‘विश्ववार्ता’ को बड़ा झटका, एक साथ आधा दर्जन लोगों ने छोड़ा साथ
संपादकीय निदेशक अशोक पाण्डेय और संपादक प्रद्युम्न तिवारी के व्यवहार से थे क्षुब्ध
अखबार में एमडी आशीष बाजपेयी की नहीं चलने दे रहे संपादकीय निदेशक अशोक पाण्डेय
और भी कई लोग छोड़ सकते हैं विश्ववार्ता लखनऊ का साथ
संपादकीय निदेशक पर अखबार पर कब्जा जमाने का लग रहा आरोप
कर्मचारियों को दो महीने से नहीं मिली सैलरी, दीवाली रही काली
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लखनऊ से प्रकाशित दैनिक समाचार पत्र ‘विश्ववार्ता’ को बड़ा झटका देते हुए एक साथ आधा दर्जन लोगों ने उसे अलविदा कह दिया है। ये सभी जनरल और डाक डेस्क पर कार्यरत थे। इसकी दो बड़ी वजह हैं। एक तो संस्थान अपने कर्मचारियों को समय से सैलरी नहीं दे पा रहा और दूसरा संपादकीय निदेशक अशोक पाण्डेय और संपादक प्रद्युम्न तिवारी का खराब व्यवहार। सबसे शर्मनाक और अमानवीय बात तो यह है कि कर्मचारियों को दो महीने से सैलरी नहीं दी गई, यहां तक कि उनकी दीवाली भी काली हो गई।
अशोक पाण्डेय अपने द्वारा लाए गए लोगों पर तो मेहरबान रहते हैं जबकि दूसरे लोगों को अकसर नौकरी से निकाल देने की धमकी देते रहते हैं। बात-बात में गाली भी देते रहते हैं। वहीं प्रद्युम्न तिवारी तानाशाही रवैये के साथ डेस्क पर लोगों से काम कराते हैं। छोटी सी गलती पर नौकरी से निकाल देने की धमकी दे देते हैं। इन लोगों ने आफिस में अराजक माहौल बना रखा है। डेस्क पर कार्यरत लोग आतंकित रहते हैं इनके आचरण से।
मजेदार बात यह है कि संपादकीय निदेशक अशोक पाण्डेय अखबार के एमडी आशीष बाजपेयी की भी बिल्कुल नहीं चलने दे रहे हैं। सब कुछ उन्होंने अपने हाथ में ले रखा है। संपादकीय निदेशक महोदय एमडी की बात सुनते भी नहीं। संस्थान में वही होता है जो अशोक पाण्डेय चाहते हैं। सूत्रों के मुताबिक अशोक पाण्डेय अखबार पर अपना कब्जा जमाना चाहते हैं। इसी के चलते जो भी पुराने और मैनेजमेंट द्वारा नियमबद्ध तरीके से रख हुए लोगों को हटाकर अपने चाटुकारों को एक-एक कर बिठाते जा रहे हैं।
अशोक पाण्डेय का नाम पुराने सबसे विवादित संपादकों में शुमार है। ये वही अशोक पाण्डेय हैं जो उत्तराखंड में भी काफी कुख्यात रहे। उनके नाम उत्तराखंड में अनेक संपत्तियों पर अवैध कब्जे का आरोप है तो वहीं अपने मनमाने तौर-तरीके के चलते जेल तक जाने की नौबत आ गई थी। लखनऊ ‘अमर उजाला’ में भी संपादक के पद पर रहते हुए काफी विवादों को अपने नाम किया। काफी समय से प्रद्युम्न तिवारी और अशोक पाण्डेय की इस विवादित जोड़ी ने बहुत सुर्खियां बटोरी हैं। ये दोनों लोग जिन-जिन संस्थानों में रहे हैं उन सभी संस्थानों में खासकर पुरुष कर्मचारी हमेशा से प्रताडि़त होते आए हैं। पुरुष कर्मचारी लिखने का मंतव्य वही है जो आप समझ रहे हैं। पुरुष और महिला के भेद को लेकर भी अशोक पाण्डेय हमेशा से कुख्यात रहे हैं। खैर, मेरा उद्देश्य उनके चारित्रिक विश्लेषण का नहीं है बस उनके इस व्यवहार से आहत हुआ कि बिना सोचे-समझे फोन के माध्यम से उनको यह बताना पड़ा कि अब आपका व्यवहार बर्दाश्त नहीं हो पा रहा है, अतः बेहद दुख के साथ संस्थान छोड़ रहे हैं।
संस्थान में बार-बार धमकी के रूप में सैलरी को दो-दो महीने के लिए रोक दिया गया। वर्तमान में भी दो महीने से सैलरी को रोके रखा गया, यहां तक कि दीवाली को देखते हुए कर्मचारियों ने बेहद दयनीय स्थिति का हवाला देते हुए अशोक पाण्डेय और प्रद्युम्न तिवारी से विनती की थी कि कृपया अब तो सैलरी दे दीजिए ताकि हम अपने परिवार के साथ दीवाली की खुशियां बांट सकें, बावजूद इसके इन दोनों ने हम कर्मचारियों की दीवाली भी काली कर दी। इसी से आहत होकर संस्थान से एक साथ आधा दर्जन कर्मचारियों ने इस्तीफा दे दिया।
इन सबको देखते हुए यह कहना गलत न होगा कि लखनऊ ‘विश्ववार्ता’ दैनिक की उल्टी गिनती शुरू हो चुकी है। कब सांस टूट जाए, नहीं पता।
(एक कर्मचारी द्वारा भेजे गये पत्र के आधार पर)