DEMONETIZATION पर कांग्रेस-मीडिया गठजोड़ द्वारा देश में दंगा भड़काने की साजिश का खुलासा! मुख्य न्यायाधीश के मुंह में कांग्रेसी पत्रकारों ने डाले कपिल सिब्बल के शब्द!

justice-thakurआश्चर्य है! कालेधन के सौदागर अपना धन बचाने के लिए मुख्य न्यायाधीश तक के नाम पर झूठ बोलने से नहीं चूक रहे हैं! मैं खुद न्यायपालिका के भ्रष्टाचार पर बिना अवमानना से डरे लगातार लिखता रहा हूं, लेकिन जिस तरह से मुख्य न्यायाधीश के कथन के रूप में अखबरों व न्यूज चैनलों ने 500/1000 रुपए के नोट पर दंगा भड़काने का बयान छापा या दिखाया, यह बेहद संवदनशील मामला है!

मैंने लंबे समय तक दैनिक जागरण में अदालत की रिपोर्टिंग की है, इसलिए आज भी अदालतों को कवर करने वाले कई कोर्ट रिपोर्टर और वकील मेरे मित्र हैं! उस दिन सुप्रीम कोर्ट में भी मेरे कई पत्रकार मित्र व वकील मौजूद थे। सबका यही कहना है कि सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश जस्टिस टी.एस.ठाकुर ने ऐसा कुछ कहा ही नहीं था! यह बात तो कपिल सिब्बल ने कहा था, जिसे कुछ अंग्रेजी अखबार व न्यूज चैनल के पत्रकारों ने जस्टिस ठाकुर के मुंह में डालकर उनके नाम से चला दिया! इसका मकसद केवल इतना है कि कॉलेजियम के मुद्दे पर आपस में भिड़ी मोदी सरकार व सुप्रीम कोर्ट के बीच तनाव के दरार को और चौड़ा किया जाए और DeMonetization पर विपक्ष, खासकर कांग्रेस को यह कहने का मौका मिल जाए कि सुप्रीम कोर्ट भी जनता की परेशानियों को लेकर चिंतित है, इसलिए इस फैसले को वापस लेना चाहिए! शायद तब कांग्रेस को रद्दी हो चुके कालेधन को बचाने का मौका मिल जाए!

सुप्रीम कोर्ट में मौजूद वकील अश्विनी उपाध्याय ने बातचीत में बताया कि वह उस समय अदालत में मौजूद थे, जब विमुद्रीकरण पर महान्यायवादी मुकुल रोहतगी और याचिकाकर्ताओं के वकील कपिल सिब्बल के बीच विवाद चल रहा था। महान्यायवादी ने सुप्रीम कोर्ट से यह मांग की कि वह विमुद्रीकरण के खिलाफ देश के विभिन्न अदालतों में दायर किए जा रहे मामले पर रोक लगाएं। उन्होंने यह मांग भी की कि कोलकाता के हाईकोर्ट के एक जज ने आज ही विमुद्रीकरण को लेकर गैर जरूरी टिप्पणी की है, जो जरूरी नहीं था। ऐसे बयान उचित नहीं हैं, क्योंकि इससे जनता में भ्रम की स्थिति उत्पन्न हो सकती है! इस पर मुख्य न्यायाधीश जस्टिस ठाकुर ने कहा कि न तो लोगों को अदालत पहुंचने से रोका जा सकता है और न ही हाईकोर्ट के जज के टिप्पणी पर ही रोक लगाई जा सकती है। उन्होंने कहा- ‘They may be rights’

अश्विनी उपाध्याय के अनुसार, कपिल सिब्बल ने अपने पसंद के पत्रकारों को इसी को गलत तरीके से ब्रीफ कर दिया और कहा कि जस्टिस ठाकुर ने कहा है- ‘There may be riots’! जिन पत्रकारों को यह ब्रीफ किया गया, उनमें से कोई उस वक्त मौजूद नहीं था और कुछ थे भी तो बहुत पीछे खड़े थे, जहां उन्होंने इसे साफ-साफ नहीं सुना होगा। सिब्बल ने बहुत ही शातिर तरीके से ‘They may be rights’ (जनता को अधिकार है) वाले बयान को ‘दंगे भड़क सकते हैं’- वाले बयान में तब्दील कर प्रचारित कर दिया! अंग्रेजी के ‘राइट्स'(अधिकार) को बड़ी चालाकी से ‘रॉइट्स'(दंगा) से बदल दिया गया! इसमें कपिल सिब्बल की मदद उनके चहेते पत्रकारों ने की! पत्रकारों का एक वर्ग, एक तरह से कांग्रेसी मैसेंजर की भूमिका अदा करते देखे गए!

