निठारी कांड के निर्णय पर बोले ब्रजेश मिश्रा: ये केस विवेचना की विफलता का जीवित स्मारक
इस फैसले के बाद सोमवार को पीड़ित परिवार के साथ आसपास के लोग खंडहर हो चुकी D-5 कोठी के पास पहुंचे तो उनका दर्द छलक गया।
29 दिसंबर 2006 को सेक्टर 31 के निठारी गांव स्थित डी-5 कोठी के आसपास एक के बाद एक नरकंकाल मिलने से लोगों में सनसनी फैल गई थी। जांच शुरू हुई तो चौंकाने वाले खुलासे हुए। लापता 18 बच्चों और एक कॉलगर्ल की हत्या की बात सामने आई। जांच का जिम्मा सीबीआई को दिया गया। डी-5 कोठी के मालिक मोनिंदर सिंह पंढेर और नौकर सुरेंद्र कोली आरोपी बने, 16 केस में ट्रायल शुरू हुआ। फांसी की सजा कई केस में सुनाई गई।
अब करीब 17 साल बाद हाई कोर्ट ने दोनों को बरी कर दिया। इस निर्णय पर वरिष्ठ पत्रकार ब्रजेश मिश्रा ने सोशल मीडिया प्लेटफार्म ‘एक्स’ पर पोस्ट कर अपनी राय व्यक्त की।
उन्होंने लिखा, ‘तो निठारी के मासूम बच्चों और बेटियों की किसने बोटी-बोटी की? कहां गए वो बच्चे और बेटियां? पंढेर और कोली कोर्ट से बरी हो गए। उनके खिलाफ जांच एजेंसी कोई सबूत नहीं तलाश पायी। ट्रायल कोर्ट ने बिना सबूत कैसे फांसी की सजा सुना दी ये तथ्य हैरान करता है। ट्रायल कोर्ट फांसी की सजा देता है। हाईकोर्ट फाइल देखता है तो कोई ठोस सबूत और चश्मदीद गवाह तक नहीं मिलता।
पंढेर और कोली ने नहीं तो फिर किसने इन मासूमों को मौत के घाट उतारा? मीडिया की नज़रों से जैसे ही ये मामला ओझल हुआ, जांच भी जैसे तैसे निपटा दी गयी। ये केस विवेचना की विफलता का जीवित स्मारक है। और इसको उदाहरण के रूप में याद किया जायेगा। मासूम बच्चों की आत्मा आज भी भटक रही, उन्हे इंसाफ चाहिए। पंढेर और कोली जेल से बाहर आने वाले हैं।’
..तो निठारी के मासूम बच्चों और बेटियों की किसने बोटी-बोटी की ? कहाँ गए वो बच्चे और बेटियां ? पंढेर और कोली कोर्ट से बरी हो गए। उनके खिलाफ जांच एजेंसी कोई सबूत नहीं तलाश पायी। ट्रायल कोर्ट ने बिना सबूत कैसे फांसी की सजा सुना दी ये तथ्य हैरान करता है। ट्रायल कोर्ट फांसी की सजा देता…
— Brajesh Misra (@brajeshlive) October 16, 2023