समाजवाद है या साम्प्रदायवाद

उर्दू अखबारों में कार्यरत जिन हिन्दू पत्रकारों ने अपनी मान्यता की पत्रावली प्रस्तुत करी उसमे सूचना विभाग के अधिकारीयों द्वारा कहा गया है की “उर्दू भाषा के ज्ञान का अभिलेखीय साक्ष्य प्रस्तुत कर अगली बैठक में प्रस्तुत करे ” . भाषा का ज्ञान होना या न होना अख़बार मालिक और संपादक पर निर्भर करता है और प्रायः समस्त अखबारों में आज भी अनुवादक कार्य करते है। जब इस तरह का कोई प्रावधान नियमावली में ही नही तो अचानक हिन्दू पत्रकारों से उर्दू भाषा के ज्ञान का अभिलेखीय साक्ष्य मांगे जाने का क्या औचित्य है. क्यों नही मुसलमानो से भी उर्दू भाषा के ज्ञान का अभिलेखीय साक्ष्य माँगा गया यही नहीं हिंदी एवं अंग्रेजी भाषा में कार्य करने वालो से भी अभिलेखीय साक्ष्य माँगा जाना चाहिए। ऐसे भी संपादक है जो अनपढ़ है या दसवी पास है लेकिन सूचना एवं जनसम्पर्क विभाग द्वारा सिर्फ हिन्दू पत्रकारों से ऐसा सर्टिफिकेट मांगने पर लगता है अब पत्रकारों को भी मज़हब और भाषा के नाम पर बटवारे की गहरी साज़िश की जा रही है.

 

उत्तर प्रदेश के पत्रकारों को धर्म और भाषा के नाम पर सम्प्रदायकिता का ज़हर घोलने का काम सूचना एवं जनसम्पर्क विभाग  द्वारा पत्रकारों को मान्यता देने में किया जा रहा है और पत्रकारों के हितो की बात करने वाली सभी संस्थाये और उनके पदाधिकारि ख़ामोशी से बैठे हुए है और विभाग के उच्च पदस्थ अधिकारी भी आँख बंद कर अपने मातहत अधिकारीयों के इस कारनामे पर खुश हो रहे है। उर्दू अखबारों में कार्यरत जिन हिन्दू पत्रकारों ने अपनी मान्यता की पत्रावली प्रस्तुत करी उसमे सूचना विभाग के अधिकारीयों द्वारा कहा गया है की “उर्दू भाषा के ज्ञान का अभिलेखीय साक्ष्य प्रस्तुत कर अगली बैठक में प्रस्तुत करे ” . भाषा का ज्ञान होना या न होना अख़बार मालिक और संपादक पर निर्भर करता है और प्रायः समस्त अखबारों में आज भी अनुवादक कार्य करते है। जब इस तरह का कोई प्रावधान नियमावली में ही नही तो अचानक हिन्दू पत्रकारों से उर्दू भाषा के ज्ञान का अभिलेखीय साक्ष्य मांगे जाने का क्या औचित्य है. क्यों नही मुसलमानो से भी उर्दू भाषा के ज्ञान का अभिलेखीय साक्ष्य माँगा गया यही नहीं हिंदी एवं अंग्रेजी भाषा में कार्य करने वालो से भी अभिलेखीय साक्ष्य माँगा जाना चाहिए। ऐसे भी संपादक है जो अनपढ़ है या दसवी पास है लेकिन सूचना एवं जनसम्पर्क विभाग द्वारा सिर्फ हिन्दू पत्रकारों से ऐसा सर्टिफिकेट मांगने पर लगता है अब पत्रकारों को भी मज़हब और भाषा के नाम पर बटवारे की गहरी साज़िश की जा रही है. सूत्रों की माने तो ऐसा करने हेतु इसी विभाग के उच्च अधिकारी द्वारा मौखिक आदेश दिए गए है – हमने तो यही सुना था मज़हब नहीं सिखाता आपस में बैर रखना हिंदी है हम हिंदुस्तान हमारा —-लेकिन यहाँ तो उल्टा ही फेर है –लेकिन इस फैसले के खिलाफ भले ही सब खामोश रहे मैंने एक पहल की है और अपने हिंदी भाषा भाइयों के हक़ और उनकी मान्यता के लिए संघर्ष भी करूंगाkamran

 

Mohd Kamran द्वारा भेजे मेल के आधार पर

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