अश्विनी के उपाध्याय के अनुसार, इससे पहले भी टाइम्स नाउ को पीएम मोदी द्वारा दिए गए साक्षात्कार के वक्त कपिल सिब्बल ने कहा था कि हमारे पत्रकारों को पीएम साक्षात्कार देकर दिखाएं! मैं कह सकता हूं कि बहुत सारे पत्रकार ईमानदार हैं, लेकिन चंद पत्रकार ऐसे जरूर हैं, जो कांग्रेसी एजेंडे को आगे बढ़ाने के लिए विमुद्रीकरण के खिलाफ काम कर रहे हैं। इसी एजेंडे के तहत चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया के नाम से इस तरह की झूठ को पूरे देश में फैलाया गया, जो बेहद संवेदनशील व गंभीर मामला है! चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया को चाहिए कि वह इस मामले में संबंधित पत्रकारों को बुलाकर पूछताछ करें और यदि अवमानना का मामला बनता है तो उनके खिलाफ अवमानना का मामला बनाएं। महान्यायवादी को भी आगे आकर सच बताना चाहिए ताकि जनता में उत्पन्न भ्रम दूर हो।

उस वक्त अदालत में अमर उजाला के वरिष्ठ लीगल रिपोर्टर राजीव सिन्हा भी मौजूद थे। राजीव सिन्हा के अनुसार, मैं आगे खड़ा था, और मेरे साथ कई अन्य रिपोर्टर भी थे, लेकिन हममें से किसी ने चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया के मुंह से दंगे की बात नहीं सुनी। आश्चर्य है कि यह खबर कहां से आ गई कि मुख्य न्यायाधीश ने दंगे भड़कने की बात कही है? मुख्य न्यायाधीश ने विमुद्रीकरण को लेकर विभिन्न अदालतों में आ रहे मामले को रोकने से मना करते हुए हुए केवल यही कहा कि They may be rights’! अब ‘राइट्स’ को ‘रॉयट्स’ कैसे बना दिया गया, यह मैं कैसे बता सकता हूं?

अन्य हिंदी अखबार के रिपोर्टरों से बात करने पर, सभी ने यही कहा कि उसने चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया के मुंह से दंगे की कोई बात ही नहीं सुनी। कुछ रिपोर्टरों ने यह जरूर कहा कि विमुद्रीकरण रोकने के लिए याचिकाकर्ताओं की ओर से कपिल सिब्बल ने ‘There may be riots’! वाक्य का इस्तेमाल बहस के दौरान किया था, जिस पर महान्यायवादी से उनकी झड़प भी हुई थी। इस पर महान्यायवावदी मुकुल रोहतगी ने कहा कि आप अदालत को राजनीति का अखाड़ा न बताएं। बाहर संसद ठप कर रखा है और यहां अदालत में गलत बयानी कर इसे प्रभावित करने की कोशिश कर रहे हैं! महान्यायवादी ने यह भी कहा कि मैंने आपकी कपिल सिब्बल की प्रेस वार्ता देखी है और आप जनता सहित अदलत को भी गुमराह करने की कोशिश कर रहे हैं! अपनी राजनीति से अदालत को दूर रखिए!

अब आप सोच कर देखिए कि कांग्रेस नेता कपिल सिब्बल के मुंह से निकले बयान- ‘There may be riots’ को किस तरह से अंग्रेजी अखबारों के रिपोर्टरों ने चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया के मुंह से निकला बयान बता कर पूरे देश को न केवल गुमराह किया, बल्कि कहीं न कहीं यह दिखा दिया कि कांग्रेस के कालेधन के कारोबार में बड़े-बड़े मीडिया हाउसों की हो न हो संलिप्तता है! विमुद्रीकरण से इन मीडिया हाउसों पर भी मार पड़ी है, जिसके कारण वे लोग किसी भी तरह से इस निर्णय को वापस लेने के लिए दबाव की राजनीति कर रहे हैं! इसी दबाव की राजनीति में सुप्रीम कोर्ट तक को घसीट लिया गया!

Loading...
loading...

Related Articles

Back to top button