BBC ने अपने न्यूजनाइट शो में जनता को बनाया ‘पप्पू’ : जानें – कैसे गलत आँकड़ों से पाकिस्तानी ग्रूमिंग गैंग्स को बचाया, ‘गोरों’ के मत्थे जड़ा ‘रेपिस्ट’ का तमगा
बीबीसी ने ये कहकर सच छिपाया कि पाकिस्तानी गैंग्स की बात गलत है। ब्रिटेन में पाकिस्तानी सिर्फ 2-3% हैं, पर 12.9% संदिग्ध होने का मतलब है 4-6 गुना ज्यादा हिस्सेदारी। बीबीसी ने अपराधियों को बचाने की कोशिश की और सच बोलने वालों को गलत ठहराया। ये पत्रकारिता नहीं, जनता के साथ धोखा है।
ब्रिटिश ब्रॉडकास्टिंग कॉर्पोरेशन (बीबीसी) अक्सर आतंकवादियों को बढ़ावा देने या उन लोकतांत्रिक सरकारों के खिलाफ प्रचार करने में व्यस्त रहता है, जो उसकी ‘संकुचित’ विचारधारा से मेल नहीं खाती। जब वह इन कामों में नहीं लगी होती, तो वह ब्रिटिश जनता को धोखा देने में जुट जाती है। खासकर पाकिस्तानी ग्रूमिंग गैंग्स द्वारा किए गए ग्रूमिंग जिहाद के भयानक यौन शोषण जैसे अपराधों को छिपाने में।
इस सप्ताह बीबीसी के न्यूज़नाइट प्रोग्राम ने शायद सबसे शर्मनाक तरीके से ब्रिटिश जनता को गुमराह करने की कोशिश की। यह प्रोग्राम ग्रूमिंग गैंग्स जैसे गंभीर मुद्दे पर ‘गंभीर बातचीत’ के लिए था, जिसे सुनकर शर्मिंदगी, आत्ममंथन और जवाबदेही की उम्मीद की जानी चाहिए थी। लेकिन इसके बजाय बीबीसी ने वही किया जो ब्रिटेन की वामपंथी संस्थाएँ पिछले दो दशकों से करती आई हैं – पीड़ितों से ध्यान हटाने पर, असहज सच्चाई से भटकाकर गलत आँकड़ों पर और जिम्मेदारी से बचकर बहाने बनाने पर।
इस पूरे ड्रामे के केंद्र में था एक ग्राफ, जिसे राष्ट्रीय टेलीविजन पर बड़े गर्व से दिखाया गया। इस ग्राफ में कहा गया कि 55% ग्रूमिंग गैंग के संदिग्ध ‘व्हाइट ब्रिटिश’ थे, जबकि सिर्फ 12.9% पाकिस्तानी थे।
यह एक गंभीर चर्चा का मौका था, लेकिन बीबीसी और शो में आए एक पुलिस अधिकारी ने इसे अपनी छवि चमकाने का मौका बना लिया। उस पुलिस अधिकारी का विभाग वही था, जिसने सालों तक पीड़ितों की अनदेखी की और अपराधियों को नजरअंदाज किया। उसने पूर्व आव्रजन मंत्री रॉबर्ट जेनरिक के इस दावे को ‘गलत’ बताया कि ग्रूमिंग गैंग ‘मुख्य रूप से पाकिस्तानी’ हैं।
यह वही पुलिस विभाग है, जिसने रॉदरहम की एक पीड़िता से कहा था कि वह बाल यौन शोषण पर अपनी सोशल मीडिया पोस्ट डिलीट कर दे। ऐसे विभाग के अधिकारी से, जो ऑनलाइन चर्चा से डरता हो, क्या आप राष्ट्रीय टेलीविजन पर सच बोलने की उम्मीद करेंगे?
