जिस फातिमा शेख को बताते हैं पहली महिला मुस्लिम टीचर, उसका वजूद ही नहीं? लेखक-चिंतक दिलीप मंडल बोले- मैंने गढ़ा था काल्पनिक कैरेक्टर, मुझे माफ करें
फातिमा के अस्तित्व में आने के बाद जिन लोगों को राजनीतिक और वैचारिक उद्देश्यों के लिए इस कहानी की ज़रूरत थी, उन्होंने इसे फैलाया और इस प्रकार यह नाम अस्तित्व में आया।
दिलीप मंडल ने अपने एक्स पर कन्फेशन डालते हुए लिखा, “मैंने एक मनगढ़ंत कैरेक्टर बनाया था- फातिमा शेख। कृपया मुझे माफ करें। सच्चाई तो ये है कि कोई फातिमा शेख कभी थी ही नहीं, वो कोई ऐतिहासिक हस्ती नहीं हैं। वो मेरी गलती थी कि अपने जीवन के एक निश्चित काल में मैंने इस नाम को अचानक गढ़ा। मैंने ये सब जानबूझकर ही किया था।”
Confession:
I had created a myth or a fabricated character and named her Fatima Sheikh.
Please forgive me. The truth is that “Fatima Sheikh” never existed; she is not a historical figure. Not a real person.
It is my mistake that, during a particular phase, I created this name… pic.twitter.com/8pHjiQXTfG
— Dilip Mandal (@Profdilipmandal) January 9, 2025
दिलीप आगे कहते हैं- “आप इससे पहले गूगल में भी इस नाम की कोई एंट्री नहीं पाएँगे, न कोई किताब मिलेगी और न ही कहीं कोई जिक्र होगा।”
मंडल के अनुसार, फातिमा उन्हीं की वजह से सोशल मीडिया नैरेटिव में आईं और गायब भी हो गईं। वह अपने कन्फेशन में कहते हैं कि अब उनसे कोई सवाल न करे कि आखिर उन्होंने ऐसा किया क्यों था। ये समय और हालात वाली बात है। किसी कारणवश एक हस्ती को गढ़ना पड़ा था इसलिए उन्होंने वो किया। हजारों लोग इसकी गवाही दे सकते हैं – “जिनमें से कइयों ने तो पहली बार मुझसे ही ये नाम सुना।”
फातिमा के अस्तित्व में आने के बाद जिन लोगों को राजनीतिक और वैचारिक उद्देश्यों के लिए इस कहानी की ज़रूरत थी, उन्होंने इसे फैलाया और इस प्रकार यह नाम अस्तित्व में आया।
मंडल कहते हैं, “ज्योतिबा फुले और सावित्रीबाई फुले का पूरा लेखन प्रकाशित हो चुका है, और उसमें कहीं भी फातिमा शेख का नाम नहीं है। यहाँ तक कि बाबा साहेब अंबेडकर ने भी कभी ऐसा नाम नहीं लिया।”
Fatima Sheikh is a fictitious character. There is no historical evidence of her having done any significant work. https://t.co/NrIv2LHZi0
— Dilip Mandal (@Profdilipmandal) January 9, 2025
वह दावा करते हैं कि महात्मा फुले या सावित्रीबाई फुले के किसी भी जीवनीकार ने फातिमा शेख का ज़िक्र नहीं किया। 15 साल पहले तक किसी भी मुस्लिम विद्वान ने इस नाम का ज़िक्र नहीं किया। फुले दंपत्ति के शैक्षणिक प्रयासों की चर्चा करने वाले ब्रिटिश दस्तावेज़ों में भी फातिमा शेख का कोई ज़िक्र नहीं है।
दिलीप मंडल का चैलेंज
अपने इस पोस्ट के बाद मंडल ने इस मुद्दे से जुड़े कई सारे ट्वीट किए। उन्होंने बार-बार कहा कि सावित्री बाई का कैरेक्टर पूरी तरह काल्पनिक है। वहीं जब एक युवक ने कहा कि ये बात झूठ है तो उन्होंने कहा कि सावित्री बाई फुले कोई हडप्पा काल की नहीं हैं। उनसे जुड़े रिकॉर्ड हैं। पुराने अखबार और लाइब्रेरी हैं। वहीं फातिमा शेख को लेकर उन्होंने चैलेंज दिया कि अगर कोई 2006 से पहले दिखा देगा कि कहीं फातिमा शेख का जन्मदिन मनाया गया, तो वो मान लेंगे कि उन्होंने ऐसा नहीं किया।
सावित्री बाई फुले कोई हड़प्पा युग की चरित्र नहीं है। हमारे समय की महान समाज सुधारक है। डेढ़ सौ साल से उनकी गाथा गाई जा रही है।
पुराने अख़बार लाइब्रेरी में हैं। फ़ातिमा की जयंती 2006 से पहले मनाए जाने का एक ज़िक्र निकाल लीजिए।
मैं मान लूँगा कि फ़ातिमा को मैंने नहीं बनाया है। https://t.co/8M68HLZGzP
— Dilip Mandal (@Profdilipmandal) January 9, 2025
गौरतलब है कि एक तरफ जहाँ दिलीप मंडल इस तरह के दावे कर रहे हैं कि फातिमा शेख का कैरेक्टर उन्होंने ही गढ़ा था, वहीं 1991 में पब्लिश हुई एक किताब है- Women Writing in India: 600 B.C. to the early twentieth century जिसमें ये पढ़ने को मिलता है कि फातिमा शेख, ज्योतिबा फुले और सावित्री बाई फुले की साथी थीं। इस किताब को सिटी यूनिवर्सिटी ऑफ न्यूयॉर्क के फेमिनिस्ट प्रेस द्वारा प्रकाशित किया गया है।
किताब में फातिमा शेख के नाम का केवल एक ही बार जिक्र है, जिसमें कहा गया है, “पुणे में जोतिबा और सावित्रीबाई फुले ने जो स्कूल शुरू किए थे, वे खास तौर पर निचली जाति की लड़कियों के लिए थे। उनकी सहकर्मी फातिमा शेख एक मुस्लिम महिला थीं।” इसे देख लगता है कि संभव है कि फातिमा शेख नाम की महिला फुले की सहकर्मी रहीं हों, लेकिन शिक्षा क्षेत्र में प्रमुख कार्यकर्ता न हों। यही वजह है कि पहले उनका उल्लेख इंटरनेट पर न के बराबर था।