‘पत्रकारिता के गॉड नही गोडसे बनते जा रहे हैं रवीश-धारा’
वरिष्ठ पत्रकार योगेश किसलय
देश मे पत्रकारों की एक धारा निकली है। इसे रवीश धारा मान लीजिये। पत्रकार यह समझते हैं कि पत्रकारिता करनी है तो आपमे नकारात्मकता होनी ही चाहिए। मसलन अगर किसी दुकानदार ने आपको सौ रुपये लौटाए तो आपको उस सौ रुपये पर संदेह खड़ा करना ही चाहिए — कि यह नोट नकली तो नही , दुकानदार ने अधिक तो नही काट लिए , यह सौ रुपल्ली कहीं चोरी के तो नही , दुकानदार ने 50 – 50 के नोट क्यों नही दिए जरूर उसकी नीयत में गड़बड़ी है ….. आदि आदि ।
यानी यह वहम पत्रकारों का मूल गुण होना चाहिए ऐसा पत्रकारों को गुमान होता है । दूसरा — पत्रकार राजनीति भी जानता है ,खेल भी जानता है ,अध्यात्म भी जानता है ,इतिहास भी भूगोल भी जानता है , वह संस्कृत भी जानता है, फिजिक्स भी जानता है। दरअसल वह होता है जैक ऑफ आल एंड मास्टर ऑफ नॉन ।लेकिन मजाल है इस ‘ जैक ‘ के ज्ञान पर आप उंगली उठा दे ।वह फोकट का पत्रकार थोड़े है । उसने खाक छाना है तब पत्रकार बना है ।उसपर उंगली उठाने वाले पापी । तीसरा — पत्रकार भीड़ की आवाज नही भीड़ का हिस्सा बन गया है।भीड़ में वह खुद को सुरक्षित मानता है।कोई उसपर उंगली उठाये तो भीड़ उसे बचाएगी या भीड़ ही ढाल बन जाएगी । चौथा — उसे आसानी होती है कि वह किसी विचारधारा का पोषक बने। चाय पानी ,दारू शारू के अलावा बौद्धिक इनपुट भी मुफत का मिलता रहता है। पांच — पत्रकारों को भारी अहंकार होता है कि वह पत्रकार है। अब इस अहंकार के आड़े न नेता आ सकते हैं ना नौकरशाह न बुद्धिजीवी न गरीब गुरबा । क्योंकि उन्हें यह वहम होता है कि खाता न बही ,पत्रकार जो कहे वही सही । और पत्रकार समाज के हर समुदाय को कृतार्थ करने की कूवत रखता है ।
दरअसल रविश धारा एक सहूलियत भरा अनुयायी पन है जिसके सहारे एक गिरोह खुद ब खुद तैयार हो जाता है जिनकी मौलिक समझ नही होती है। जब आप चिल्लाते हैं तो वे भी चिल्लाने लगते हैं और भीड़ होने के कारण आप ध्वनि प्रदूषण के आरोप से बच जाते हैं। रविश ने तो अपनी राह बना ली लेकिन अब कोई दूसरा पत्रकार रविश नही हो सकता । अगर गांधी के अनुयायी गांधी हो जाते तो गांधी ही खत्म हो जाते। बुद्ध ,महावीर ,कबीर ,मीरा जिन्ना, गोडसे सबने अपने रास्ते चुने। गलत या सही लेकिन उनकी सोच निहायत ही मौलिक थी। अब रविश को ढाल बनाकर ,उनका अनुयायी बनकर थोड़े समय के लिए आप खुद को ज्ञानी समझ ले , सुरक्षित समझ ले , उनके विचारों पर कबड्डी खेल ले लेकिन आप रविश नही बन सकते और न ही आपकी आत्मा इस बात को स्वीकार करेगा कि आपने अपने विचारों को फलने फूलने का मौका दिया ।
रविश ने तो माइलस्टोन बना लिया उनके पीछे चलकर आप अपनी प्रतिभा की हत्या क्यों कर रहे हैं। ठीक है रविश आपको अच्छा लगते हैं ,उनसे प्रेरणा लीजिये लेकिन पिछलग्गू क्यों ? अब कुछ लोगो को यह भरम है कि पत्रकार ,लेखक ,रंगकर्मी को सत्ता विरोधी होना चाहिए। क्यों होना चाहिए ? इसलिए कि आपको लिखने में सुविधा हो और सत्ता आपकी खुशामद करे । आप सत्ता के लाभुक न होइए ,,उनके भाँट मत बनिये , पत्तलकार मत होइए लेकिन हलवा को गुह मत घोषित कीजिये । गलत को गलत और सही को सही कहिये। गुह को हलवा तो मत बनाइये। पत्रकार रहिये अहंकार छोड़िए । अपने संस्कारो को जिंदा रखिये ।गर्व कीजिये अपने पूर्वजों की उपलब्धियों पर । दूसरा गांधी अब तक कोई नही बना ,दूसरा गोडसे भी कोई नही बना । आप भी दूसरा रविश बनने की होड़ मत लगाइए। आप जब किसी जो भक्त घोषित करते हैं तो खुद भी चमचे की उपाधि धारण कर लेते हैं । मैं सदैव कहता हूँ किसी को गुरु मत बनाइये ,अपने गुरु खुद बनिये। यह मित्र की गुजारिश है। मुझे न रविश बनना है न सुधीर चौधरी। सबने अपनी राह चुनी है आप भी अपना रास्ता बनाइये। हाँ अपने बचाव के लिए पत्रकारिता, लेखकीय और रंगकर्म धर्म को ढाल की तरह इस्तेमाल मत कीजिये।
(वरिष्ठ पत्रकार योगेश किसलय के फेसबुक वॉल से )