मजीठया लेना है, तो बिहार-झारखंड के पत्रकार हों एकजुट
साथियों, हम सभी जानते हैं कि मजीठिया को डकारने के लिए सभी अखबारों के प्रबंधन हर तरह के तिकड़म कर रहे हैं। वे न सिर्फ सुप्रीम कोर्ट के आदेशों की धज्जी उड़ा रहे हैं, बल्कि श्रम कानूनो की भी खुलेआम अवहेलना कर रहे हैं। ये मालिकान नक्सलियों से भी अधिक खतरनाक हैं। जैसा कि कानून व्यवस्था नक्सलियों के लिए कोई मायने नहीं रखता, ठीक उसी तरह इन मालिकान के लिए भी कानून व्यवस्था कोई मायने नहीं रखता। कुछ मायनों में नक्सली इनसे इसलिए बेहतर है क्योंकि वे ताल ठोंक कर कहते हैं कि हम ऐसे ही हैं।
बहरहाल, प्रबंधन के नापाक मंसूबों पर पानी फेरने के लिए विभिन्न राज्यों के पत्रकारों व गैर पत्रकारों ने कुछ हद तक एकजुटता दिखाई है। वे विभिन्न जगहों से प्रबंधन के खिलाफ लड़ रहे हैं। लेकिन इस मामले में हम बिहार-झारखंड के पत्रकार पीछे हैं। अपने हक के लिए हमें भी एकजुट होना होगा। ताकि प्रबंधन के मंसूबों पर पानी फिर सके।
हकीकत यह है कि हम सभी को मजीठिया की जरूरत है लेकिन रोजी-रोटी के डर से हम में से कोई आगे आना नहीं चाहता। लेकिन इस बात से भी इंकार नहीं किया जा सकता कि हम अगर एकजुट हो जाएं तो प्रबंधन चाह कर भी हमारा कुछ नहीं कर सकता। तो शुरू हो जाइए। डर को त्याग कर एकजुट हो जाइए क्योंकि डर के आगे जीत है। अगर आप मजीठिया के लिए लड़ना चाहते हैं तो [email protected] पर फोन नंबर के साथ संपर्क करें। एकजुट होकर अखबार मालिकों के खिलाफ रणनीति बनाएं।