तीन करोड़ का न तो खेतान ने न ही कंपनी ने कियी खंडन
एस्सार से 3 करोड़ लेकर स्टोरी लिखने तथा फर्जी कंपनी से चंदा का आरोप मामूली नहीं है अवधेश कुमार! इस समय आप के चार नेताओं के निष्काषन पर गंभीर चर्चा हो रही है। लेकिन इस शोर मेें प्रशांत भूषण ने जो गंभीर आरोप दो नेताओं पर लगाए हैं उन पर उतनी चर्चा नहीं हो रही है। प्रशान्त भूषण के अनुसार आशीष खेतान ने तहलका पत्रिका में काम करने के दौरान एस्सार ग्रुप के पक्ष में खबर लिखने के लिए कंपनी से 3 करोड़ रुपये की रिश्वत ली। दरअसल, गोवा में पत्रिका से फेस्टिव के लिए इस समूह ने धन दिया था। इसलिए उसके पक्ष में यह स्टोरी लिखी गई थी। यह कंपनी 2जी घोटाले में आरोपी है। उनकी यह स्टोरी 31 दिसंबर 2011 को तहलका के अंक में छपी थी। प्रशांत का कहना है कि उसमें खेतान ने सलमान खुर्शीद की राय के आधार पर एस्सार का बचाव किया था। इसमें सीबीआई द्वारा एस्सार के मालिक शशि रुइया के खिलाफ मामला दायर करने, उनसे पूछताछ को गलत बताते हुए जांच एजेंसी को ही कठघरे में खड़ा किया था। आशीष खेतान ने इसका प्रतिवाद कर दिया है। उनने भूषण परिवार पर 500 से 700 करोड़ की संपत्ति का स्रोत पूछ लिया है। खेतान ने कहा है कि क्या वो पिता पुत्र पीआइएल का बिजनेस करते हैं? अब दोनों में इस विषय पर लड़ाई होगी।
तहलका के उस स्टोरी में कोई भी पक्षपात देख सकता है। यह घोटाला था या नहीं था यह भी अलग विषय है पर पत्रिका अगर इसे घोटाला मानती थी तो फिर एक उद्योगपति के पक्ष में इस ढंग से तर्क देने तथा सीबीआई की कार्रवाई को गलत साबित करने का क्या अर्थ था? तहलका के गोवा फेस्टिव के लिए एस्सार कंपनी ने प 3 करोड़ दिए थे या नहीं? इसका खंडन न तो खेतान ने किया है न कंपनी ने। कोई कंपनी अकारण इतनी बड़ी राशि कैसे दे सकती है? खेतान चाहें तो भूषण परिवार की संपत्ति की जांच की मांग करें, पर उनका चरित्र और उनका काम संदेह के घेरे में आ जाता है भले उसमें से उनको कम राशि मिली हो या फिर मिली हो या नहीं। पंकज गुप्ता पर पार्टी की राजनीतिक मामलों की समिति की अनुमति लिए बगैर 2 करोड़ रुपये का चेक फर्जी कंपनी से लेने का आरोप लगाया गया था। एक ही कंपनी ने अलग-अलग नामों से 50 -50 लाख के चार चेक दिए थे। आने वाले समय में हमें और कई ऐसे गलत तरीके से या गुप्त तरीके से पार्टी के लिए चंदा लेने के कारनाने सुनने पड़ेंगे। खैर, इस समय पार्टी के सभी प्रमुख नेता खेतान के साथ हैं, पर यह मामला यूं ही रफा दफा नहीं होगा। खेतान को अपनी उस स्टोरी लिखने के पीछे की सोच को सत्यनिष्ठा एवं न्यायनिष्ठा तो साबित करनी ही चाहिए।