अरे सुब्रत राय और भगोड़ों, लोगों की हाय तुम्हें जीने नहीं देगी !
‘सरऊ ! खूब किहौ परधानी, सरऊ ! खूब किहौ परधानी, खूब किहो मनमानी सरऊ, तबै गई परधानी सरऊ, खूब किहो परधानी सरऊ। हतनेन दिन मा गाल चुचुकिगै, तब कटत रही बिरयानी, सरऊ ! खूब किहौ परधानी, सरऊ ! खूब किहौ परधानी”। हमारे एक मित्र हैं डॉक्टर सुरेश कुमार पाण्डेय। मूलत: गोंडा के तरबगंज बाजार में रहने वाले डॉक्टर पाण्डेय जब दो साल पहले रिटायर हुए तो वकालत को अपना लिया। हैं मूलत: भौतिकी के छात्र, लेकिन लोक-संस्कृति और खास कर चुटीली कविताएं लिखना, याद करना और किसी मुफीद मौके पर उन्हें दाग देना उनकी खासियत और शगल भी है।
करीब बीस साल पहले डॉक्टर पाण्डेय ने यह कविता सुनायी थी, तो एक जमाने में सुब्रत राय की ऐयाशी और आजकल हो रही छीछालेदर पर यह लाइनें गजब सटीक बैठीं। हुआ यह कि आज शाम मैं सहारा शहर के भीतर गया। सिर्फ यह देखने कि उनके इस अन्त:पुर यानी हरम की हालत क्या है। पाया कि मुख्य दरवाजे पर कुत्ते लोट रहे हैं। वहां बनी विशाल सिंह-प्रतिमाएं देखरेख के बिना खुजैले कुत्ते की तरह दांत चियार रही हैं। सुरक्षाकर्मी इधर-उधर ऊंघ रहे हैं। सुब्रत राय के म्यूजियम में अब कोई नहीं जाता। उनकी पुरानी जीप और मोटरसायकिल पर मोटी धूल जम चुकी है। पूरे परिसर में महीनों से झाडू तक नहीं लग रही है। घास और जंगली पौधों ने फूल के पौधों को दबोच लिया है। रवींद्रनाथ ठाकुर की आदमकद मूति की हालत बदहाल है। कभी दिलकश नजारे दिखाने वाले सारे फौव्वारे महीनों से बंद हैं। उसमें पानी सूख चुका है, काई जमी है। गेट के आहर-बाहर ऊंची घास जम चुकी है। कारण मालियों को दफा कर दिया गया है। खर्च बचाने के लिए। कास्ट-कटिंग। कभी सारे दफ्तरों में घुसते ही शिमला-मनाली-कुल्ली जैसी शीतलता उछलती-फांदती रहती थी, वहां मानो हीटर चल रहा है। सारे एसी बंद हो चुके हैं और चंद लगे पंखों ने आग उगलना शुरू कर दिया है। करीब 50 फीसदी कर्मचारी खुद ही गैर-हाजिर हो चुके हैं। जाहिर है कि पिछले छह महीनों से वेतन नहीं मिलेगा, तो कब तक कोई काम करेगा? वह तो धन्य है वह प्रदीप मण्डल, जिसने सहारा टावर की नवीं मंजिल से कूद कर आत्महत्या कर ली, उसके बाद से ही तय हुआ है कि हर कर्मचारी-अधिकारी को उनकी औकात-ओहदे के मुताबिक़ अब हर महीने 7 से लेकर 13 हजार रूपया महीना दिया जाएगा। लेकिन कब तक, इसका जवाब किसी के पास नहीं। कैंटीन तो हमेशा-हमेशा के लिए ही लगता है कि बंद ही हो गयी है। नतीजा, चाय-भूजा इस विशाल सहारा शहर परिसर के बाहर खड़े ठेलों से आया-मंगवाया जाता है। चकाचक सफाई का नमूना रहे इन दफ्तरों में धूल और काकरोचों-दीमकों का कब्जा है। फाइलों और मेज पर धूल का आसन है। महीनों से झाड़ा तक नहीं गया है यह पूरा परिसर। शौचालय में भीषण दुर्गन्ध है। सफाईकर्मचारियों को कास्ट-कटिंग के नाम पर हटा दिया गया है। फिनायल और पोंछा तक नहीं लग रहा है। तुम धन्य हो सुब्रत राय कि तुमने कितने निरीह लोगों को अपनी ऐयाशी के लिए उनका जीवन तबाह कर दिया। पूरी कम्पनी में आत्महत्या की खबरों को लेकर सारे कर्मचारी बेहद सकपकाये हुए हैं। अरे सुब्रत राय और उनके भगोड़ों और जेल में बंद चार सौ बीसियों ! इन्ही कर्मचारियों की हाय तुम्हें जीने नहीं देगी।
कुमार सौवीर के एफबी वाल से