पत्रकार के भेस में पता नहीं क्या राजनीति कर रहे हैं वेदप्रताप वैदिकः थानवी
दरिंदगी के प्रतीक बन चुके हाफिज सईद से वे किस हैसियत में मिले? वे अपने आपको प्रधानमंत्रियों का सलाहकार बताते आए हैं, अब मोदी-रामदेव के करीब जाहिर करते हैं। अपने चिर-परिचित बड़बोलेपन में खुद को पाकिस्तान में मोदी का प्रतिनिधि तो नहीं जता बैठे? कोई नहीं जानता, पर जिस तरह हाफिज सईद से वे मिले और (वैदिक जी के अनुसार) आतंकवादी ने उनके लिए कार का दरवाजा तक खोला, कहना न होगा एक पत्रकार किसी और चोगे में वहां गया और लौटा।
यह सही है कि पत्रकार के नाते वैदिक किसी से भी मिल सकते हैं, पर पत्रकार के चोगे में नहीं। अगर वे पत्रकार के नाते बेगुनाहों के हत्यारे से मिले तो पंद्रह दिन में लौटकर उसके बारे में कुछ लिखा क्यों नहीं? एक आतंकवादी से ‘बातचीत’ तो कोई भी अखबार छाप देता। वे ‘जनसत्ता’ में भी लिखते हैं। लेकिन लगता है कि एक अनौपचारिक मुलाकात (हाफिज सईद ने ऐसा ही कहा है) को, जिसका कारण संदिग्ध नहीं तो अस्पष्ट जरूर है, वे मीडिया में अपने प्रचार का केंद्र बना रहे हैं। वहां सईद से मिल आने पर गदगद हैं, उसे किसी नायक की तरह सम्मान से संबोधित करते हैं और उसके सभ्य आचरण के किस्से सुनाते हैं।
जो वैदिकजी को जानते हैं, वे उनकी नाटकीय अठखेलियों से वाकिफ हैं। उन्होंने अपनी ही मिट्टी खराब नहीं की, पत्रकार के रूप में मुलाकात का दावा कर, मगर कथित “बातचीत” को लिपिबद्ध/प्रकाशित न कर और हाफिज सईद की तारीफ के पुल बांधकर पत्रकार बिरादरी को नीचे दिखाया है।
Om Thanvi के फेसबुक वाल से