हिंदी पत्रकारिता का वैभव कभी कम नहीं हो सकता: अमिताभ अग्निहोत्री
30 मई 1826 को ‘उदंड मार्तंड’ नाम से जुगल किशोर शुक्ला ने पहला हिंदी अखबार के रूप में अंक प्रकाशित किया
अमिताभ अग्निहोत्री, वरिष्ठ पत्रकार
30 मई 1826 को ‘उदंड मार्तंड’ नाम से जुगल किशोर शुक्ला ने पहला हिंदी अखबार के रूप में अंक प्रकाशित किया और आज हिंदी पत्रकारिता अपने 200 वर्ष पूरे करने से बस कुछ ही साल पीछे हैं। तमाम पड़ावों से गुजरती हुई हिंदी पत्रकारिता समय के साथ और सशक्त हुई है।
यदि मैं हिंदी और अंग्रेजी पत्रकारिता की बात करूं, तो जनता के मुद्दों के सरोकार हों, या आमजन की भावना से जुड़ना हो, हर घर तक अखबार पहुंचाकर उनके अधिकारों की बात करने का काम हिंदी माध्यम ने अधिक किया है। अंग्रेजी पत्रकारिता से ये संभव नहीं हुआ है। मैं किसी को कम या अधिक नहीं आंक रहा हूं, लेकिन ये मेरी दृष्टि है। हिंदी आमजन की भाषा है, उनके सरोकार की भाषा है।
इस युग के सबसे बड़े संपादक गांधी जी थे, उन्होंने खुद हिंदी में अखबार निकाला क्योंकि वे जानते थे कि आमजन के सरोकार की भाषा तो हिंदी ही है। जब देश आजाद हुआ तो बीबीसी का एक रिपोर्टर गांधी जी के पास जाकर कहने लगा कि आज आप दुनिया के नाम एक संदेश दें, तो गांधी जी ने उससे कहा कि ‘गांधी को अंग्रेजी नहीं आती है’ संदेश का प्रसारण हिंदी में किया जाएगा। वे जानते थे कि भारत की आत्मा हिंदी में है। देश के किसी वर्ग या क्षेत्र की बात प्रादेशिक भाषा में की जा सकती है, लेकिन जब बात समग्रता की आती है तो हिंदी ही एक माध्यम होता है।
हिंदी पत्रकारिता ने सरकारों से लेकर न्यायपालिका तक पर एक सजग दृष्टि रखी है और लोक लाज का एक अंकुश भी लगाया, जोकि लोकतंत्र के लिए बेहद जरूरी होता है। प्रीतिश नंदी एक बड़े पत्रकार रहे हैं। एक बार उन्होंने कहा कि मैनें कई बड़े-2 लोगों के साक्षात्कार लिए हैं और वे जब अपने चरम पर होते थे तो अपने आप हिंदी में अपनी बात कहने लग जाते थे और यही भाव तत्व हिंदी की गति और शक्ति दोनों है। हिंदी पत्रकारिता ने एक बड़ा काम यह भी किया कि वह इस माध्यम को अभिजात्य वर्ग से बाहर लेकर आई। दरअसल देश की आत्मा गांवों में है और खेत-खलिहान की खबरें आगे तक पहुंचाने का काम हिंदी ने किया। एक आम व्यक्ति को न्याय की उम्मीद हिंदी पत्रकारों से होने लगी, ये इस माध्यम की सबसे बड़ी सफलता है। इसलिए मैं हमेशा कहता हूं कि भारत के जन-मन की पत्रकारिता हिंदी पत्रकारिता है।
आप नेताओं को देखिए, सारे काम अंग्रेजी में हो सकते हैं, लेकिन क्या आपने किसी नेता को जनता से वोट की अपील अंग्रेजी में करते हुए देखा है? जब जनादेश की बारी आती है, तो 70 फीसदी भू भाग पर वोट हिंदी में ही मांगे जाते हैं। मैनें पिछले 35 वर्ष में किसी नेता को अंग्रेजी में वोट मांगते हुए नहीं देखा है। दरअसल एक सभा में आदरणीय लाल कृष्ण आडवाणी जी का भाषण हो रहा था। वे हिंदी में बोल रहे थे और फिर अनुवादक उसे प्रादेशिक भाषा में बोलता था, उस सभा में मैं भी था। बाद में मैनें आडवाणी जी से कहा कि देखिए, आप जिस भाषा में बोल रहे हैं, जिसे इतना प्यार दे रहे हैं, आप सत्ता में आते ही उसी भाषा की तिलांजलि दे देते हैं। मेरी बात सुनकर वो थोड़ा गंभीर हुए और कहा कि वैसे तुम कह तो सही रहे हो। इसलिए मैं कहता हूं कि इस देश की आत्मा की भाषा हिंदी ही है। इस देश में सरकार, प्रशासन सब अंग्रेजी में चल रहे हैं। अदालतों का काम भी इसी भाषा में हो रहा है, बेचारा गांव का गरीब मजदूर जो अपना मुकदमा लड़ रहा है, वह इतना तक नहीं समझ पा रहा है कि वकील ने क्या बोला? आज यह सब प्रश्न हमारे सामने खड़े हैं। इस देश में हिंदी पत्रकारिता का वैभव कभी कम नहीं हो सकता है क्योंकि देश वोट से चलता है और वोट के लिए हिंदी जरूरी है।