लेकिन बीबीसी नहीं चाहता था कि दर्शक यह नोटिस करें कि उनके दिखाए गए ग्राफ में सिर्फ 31% संदिग्धों की जानकारी थी। बाकी 69% मामलों में? कोई नस्लीय पहचान/जातीयता दर्ज ही नहीं थी। यानी दस में से सात संदिग्धों का डेटा ही नहीं था – फिर भी बीबीसी ने इस अधूरे डेटा के आधार पर पूर्व आव्रजन मंत्री रॉबर्ट जेनरिक को गलत और राजनीति से प्रेरित ठहरा दिया।
यह पत्रकारिता नहीं है। यह एक कहानी को गढ़ने की कोशिश है, ताकि पाकिस्तानी मूल के उन ग्रूमिंग गैंग्स को बचाया जा सके, जिन्होंने सालों तक ब्रिटिश नागरिकों का यौन शोषण बिना किसी सजा के किया।
अगर हम उनके गलत आँकड़ों को ही सच मान लें – 12.9% पाकिस्तानी संदिग्ध, जबकि ब्रिटेन में पाकिस्तानी आबादी सिर्फ 2-3% है – तो भी यह 4 से 6 गुना ज्यादा हिस्सेदारी दिखाता है। यह कोई छोटी-मोटी बात नहीं है। यह एक बड़ा सामाजिक संकेत है – वही संकेत, जिसे ब्रिटिश सरकार पिछले दो दशकों से नजरअंदाज, छिपाने और भूलने की कोशिश कर रही है।
लेकिन बीबीसी यहीं नहीं रुका। उसने डेटा का समय भी चुनिंदा तरीके से लिया। दिखाए गए आंकड़े सिर्फ 2024 के थे – यानी एक साल के। जैसे कि ग्रूमिंग गैंग के अपराध कोई कोविड-19 हों, जो हाल ही में शुरू हुए हों। ये अपराध सालों, बल्कि दशकों से चल रहे हैं, जहाँ पुलिस और सामाजिक सेवाओं ने एक गिरजाघर बनाने जितना समय लिया, लेकिन कार्रवाई नहीं की। रॉदरहम में ही आधिकारिक अनुमान है कि 16 साल में 1,400 लड़कियों का शोषण हुआ। इतने बड़े पैमाने को एक साल के ग्राफ में नहीं समेटा जा सकता – इसलिए बीबीसी ने ऐसा दिखाया जैसे यह हुआ ही नहीं।
अपराधों की परिभाषा की बात करें तो, ‘ग्रूमिंग गैंग’ ब्रिटेन में कोई आधिकारिक अपराध श्रेणी नहीं है। इस साल कंजर्वेटिव्स ने इसे शामिल करने की कोशिश की, लेकिन इसे रोक दिया गया। इसका मतलब है कि कोई भी ‘विश्लेषण’ आसानी से ऑनलाइन अकेले शिकारियों, पारिवारिक शोषण, या आपसी सहमति से बने नाबालिग रिश्तों को मिलाकर ग्रूमिंग गैंग के विशिष्ट और सिद्ध पैटर्न को कमजोर कर सकता है – जो लगभग हमेशा पाकिस्तानी मुस्लिम पुरुषों द्वारा कमजोर व्हाइट ब्रिटिश लड़कियों का शोषण करता है। यही पैटर्न रॉदरहम, रोचडेल, टेलफोर्ड, कीगली और ऑक्सफोर्ड में देखा गया है।
लेकिन बीबीसी नहीं चाहता कि आप इस पैटर्न पर ध्यान दें। वे चाहते हैं कि आप ‘राजनीतिक शुद्धता’ पर ध्यान दें, कि ‘पाकिस्तानी पुरुष’ कहना ‘समुदायिक संबंधों’ को नुकसान पहुँचा सकता है। क्योंकि ‘दक्षिणपंथी’ समूह सच का गलत इस्तेमाल कर सकते हैं – जैसे कि असली समस्या बलात्कारी नहीं, बल्कि उनकी नस्लीय पहचान/जातीयता बताने वाले हैं।
इसके अलावा बीबीसी ने पुलिस के अपराध डेटा पर भरोसा किया, जिसे ब्रिटेन की अपनी सांख्यिकी निगरानी संस्था ने 2014 में कहा था कि यह राष्ट्रीय सांख्यिकी के मानकों को पूरा नहीं करता, क्योंकि यह असंगत और अविश्वसनीय है। लेकिन जब मकसद कहानी गढ़ना हो, तो विश्वसनीयता की परवाह कौन करता है?
