भास्कर की तालाबंदी से कई आएंगे संकट में

bhaskarAwadhesh Kumar :दैनिक भास्कर दिल्ली संस्करण बंद किए जाने की सूचना अभी कम्प्युटर पर बैठा कुछ लिख रहा था कि अचानक हमारे पुराने मित्र और वरिष्ठ पत्रकार रफीक विशाल का फोन आया। रफीक इंदौर के पत्रकार हैं और नई दुनिया में लेखन के समय से ही उनके साथ संबंध हैं। उन्होंने मुझसे पूछा,‘ सर, कुछ पता है’? मैंने जवाब दिया,‘ क्या’? हमलोग सड़क पर आ गए। मुझे लगा शायद भास्कर ने इन्हें हटा दिया है। लेकिन शब्दप्रयोग था, हमलोग। मैंने पूछा,‘कैसे’? उत्तर था, भास्कर दिल्ली संस्करण 1 सितंबर से नहीं निकलेगा। यह सुनते ही कुछ समय के लिए मेरी आवाज बंद हो गई। पता चला कल रात इसकी घोषणा अचानक की गई। इसीलिए आज ऑप एड पृष्ठ नहीं निकला है। श्री विमल झा ने कल ही मुझसे एक लेख लिखवाया था। सुबह अखबार देखा तो पृष्ठ ही नहीं था। ऐसा एकाध बार पहले भी हुआ है। सोचा, शायद कल आ जाएगा। लेकिन इसका कारण तो और है। रफीक एक अच्छे पत्रकार और भलेे इन्सान हैं। वे इन्दौर से दिल्ली काफी उम्मीद से आए थे। उनकी पत्नी बीमार हैं, जिनका इलाज चल रहा है। उनके लिए नौकरी अपरिहार्य है। रफीक अकेले नहीं हैं ऐसे। भास्कर में काम करने वाले कई मित्र उत्कृष्ट श्रेणी के पत्रकार हैं। श्री हरिमोहन मिश्रा जी के ज्ञान और व्यक्तिगत व्यवहार कई मायनों में आदर्श हैं। इसी तरह और लोग हैं। एक अखबार बंद होने का प्रत्यक्ष-परोक्ष असर न जाने कितने लोगांे पर पड़ता है। अनेक लेखक भास्कर में लिखते थे, जिन्हें आत्मसंतुष्टि के साथ मानदेय मिलता था। उन सारे लोगांे की आय और आत्मतुष्टि का बड़ा साधन एकाएक बंद हो गया। मैं भी उसमें शामिल हूं। भास्कर ने दिल्ली संस्करण में काफी प्रबुद्ध पाठक बनाए थे। उनके लिए भी यह बहुत बड़ा धक्का है। हमें अपने
लेखों पर बराबर उनकी प्रतिक्रियाएं मिलतीं थीं। आखिर कोई अखबार बंद क्यों किया जाता है? भास्कर एक ओर तो पटना संस्करण आरंभ कर रहा है, इसके पूर्व झारखंड संस्करण निकाल चुका है और दूसरी ओर बंद करने का निर्णय। इनके बीच कोई सुसंगति नहीं। दिल्ली संस्करण में कोई समस्या नहीं थी। आर्थिक संकट का तो प्रश्न ही नहीं था। फिर ऐसा निर्णय क्यों किया गया? इसका उत्तर तो मिलना चाहिए। आखिर किसी अखबार या संस्थान को बंद करने का कोई तो आधार होना चाहिए। हो सकता है भास्कर की देखादेखी कोई और मालिक ऐसा कर बैठे। क्या किसी मालिक को, जो कि शेयर बाजार में जाने के बाद सम्पूर्ण मालिक भी नहीं होता, एकपक्षीय तरीके से किसी अखबार या ऐसे संस्थान को बंद करने का अधिकार होना चाहिए? पत्रकारों के लिए तो यह आफत का समय है। इसके पूर्व टीवी 18 से काफी पत्रकार और आम कर्मचारी निकाले गए। इसके पूर्व नईदिल्ली टेलीविजन के मुंबई कार्यालय से काफी संख्या में लोग हटाए गए…. लंबी कथा है। लेकिन इसका उपाय क्या है? जब देश की नियति बनाने वाली संसद अपने को पूंजीशाहों और मीडिया स्वामियों पर अंकुश लगाने में अक्षम पा रही है या फिर किन्हीं कारणों से ऐसा करना नहीं चाहती तो फिर अपने पास दूसरा विकल्प तलाशने की आवश्यकता है। न्यायालय में मामला इतना लंबा खींचता है कि वेतन पर जीने वाले लोगों के लिए उतने समय तक अड़े रहना कठिन हो जाता है। वैसे भी न्यायालय वित्तीय क्षतिपूर्ति के लिए तो आदेश दे सकती है, संस्थान को दोबारा आरंभ करने के लिए नहीं।

Loading...
loading...

Related Articles

Back to top button