संजोग से नही, मेहनत, लगन, क़ाबलियत से बने है संजोग वाल्टर

लाख मुश्किलें हो राहों में तो कोई भी इंसान अपने रास्ते बदल देता है, कामयाबी की बुलंदी हर किसी को संजोग से नही मिलती और इसकी जीती जागती मीसाल है हमारे संजोग भाई, नाम भी संजोग से नही मिला है, सोच समझ कर नाम मिला है तभी वाल्टर को पूरी तरह परिभाषित करता है इनका व्यक्तित्व,
अपने वाल्टर रूपी नाम के अनुरूप संजोग भाई अकेले ही एक सेना है और अपने साथियों और परिवार के सामने आने वाली हर मुश्किलों में ये सेना हज़ारों पर भारी है, कैंसर जैसी लाइलाज बीमारी को अपनी हिम्मत, और हौसले से न सिर्फ शिकस्त दी बल्कि सैकड़ो लोगो से गुटखा और पान छुड़वाने का बेमिसाल काम भी अंजाम दिया।
हमारी 25 सालों की पत्रकारिता के सफ़र के एक बेशकीमती सितारे है जिनकी जगमगाहट और आत्मशक्ति के किस्से दुनिया में अपनी रौशनी बिखेर रहे है,, इन 25 सालों में मीडिया के क्षेत्र में भी बहुत कुछ बदल गया, मीडिया का स्वरूप प्रिंट से डिजिटल की तरफ मुड़ गया है, मोबाइल पर बटन दबाते ही जानकारियां मिल जाती है, गलत हो या सही आज के दौर की पत्रकारिता आगे निकलने की होड़ में हर खबर को ब्रेकिंग बना कर अपनी अपनी दुकानों में किसी सजावटी पकवान की तरह TRP बढ़ाने के लिए गूगल बाबा से मिली खबरो को परोस रहा है। वही एक दौर था जब लोकल न्यूज़ चैनल अपनी विश्वसनीयता बनाये रखने के लिए कड़ी मेहनत करते दिखाई देते थे, रात दिन की खबरो की विश्वसनीयता के लिए ग्राउंड जीरो रिपोर्टिंग होती थी जिसमें संजोग भाई का अपना लोकल चैनल लखनऊ वासियीं के लिए बड़ा नाम था।
पुराने लखनऊ में दंगा, आगजनी हो या सचिवालय में कोई रंगा सियार हो सब संजोग भाई के चैनल पर दिखाई देता था। सच्चाई और विश्वसनीयता ऐसी की किसी फैक्ट चेक की ज़रूरत नही पड़ती थी। अपने चैनल पर संजोग भाई का कथन जो हमने कहा वही खबर कहलायी उस दौर में दिखाई देता था।
वो दौर हो या आजतक का दौर संजोग से भी संजोग वाल्टर ने कभी खबरों से कोई समझौता नही किया और न ही अपने हालातों से, वाल्टर स्वभाव के चलते संजोग भाई का रुतबा आज भी क़ायम हैं और मान्यता प्राप्त संवाददाता समिति के चुनाव में भारी बहुमत से सदस्य पद पर जीत कर पत्रकार हितोँ के लिए आवाज़ बुलंद करने में कभी भी पीछे नही रहे।
संजोग से क्रिसमस के मौके पर आज संजोग भाई के दौलतखाने पर उनसे मुलाकात हुई तो यादों के कई पुराने किस्से खुल गए, उनकी स्मृतियों में आज भी लखनऊ के कई इतिहास के पन्ने दर्ज है, बात चाहे 8 नंबर चौराहे के।नामकरण की हो या हज़रत अब्बास की दरगाह के अनछुए किस्सों की, इमामबाड़े के अंदरूनी इतिहास की मालूमात के साथ नैनीताल के कब्रिस्तान में दफ़न इतिहासकारों के सफर पर भी खूब चर्चा रही।
क्रिसमस केक के साथ लाजवाब बिरयानी संजोग भाई के दिलचस्प किस्सों का मज़ा दबाने में कामयाब रही और क्रिसमस की

बधाई देकर अपनी रवानगी हुई।
डॉ मोहम्मद कामरान
स्वतंत्र पत्रकार
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