बात यहीं खत्म नहीं होती। न्यूज़नाइट में पुलिस अधिकारी, जिसके सामने पीड़ित बैठे थे – जिनमें से कुछ ने दशकों तक न्याय का इंतजार किया… उसने समय बिताया एक कंजर्वेटिव सांसद को गलत ठहराने में, न कि अपनी पुलिस फोर्स की विफलता को स्वीकार करने में। यह उन महिलाओं के सामने हुआ, जिनका तस्करी की गई, बलात्कार हुआ और जिन्हें फेंक दिया गया। ऐसा किया उन पाकिस्तानी पुरुषों ने, जिन्हें सांस्कृतिक संवेदनशीलता और राजनीतिक कायरता ने बचाया।
यह सिर्फ मीडिया की विफलता नहीं है। यह संस्थागत विश्वासघात का सबसे बड़ा रूप है।
बीबीसी पर यकीन करने के लिए आपको मानना होगा कि–
- हर ग्रूमिंग गैंग का संदिग्ध पकड़ा जाता है।
- हर संदिग्ध अपनी जातीयता सही बताता है, भले ही वह अंग्रेजी न बोलता हो।
- हर अपराध को ईमानदारी से दर्ज किया जाता है, बिना ‘विविधता विभागों’ के दबाव के।
जो कोई भी इन मामलों को जानता है, वह समझता है कि ये मान्यताएँ हास्यास्पद हैं। पुलिस ने कई बार दस्तावेजों में दर्ज मामलों में पाकिस्तानी अपराधियों को इसलिए नजरअंदाज किया क्योंकि वे नस्लवादी कहलाने से डरती थी। काउंसिल अधिकारियों ने चुप्पी साधी, ताकि ‘नस्लवादी’ का ठप्पा न लगे। पीड़ितों को झूठा कहा गया। सच बोलने वालों को नौकरी से निकाला गया।
और अब भी साल 2025 तक में बीबीसी ने कुछ नहीं सीखा। न्यूज़नाइट का यह एपिसोड चर्चा नहीं था। यह एक बचाव था – एक नाकाम नौकरशाही का, गलत डेटा का और उस सांस्कृतिक अभिजात वर्ग का, जो बच्चों की सुरक्षा से ज्यादा सोशल इंजीनियरिंग में रुचि रखता है।
रॉबर्ट जेनरिक ने कहा कि ग्रूमिंग गैंग मुख्य रूप से पाकिस्तानी हैं। वह डेटा और भावना दोनों में सही हैं। इससे वह बीबीसी के लिए असुविधाजनक हो सकते हैं, लेकिन वह ईमानदार हैं।
वहीं, बीबीसी ने एक बार फिर दिखाया कि ब्रिटेन की सत्ता के लिए सच वैकल्पिक है। कहानी जरूरी है।
और यही सबसे खतरनाक ग्रूमिंग है।
कंजर्वेटिव सांसद क्रिस फिल्प (क्रॉयडन साउथ) ने हाल ही में बताया, “20 साल के अध्ययन से पता चलता है कि बलात्कार गैंग के ज्यादातर अभियोजन -83% पाकिस्तानी मूल के अपराधियों से संबंधित थे।” फिर भी बीबीसी के न्यूज़नाइट ने हाल के प्रसारण में इन तथ्यों को गलत तरीके से पेश किया और राजनीतिक शुद्धता के नाम पर भ्रामक एडिटिंग की अपनी लंबी परंपरा को जारी रखा।
A 20 year study shows that the majority of rape gang prosecutions related to perpetrators of Pakistani origin – 83%
Newsnight misrepresented the facts last night
The cover up has to end
We need an proper national inquiry pic.twitter.com/Qrfe9EsKk8
— Chris Philp MP (@CPhilpOfficial) June 3, 2025
फिल्प ने सही कहा, “इस ढकने-छिपाने को खत्म करना होगा। हमें एक उचित राष्ट्रीय जाँच की जरूरत है।” लेकिन ग्रूमिंग अपराधों और अधिकारियों की लंबे समय से चली आ रही अनिच्छा की जाँच करने के बजाय, बीबीसी ने बार-बार पीड़ितों को गुमराह करने, जनता को भटकाने और उन अपराधियों की छवि बचाने का रास्ता चुना, जो उनकी ‘संरक्षित पहचान’ की श्रेणी में आते हैं।
जब ब्रिटिश मीडिया संस्थाएँ अपने दर्शकों को गुमराह करने में व्यस्त थीं, तब ऑपइंडिया जैसी कुछ न्यूज़ साइट्स ने सालों से यूके के ग्रूमिंग गैंग कांड की सच्चाई को लगातार सामने लाया। रॉदरहम और रोचडेल की विस्तृत रिपोर्टों से लेकर बीबीसी की भ्रामक मशीनरी की कड़ी आलोचना तक, ऑपइंडिया ने ब्रिटिश अधिकारियों की व्यवस्थित विफलताओं को उजागर किया – यह नहीं कि उन्हें पता नहीं था, बल्कि इसलिए कि वे दिखावे से डरते थे।
ऑपइंडिया की कवरेज ने न सिर्फ इन अपराधों की भयावहता और पैमाने को दर्ज किया, बल्कि बीबीसी की उस प्रवृत्ति को भी उजागर किया, जो दूसरों के देशों के मामलों में पक्षपाती रिपोर्टिंग करती है, लेकिन यूके को परेशान करने वाली सांस्कृतिक, धार्मिक और वैचारिक समस्याओं को नजरअंदाज करती है। चाहे वह राजनीतिक नेताओं की कायरता हो, कानून प्रवर्तन की मिलीभगत हो, बीबीसी ने या तो इन सब को अनदेखा किया या जनता की राय को गलत दिशा देने के लिए उन्हें तोड़-मरोड़कर पेश किया।
