लिखो सिर्फ नौकरी न करो, ताकि पत्रकारिता बची रहे…

स्मृतिशेष कुलदीप नैय्यर को शब्दांजलि… 

एक पत्रकार के लिए इससे दुखद समाचार क्या हो सकता है कि सुबह आंख खुलने पर उसे किसी बुजुर्ग पत्रकार की मृत्यु के समाचार से दो-चार होना पड़े….कुलदीप नैय्यर के अवसान का समाचार सोशल मीडिया पर अजीत अंजुम की पोस्ट से मिला…एक पूरी पीढ़ी जिनके लिखे का प्रभाव रहा…विरले ही एेसी पत्रकारिता धर्म का पालन कर पाते हैं…

वर्तमान में सम्पादक प्रबंधक की भूमिका में अधिक है, इसलिए लिखना अपनी हेठी समझता है…मेरे एक पूर्व सम्पादक श्री गिरीश मिश्र जी (जिनके साथ मैंने दैनिक जागरण, हिंदुस्तान व नवभारत में काम किया) कहते थे लिखोगे नहीं तो न पहचान बना सकते हो न मार्केट ही और न अपने भीतर के पत्रकार को संतुष्ट कर पाओगे….

लिखना पत्रकारिता का मूल धर्म है और शब्द ही पत्रकार की पहचान होते हैं… स्मृतिशेष कुलदीप नैय्यर ने इस धर्म व मर्म को बखूबी जिया और आने वाली पीढ़ी के लिए मिसाल छोड़ी….आपातकाल में जिस तरह जाकर खड़े रहे, वह बेमिसाल है…. आज कोई सम्पादक उनकी तरह कलम का प्रयोग करता नहीं दिखता…

काश, सम्पादक नामक जीव अपने पत्रकार होने का दायित्व भी निभाएं… लिखें भी….अपनी कलम गिरवी न रखें…. अपनी ऊर्जा गुटबाजी, सहयोगियों के दमन और मैनेजमेंट की चाटुकारिता में ज़ाया न करें… ताकि पत्रकारिता बची रहे…
यही वर्तमान समय में कुलदीप नैय्यर को सबसे बड़ी श्रद्धांजलि होगी….

कुमार पीयूष के फेसबुक वाल से 

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