जनवाणी के संपादक यशपाल सिंह अब अपनी वाणी खो चुके हैं

इस अखबार का यही हश्र होना था। जिस समूह का संपादक अपने बारे में झूठी खबरें फैलाता तो उससे आप क्या उम्मीद कर सकते हैं। जी हां हम बात कर रहे हैं यशपाल

जनवाणी के संपादक यशपाल सिंह अब अपनी वाणी खो चुके हैं

इस अखबार का यही हश्र होना था। जिस समूह का संपादक अपने बारे में झूठी खबरें फैलाता तो उससे आप क्या उम्मीद कर सकते हैं। जी हां हम बात कर रहे हैं यशपाल सिंह के बारे में जो इस समय दैनिक जनवाणी के संपादक हैं।

शायद आप लोगों को पता नहीं होगा कि जब जनवाणी मेरठ से लांच हो रहा था तो मैंनें यशपाल जी को फोन किया कि आप कब अखबार लांच करने जा रहे हैं तो उन्होंने मुझसे झूठ बोला। चूंकि उनके झूठ पर मुझे शक करने का कोई आधार नहीं था तो मैंने यशपाल जी की बात पर खबर चला दी। फिर पता चला कि खबर यह जानबूझ कर गलत बताई गई है जिससे मार्केट में कोई दिक्कत पैसा न हो। फिर मैंने यशपाल जी को फोन करके पूछा तो वे बोले कि हां मैंने जानबूझकर ऐसा कहा था जिससे लांचिंग को लेकर भ्रम बना रहे। उसी दिन मैंने संपादक की गंभीरता को सोच कर दंग रह गया था। लेकिन मन में विश्वास था कि इस अखबार का हश्र तो बुरा ही होना है क्योंकि जब संपादक ही झूठ बोल रहा हो तो दूसरे के बारे में क्या कहा जाए। खैर चलिए ये पीछे की बात हुई अब खबर है कि यशपाल जी के सभी अधिकार को प्रबंधन ने धीरे धीरे खत्म कर दिया है। यानी जनवाणी में उनकी वाणी को सुनने वाला कोई नहीं। साथ ही जो भी पत्रकार या मीडियाकर्मी उनपर विश्वास करके संस्थान में गए थे वे अब पछता रहे हैं कि उन्होंने यशपाल जी के साथ आकर गलती कर दी।

सूत्र बता रहे हैं कि यशपाल जी केवल मालिकान की हां में हां मिला रहे हैं। वे किसी भी तरह से गाड़ी खींच रहे हैं। पर ये गाड़ी कब तक चलेगी पता नहीं पर उनकी नाव तो अब बीच मंछधार में फंस गई है। कुछ लोग उनकी तारीफ भी करते हैं इसलिए मैं भी यशपाल जी के लिए प्रार्थना करूंगा कि भगवान उन्हें सदबुद्धि दें कि वे पद की गरिमा का ख्याल रखें और अब भूलकर भी किसी पत्रकार की जिंदगी बर्बाद न करें। और अखबार के लिए झूठ न बोंले। वे कह सकते थे कि खबर ये हैं चलाइएगा नहीं या फिर कुछ बहाना बना सकते थे।

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