प्रसाद की दुकान खोलने से पहले बकलोल चुनावी मैदान में दिखाएगा अपनी बकलोली

दलबदलू के नाम से मीडिया जगत में लोकप्रिय इसलिए हैं क्योंकि आए दिन इनकी बकलोल मीडिया को टीआरपी दिलाने का काम करती है लेकिन चुनावी जंग में करारी हार मिलने के बाद अब अपना मुंह छुपाए बैठे हैं कि कहीं कोई गंभीर कार्रवाई करते हुए योगी सरकार से अगर उन्हें निकाल दिया गया तो ना घर के रहेंगे ना घाट के वहीं मीडिया जगत में भी ऐसे बकलोल देखने को मिलते हैं जो न तो किसी मीडिया संस्थान में कभी कार्यरत रहे और न ही किसी चैनल में कभी उनका चेहरा देखा गया, बस परिवार के नाम से अनेक समाचार पत्र का पंजीकरण कराकर स्वंयभू वरिष्ठ पत्रकार कहता घूमता है।

प्रातः वन्दन चुनावी संदेश, सांध्य को भी चुनावी चर्चा इतना ही है बकलोल का पत्रकारिता से नाता

अभी चुनाव की घोषणा भी नहीं हुई है और बकलोल स्वयं को अध्यक्ष पद का प्रत्याशी बताते हुए अनेक सोशल मीडिया के प्लेटफार्म पर चुनावी जंग का ऐलान करते दिख रहा है बकलोल के पास सिर्फ एक ही काम बचा है सूचना एवं जनसंपर्क विभाग के निदेशक से विज्ञापन के नाम पर अपने परिवार के फर्जी समाचार पत्रों के माध्यम से धन कमाना जिससे आगामी चुनाव में अध्यक्ष पद पर अपनी बकलोली दिखा सके।

एस. पण्डित

उत्तर प्रदेश की धरा की बात ही कुछ ऐसी है जहां से देश के प्रधानमंत्री तक का सफर बड़े आसानी से तय किया जा सकता है लेकिन महत्वपूर्ण बात यह है कि देश के प्रधानमंत्री बनने का सफर इतना आसान नहीं होता है जितना राजनीति में अनेक पार्टियों में अपनी बकलोली के चलते पूर्वांचल से आए एक नेता योगी सरकार में भले ही अपनी कामयाबी का डंका पीट रहे हो लेकिन अपने ही घर में पिछड़ी जातियों का झंडा लेकर चलने वाले नेताजी कोई भी सीट नहीं बचा पाए हैं।

दलबदलू के नाम से मीडिया जगत में लोकप्रिय इसलिए हैं क्योंकि आए दिन इनकी बकलोल मीडिया को टीआरपी दिलाने का काम करती है लेकिन चुनावी जंग में करारी हार मिलने के बाद अब अपना मुंह छुपाए बैठे हैं कि कहीं कोई गंभीर कार्रवाई करते हुए योगी सरकार से अगर उन्हें निकाल दिया गया तो ना घर के रहेंगे ना घाट के वहीं मीडिया जगत में भी ऐसे बकलोल देखने को मिलते हैं जो न तो किसी मीडिया संस्थान में कभी कार्यरत रहे और न ही किसी चैनल में कभी उनका चेहरा देखा गया, बस परिवार के नाम से अनेक समाचार पत्र का पंजीकरण कराकर स्वंयभू वरिष्ठ पत्रकार कहता घूमता है।

उत्तर प्रदेश की मीडिया जगत का वरिष्ठ पत्रकार के रूप में बकलोली करने वाला यह बकलोल भोजपुरी फिल्मों में भी अपने अभिनय को लेकर कामयाब ना हो सका और एक नया बकलोली लोगों को सुनने को मिलने लगा कि अयोध्या नगरी में बकलोल खोलेगा प्रसाद की दुकान और प्रदेश के पत्रकारों में प्रसन्नता की लहर दिखने लगी, प्रसन्नता इस बात से नहीं थी कि प्रसाद सस्ते में मिलेगा बल्कि खुशियों और हर्ष का वातावरण इसलिए बन गया था कि अति महत्वपूर्ण लोकभवन और सचिवालय के प्रेस रूम से कम से कम इस बकलोल से मुक्ति मिलेगी।

कुछ लोगों को तो यह भी कहते सुना गया कि जिस दिन बकलोल की अयोध्या में प्रसाद की दुकान खुलेगी और बकलोल लखनऊ से घर वापसी करेगा उसे दिन सभी पत्रकार को सचिवालय के प्रेस कक्ष में बकलोल से मिली आजादी का जश्न मनाया जाएगा लेकिन बाबा बन कर अयोध्या धाम में प्रसाद की दुकान खोलकर बकलोली करने की अपनी योजना को फिलहाल बकलोल ने उत्तर प्रदेश मान्यता प्राप्त संवाददाता समिति के चुनाव की घोषणा होने के साथ टाल दिया है और पत्रकारों की सियासी जंग में अपनी बकलोली के सहारे फिर से एक बार मैदान में उतारने का मन बना लिया है।

सुबह शाम सोशल मीडिया पर सिर्फ चुनावी बकलोली शुरू कर दिया है जबकि इससे पहले के चुनाव में बकलोल को मिलने वाले वोट दहाई का अंक भी नहीं पा पाए थे और अध्यक्ष बने प्रत्याशी की मां बहन करते घूमते रहते थे और अपने ही संघी साथियों को दगाबाज और धोखेबाज कहकर बकलोल साल भर घूमते रहे थे।

हालात यह हो गई थी कि बकलोल को मानसिक चिकित्सालय में भर्ती करने की नौबत आ गई थी सोते जागते स्वयं को पत्रकारों का अध्यक्ष चिल्लाते थे सड़क पर या सूचना एवं जनसंपर्क विभाग पर किसी भी अधिकारी के सामने पहुंचकर स्वयं को उत्तर प्रदेश मान्यता प्राप्त संवाददाता समिति का हारा हुआ अध्यक्ष बताकर रौब की मानसिक स्थिति को दूर करने के लिए दिल्ली मुंबई के मनोचिकित्सक का सहारा लेना पड़ा और सालों इलाज चलने के बाद बकलोल अध्यक्ष पद का चुनाव हारने के सदमे से बाहर आ पाया।

अभी चुनाव की घोषणा भी नहीं हुई है और बकलोल स्वयं को अध्यक्ष पद का प्रत्याशी बताते हुए अनेक सोशल मीडिया के प्लेटफार्म पर चुनावी जंग का ऐलान करते दिख रहा है बकलोल के पास सिर्फ एक ही काम बचा है सूचना एवं जनसंपर्क विभाग के निदेशक से विज्ञापन के नाम पर अपने परिवार के फर्जी समाचार पत्रों के माध्यम से धन कमाना जिससे आगामी चुनाव में अध्यक्ष पद पर अपनी बकलोली दिखा सके।

खबर लिखने का तो कोई ठिकाना नहीं है लेकिन सुबह होते ही बकलोल सोशल मीडिया पर चुनावी संबंधी अपनी बकलोल शुरू कर देता है, डर है कि कहीं मानसिक बीमारी से ग्रसित न हो जाये।

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