विनोद दुआ : ज़ायका इंडिया का से कांग्रेस की व्यक्तिगत पत्रकारिता तक
किसी की तबीयत बहुत खराब हो तो हर कोई यही कहता है कि उसे दुआ की जरूरत है। मशहूर पत्रकार विनोद दुआ का इन दिनों कुछ ऐसा ही हाल है। उन्हें भी दुआओं की जरूरत है। दुआ इस बात की कि जल्दी से देश में उनकी मनपसंद कोई सरकार आ जाए ताकि वो पहले की तरह ‘देश के लिए खा’ सकें। आपको याद होगा कि विनोद दुआ एनडीटीवी चैनल पर ज़ायका इंडिया का नाम से एक प्रोग्राम किया करते थे। इस प्रोग्राम में उनकी टैगलाइन थी- ‘हम देश के लिए खाते हैं’। विनोद दुआ की दिमागी हालत और देश के लिए खाने की उनकी तीव्र इच्छा के पीछे क्या कारण है ये आम लोगों के लिए रहस्य से कम नहीं। हम आपको बताएंगे कि इतने बड़े पत्रकार होकर भी विनोद दुआ किस तरह पांचवीं क्लास के बच्चों की तरह झूठ बोलने लगे हैं और इस रोग का कारण क्या है। लेकिन उससे पहले जानिए कहानी उनके ज़ायका इंडिया की।
यह बात कम लोगों को याद होगी कि 2007 के गुजरात विधानसभा चुनाव में विनोद दुआ बहुत सक्रिय थे। उनकी बातों से ऐसा लगता था कि मानो वो इस बार नरेंद्र मोदी को चुनाव हरवाकर ही दम लेंगे। लिहाजा चुनाव से पहले वो पूरे एक महीने तक गुजरात में ही जाकर टिक गए। इस दौरान वो जब भी किसी से बात करते थे उससे उनका पहला ही सवाल होता था कि “क्या आपको पता है कि आपके मुख्यमंत्री के हाथ खून से सने हुए हैं।” विनोद दुआ ऐसे लोगों के पास ही जाते थे कि इस सवाल का उन्हें मनमाफिक जवाब मिले। कुल मिलाकर उन्हें पक्का भरोसा था कि इस बार मोदी की हार (खात्मा) तय है। मतगणना के दिन विनोद दुआ ही एनडीटीवी पर सुबह से एंकरिंग कर रहे थे। जैसे ही नतीजे आने शुरू हुए पहले 5-10 मिनट में ही समझ में आ गया कि बाजी पूरी तरह से पलटी हुई है। गुजरात में उनकी और उनके चैनल की सारी मेहनत पर जनता ने पानी फेर दिया है। विनोद दुआ इतने अपसेट हुए कि बीच प्रोग्राम से उठकर चले गए। कई दिन तक वो गायब रहे। फिर जब लौटे तो ‘ज़ायका इंडिया का’ नाम का शो लेकर। इस दौरान केंद्र में उनकी मनपसंद कांग्रेस सरकार जनता का पैसा खाती रही और विनोद दुआ बेशर्मी के साथ अपनी पत्रकारिता में उसका जिक्र छोड़कर खुद भी ‘देश के लिए खाने’ में बिजी रहे।
विनोद दुआ इन दिनों हरवक्त चिड़चिड़े दिखते हैं। ऐसा लगता है मानो किसी ने कोई कर्ज दिया है जिसे उन्हें चुकाना है। इसके लिए वो किसी भी हद तक झूठ फैलाने के लिए तैयार हैं। झूठ को वो ऐसी चाशनी में लपेटकर पेश करते हैं कि आम लोग पकड़ भी नहीं पाते। पिछले दिनों जब रेटिंग एजेंसी मूडीज़ ने भारत की रेटिंग में 14 साल बाद सुधार किया तो विनोद दुआ की बौखलाहट की सारी हदें पार कर गए। आजकल झूठ बोलने की मशीन यानी ‘द वायर’ वेबसाइट के लिए काम कर रहे विनोद दुआ ने जो रिपोर्ट दी उसे जानकर आप हैरान रह जाएंगे। उनके जैसे सीनियर पत्रकार एक गंभीर विषय पर इतना मूर्खतापूर्ण विश्लेषण करेंगे ये कल्पना से परे है।
- विनोद दुआ द वायर पर अपने वीडियो प्रोग्राम में मूडीज़ की रिपोर्ट को बार-बार सर्वे बताते रहे। जबकि ये एक आर्थिक दस्तावेज होता है जिसमें कोई भी बात अनुमान या तुक्का नहीं होती। जबकि सर्वे में कुछ गिने-चुने लोगों की राय ली जाती है। इससे पता चलता है कि देश में टीवी के जन्म से ही पत्रकारिता कर रहे विनोद दुआ का आर्थिक ज्ञान कितना कमजोर है।
- विनोद दुआ ने रेटिंग बढ़ने को डूबते को तिनके का सहारा का नाम दिया। लेकिन वो भूल गए कि रेटिंग देश की सुधरी है। सरकार से उनका चाहे जो विरोध हो, लेकिन देश की रेटिंग सुधरने से देश के आम नागरिकों और उद्योगों को लाभ जरूर होता है। लेकिन विनोद दुआ की जवाबदेही शायद जनता से ज्यादा किसी ऐसी महिला के लिए है, जिसने उन्हें सुपारी दे रखी है।
