स्वराज ने कहा कि लैंगिक पूर्वाग्रह केवल प्रत्यक्ष भेदभाव तक सीमित नहीं है, बल्कि यह भाषा, अपेक्षाओं और संस्थागत कार्यप्रणाली में गहराई से समाया हुआ है। उन्होंने मीडिया में भर्ती प्रक्रिया, कार्यस्थल पर टिके रहने की नीतियों और नेतृत्व की संरचना में बदलाव की जरूरत पर जोर दिया ताकि अधिक महिलाएं निर्णय लेने की भूमिकाओं तक पहुंच सकें।
मीडिया में महिलाओं की सुरक्षा के लिए कानूनी सुरक्षा उपायों को मजबूत करना
स्वराज ने अपने भाषण में कार्यस्थलों में महिलाओं के लिए उपलब्ध कानूनी सुरक्षा उपायों पर भी बात की। उन्होंने विशाखा दिशानिर्देश और 2013 के पॉश (POSH) एक्ट को याद किया और कार्यस्थल पर महिलाओं की सुरक्षा सुनिश्चित करने में सुप्रीम कोर्ट की भूमिका को महत्वपूर्ण बताया।
हालांकि, उन्होंने यह भी इंगित किया कि कई मीडिया संगठनों में अब भी मजबूत आंतरिक शिकायत समितियों का अभाव है, जिससे महिलाओं के लिए उत्पीड़न की शिकायत दर्ज कराना मुश्किल हो जाता है। उन्होंने कहा, “एक न्यूजरूम जिसमें स्पष्ट शिकायत निवारण तंत्र नहीं है, वह अपनी फीमेल एम्प्लॉयीज को विफल कर रहा है।” उन्होंने यौन उत्पीड़न विरोधी कानूनों के सख्त क्रियान्वयन की मांग की।
राजनीति में महिलाओं की भागीदारी और नीति निर्माण में उनकी भूमिका
स्वराज ने महिलाओं की राजनीतिक भागीदारी को नीतियों के निर्माण के लिए आवश्यक बताया। उन्होंने नारी शक्ति वंदन अधिनियम (महिला आरक्षण विधेयक) के पारित होने की सराहना की, जो 2029 तक संसद और राज्य विधानसभाओं में महिलाओं के लिए 33% आरक्षण को अनिवार्य करेगा।
उन्होंने कहा, “जब अधिक महिलाएं नेतृत्वकारी भूमिकाओं में होंगी, तो मीडिया की धारणाएं बदलेंगी और नीतियां भी बदलेंगी जो हमारे दैनिक जीवन को प्रभावित करती हैं।”
स्वराज ने पत्रकारिता, कानून और राजनीति से जुड़ी महिलाओं से आग्रह किया कि वे चुप्पी की संस्कृति को तोड़ें। आपकी चुप्पी आपको बचाती नहीं है। यह सिर्फ किसी और को पीड़ित होने का एक और मौका देती है।
उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि लैंगिक समानता अब केवल सशक्तिकरण तक सीमित नहीं है—बल्कि यह नेतृत्व से जुड़ी हुई है। उन्होंने कहा, “भविष्य महिलाओं का है और भविष्य अभी है।” इसके अलावा उन्होंने पुरुषों व महिलाओं दोनों से आग्रह किया कि वे पूर्वाग्रहों को खत्म करने और एक अधिक समावेशी मीडिया परिदृश्य बनाने के लिए सक्रिय रूप से काम करें।
