नरेंद्र यादव ने खुद को बताया ब्रिटेन का फेमस डॉक्टर, फिर करने लगा हार्ट सर्जरी; 7 मरीजों की मौतों से मची सनसनी
फर्जी डॉक्टर असल में नरेंद्र विक्रमादित्य यादव है, जिसने दस्तावेजों में खुद का नाम एन जॉन केम बताकर अस्पताल में नौकरी हासिल की थी. कलेक्टर के आदेश पर जांच कमेटी ने अस्पताल से दस्तावेज जब्त किए, जिसमें आरोपी के फर्जी प्रमाणपत्रों का खुलासा हुआ.
दमोह जिले में एक मिशनरी अस्पताल में फर्जी डॉक्टर के हाथों हार्ट सर्जरी के बाद 7 मरीजों की मौत के सनसनीखेज मामले ने भूचाल मचा दिया है. इस घटना ने स्वास्थ्य विभाग और प्रशासनिक व्यवस्था पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं. मुख्यमंत्री मोहन यादव ने इसे गंभीरता से लेते हुए स्वास्थ्य विभाग को ऐसे मामलों में सख्त कार्रवाई के निर्देश दिए हैं, वहीं डिप्टी सीएम और स्वास्थ्य मंत्री राजेंद्र शुक्ल ने अस्पताल और आरोपी डॉक्टर के खिलाफ कठोर कदम उठाने की बात कही है.
दमोह के मिशन अस्पताल में जनवरी-फरवरी के दौरान 7 मरीजों की मौत के बाद यह मामला तब सुर्खियों में आया, जब बाल कल्याण समिति के अध्यक्ष और अधिवक्ता दीपक तिवारी ने कलेक्टर को शिकायत दर्ज कराई. शिकायत में आरोप लगाया गया कि खुद को ब्रिटेन का मशहूर कार्डियोलॉजिस्ट प्रोफेसर बताने वाले एन जॉन केम ने बिना अनुभव के हार्ट सर्जरी की, जिससे मरीजों की जान चली गई.
जांच में पता चला कि यह एक फर्जी डॉक्टर असल में नरेंद्र विक्रमादित्य यादव है, जिसने फर्जी दस्तावेजों के आधार पर खुद का नाम एन जॉन केम बताकर अस्पताल में नौकरी हासिल की थी. कलेक्टर के आदेश पर जांच कमेटी ने अस्पताल से दस्तावेज जब्त किए, जिसमें आरोपी के फर्जी प्रमाणपत्रों का खुलासा हुआ.
तिवारी ने दावा किया कि सात मौतों की पुष्टि जांच में हुई है, हालांकि वास्तविक संख्या इससे अधिक हो सकती है. उन्होंने बताया कि एक पीड़ित ने उनसे संपर्क कर घटना का खुलासा किया था.
पीड़ित के मुताबिक, वह अपने दादाजी को हार्ट की समस्या के लिए अस्पताल ले गया था, लेकिन डॉक्टर पर शक होने पर उसने ऑपरेशन नहीं कराया और उन्हें जबलपुर ले गया, जहां वे स्वस्थ हो गए. इस शिकायत के बाद जांच शुरू हुई, लेकिन आरोपी फरार हो गया.
फर्जी डॉक्टर का विवादों से पुराना नाता
जांच में सामने आया कि नरेंद्र विक्रमादित्य यादव उर्फ एन जॉन केम का विवादों से पुराना नाता है. हैदराबाद में उसके खिलाफ आपराधिक मामला दर्ज है और वह देश के कई शहरों में धोखाधड़ी कर चुका है. साल 2023 में उसने ट्विटर पर वेरिफाइड आईडी से ट्वीट कर यूपी सीएम योगी आदित्यनाथ की तारीफ की थी, जिसमें कहा गया था कि फ्रांस के दंगों को रोकने के लिए योगी को भेजा जाए. इस ट्वीट ने सुर्खियां बटोरी थीं और कई नेताओं ने इस पर कटाक्ष किया था. उसने योगी और बिहार सीएम नीतीश कुमार के साथ फर्जी फोटो भी साझा किए थे. दमोह से पहले वह नरसिंहपुर में भी नौकरी कर चुका है और होटलों में रहकर अचानक गायब होने की उसकी आदत रही है.
जांच में लापरवाही और सवाल
इस मामले में कई सवाल अनुत्तरित हैं. सात मौतों की बात कही जा रही है, लेकिन किसी भी शव का पोस्टमॉर्टम नहीं हुआ और न ही पुलिस को सूचना दी गई. अस्पताल के दस्तावेजों में मौतों की पुष्टि हुई, लेकिन सरकारी रिकॉर्ड में इसका उल्लेख नहीं है. स्वास्थ्य विभाग की लापरवाही भी सामने आई है, क्योंकि नियमानुसार नए डॉक्टर के दस्तावेजों की जांच मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी (CMHO) को करना चाहिए, जो गंभीरता से नहीं हुई. राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने भी मामले को गंभीरता से लिया है और जांच शुरू कर दी है. आयोग के सदस्य प्रियंक कानूनगो ने कहा कि प्रथम दृष्टया कलेक्टर दोषी प्रतीत होते हैं.
जिला कलेक्टर सुधीर कोचर ने कहा, “मामला जांच में है, इसलिए अभी कोई टिप्पणी नहीं करूंगा. जांच पूरी होने पर कार्रवाई होगी.”
वहीं, सीएसपी अभिषेक तिवारी ने बताया कि कलेक्टर की रिपोर्ट के आधार पर मुकदमा दर्ज किया जाएगा. अस्पताल पर आयुष्मान योजना के तहत सरकारी फंड के दुरुपयोग का भी आरोप है, जिसकी जांच एनएचआरसी कर रहा है.
CM मोहन यादव का बयान
मुख्यमंत्री मोहन यादव ने भोपाल में इस घटना पर बड़ा बयान देते हुए कहा, “हमारी सरकार सख्त कार्रवाई कर रही है. मैंने हेल्थ डिपार्टमेंट को निर्देश दिए हैं कि ऐसे और भी मामले हों तो कड़ी कार्रवाई करें. इस तरह की छिपी बातें सामने आने पर तुरंत एक्शन होता है, इसी कारण हमारी सरकार की साख बनी है.”
कार्रवाई करने में सरकार पीछे नहीं हटेगी: डिप्टी CM
वहीं, डिप्टी सीएम और स्वास्थ्य मंत्री राजेंद्र शुक्ल ने इसे “बेहद गंभीर मामला” करार देते हुए कहा, “आरोप सही पाए गए तो इससे गंभीर दूसरा कोई मामला नहीं हो सकता. डॉक्टर के खिलाफ एफआईआर दर्ज हो गई है और जांच जारी है. रिपोर्ट आने के बाद कार्रवाई में सरकार पीछे नहीं हटेगी. जिस अस्पताल ने इस फर्जी डॉक्टर को नियुक्त किया और मरीजों की मौत हुई, ऐसे अस्पताल प्रदेश में नहीं चल पाएंगे. जिला प्रशासन और स्वास्थ्य विभाग दोनों इसकी जांच करेंगे.”
