मेहता की आउटलुक सबसे बड़ी उपलब्धि
Om Thanvi! विनोद मेहता के निधन के साथ निरंतर कमजोर होती संपादक की संस्था थोड़ी और हिल गई। डेबनेयर से लेकर आउटलुक तक मैंने उनकी विफलता और सफलता के कई मुकाम देखे। आउटलुक उनकी सबसे बड़ी उपलब्धि थी। पंद्रह दिन के अंतराल में निकलने वाले इंडिया टुडे को आउटलुक ने न सिर्फ सफल चुनौती दी, उसे भी हफ्तेवार शाया होने को विवश किया। बेबाकी मेहताजी के स्वभाव में थी और उनकी संपादकी में भी; खुशी है कि आउटलुक उसे बराबर निभा रहा है।
मुझे निजी तौर भी एक दफा उनका अप्रत्याशित समर्थन मिला। जब एडिटर्स गिल्ड में महासचिव पद से मैंने एमजे अकबर के आचरण के खिलाफ इस्तीफा दे दिया तो उन्होंने मुझे जूझने को प्रेरित किया था; गिल्ड के इतिहास में पहली दफा आपतकालीन बैठक बुलाई गई, जिसमें अकबर ने माफी मांगी और इस्तीफा वापस हुआ।
मेहताजी के साथ उनका अनूठा तेवर चला गया; लोकतांत्रिक, बेबाक और जीवट वाला तेवर पहले से दुर्लभ था, उनके जाने से जमीन कुछ और पोली हो गई।
विदा, बंधु, विदा!