- इतना ही नहीं दुआ जी यह भी दावा कर गए कि सरकार बैंकों की डूबी हुई रकम यानी एनपीए के बारे में जानकारी नहीं दे रही है। जबकि मूडीज़ की रिपोर्ट में एनपीए पर ही अलग से एक पूरा पैरा है जिसमें एनपीए खत्म करके बैंकों की सेहत सुधारने के सरकार के उपायों की तारीफ की गई है। वैसे भी बैंकों के डूबे हुए कर्जे कोई आज की बात नहीं हैं। ज्यादातर रकम वो है जो 2014 से पहले बांटी गई। विनोद दुआ ने इससे पहले कभी इस बात पर चिंता नहीं जताई, अचानक उनकी चिंताओं का कारण कुछ हजम नहीं हो रहा।
- विनोद दुआ ने एक झूठ यह भी बोला कि बैंक जो डूबे हुए कर्ज घोषित कर रहे हैं, उसका श्रेय पिछले गवर्नर रघुराम राजन को जाता है। उसके बाद आए गवर्नर ने इस दिशा में कोई कार्म नहीं किया। इस बात में भी कोई सच्चाई नहीं है।
- इतना ही नहीं उन्होंने यह भी मान लिया कि “कर्जे जो डूब चुके हैं वो वापस नहीं आएंगे।” जबकि सच्चाई यह है कि कांग्रेस के जमाने में पैसे लेकर बैठने वाले कॉरपोरेट्स से वसूली लगातार जारी है। यहां तक कि विजय माल्या की भी लोन के बराबर की संपत्ति कुर्क की जा चुकी है। डूबे हुए कर्जों को निकालने के लिए देश में एक कानूनी व्यवस्था है अभी तक इसमें कानूनों की ढिलाई भी आड़े आती थी। लेकिन मोदी सरकार ने इससे जुड़े कड़े कानून बनाए हैं, जिससे पैसे लेकर भागना अब नामुमकिन हो चुका है। हैरानी है कि विनोद दुआ को यह बात पता ही नहीं।
- विद्वान दुआ जी ने यह भी कहा कि मूडी रेटिंग अपग्रेड होने का सीधा संबंध बैंकों की सेहत के साथ है। इसलिए यह नहीं सोचना चाहिए कि यह सरकार के कदमों से हुआ है। उनकी इस बात पर हंसा ही जा सकता है क्योंकि खुद मूडी ने नोटबंदी, जीएसटी और कारोबार नियमों में सुधार को बड़ा कारण माना है।
- द वायर के इसी कार्यक्रम में पिछले साल विनोद दुआ ने बहुत खुश होकर बताया था कि मूडीज़ ने भारत की ‘रेटिंग’ कम कर दी है। जबकि वो रेटिंग नहीं, बल्कि छोटी अवधि में विकास दर कम होने का अनुमान था। उस देश की पत्रकारिता का भगवान ही मालिक है जहां एक कथित बड़ा पत्रकार क्रेडिट रेटिंग और विकास दर के अनुमान का फर्क नहीं जानता।
- विनोद दुआ ने पीएम मोदी की लोकप्रियता पर PEW सर्वे पर भी यह कहते हुए सवाल उठाया है कि उसमें सैंपल सिर्फ 2464 लोगों का था। उनकी शिकायत यह भी है कि “सर्वे जनवरी से फरवरी 2017 के बीच हुआ। इस दौरान मोदी ने 50 दिन का वक्त जनता से मांगा था।” जबकि सच्चाई यह है कि पीएम ने जो 50 दिन का वक्त मांगा था वो जनवरी के पहले हफ्ते में ही खत्म हो गया था। इसके बाद भी लोगों को कैश की दिक्कतें जारी थीं। इसके बावजूद सर्वे में लोकप्रियता बढ़ना बड़ी बात है। रही बात सैंपल साइज की तो अगर लोकप्रियता कम होने की बात होती तो विनोद दुआ जैसे पत्रकार इसी सर्वे को माला लेकर जप रहे होते।
इन तथ्यों को लेकर हमने विनोद दुआ के साथ काम कर चुके कुछ पत्रकारों से बात की। ज्यादातर लोगों का मानना था कि विनोद दुआ भले ही खुद को सत्ता विरोधी पत्रकार दिखाते हैं, लेकिन सच्चाई यह है कि वो कांग्रेस के एजेंट से ज्यादा कुछ नहीं। अभी कांग्रेस सत्ता में नहीं है तो वो बेचैन हैं और हर साल में मोदी को सत्ता से बाहर करने की कोशिश कर रहे हैं। वो अलग बात कि इस कोशिश में वो 2007 से लगातार फेल हो रहे हैं। हो सकता है कि बीजेपी की सरकार बनने के बाद उनके लिए पहले की तरह ‘खाना’ मुश्किल हो गया है, लिहाजा वो हर झूठ फैला रहे हैं, जिससे जनता के बीच प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनकी सरकार के कामकाज को लेकर भ्रम फैलाया जा सके।