पत्रकारिता का यह पुरखा आज अस्‍पताल में है, मदद न करोगे तो मौत उसे रौंद डालेगी

cropped-logob-2.jpgकुमार सौवीर (मेरी बिटिया डॉट कॉम से सभार)

इलाहाबाद : तब पत्रकारिता कमाई का चुल्‍ल नहीं, बाकायदा एक मिशन हुआ करता था। यह बात है सन-86 की। तब एक शख्‍स ने जीप फ्लैश कम्‍पनी में अपनी अच्‍छी-खासी नौकरी को सिर्फ इस लिए छोड़ दिया, क्‍योंकि उसे फोटोग्राफर के तौर पर पहचान चाहिए थी। हालांकि इस शख्‍स की इस मेहनत उसी में डूब गयी, जब उसकी पत्रिका हमेशा-हमेशा के लिए कब्र में समा गयी। लेकिन उसके बावजूद उसके हौसलों का कत्‍ल नहीं हुआ। लेकिन आज यह पेशेवर फोटोग्राफर अब गर्दिश में है।

हम बात कर रहे हैं वसीमुल हक की। करीब पौन सदी पहले वसीमुल ने रेलवे के एक सिपाही के घर जन्‍म लिया था। पढ़ाई शुरू हो गयी तो सितारों ने साथ देना बंद कर दिया। बमुश्किल मैट्रिक यानी हाईस्‍कूल पास हुए, तो जीप फ्लैश कम्‍पनी में नौकरी करनी पड़ी। लेकिन मोहब्‍बत तो कैमरे से थी, सो संडे, हिन्‍दुस्‍तान, धर्मयुग, एपीए, रायटर, एपी ही नहीं, बल्कि रूस और अनेक देशों में सक्रिय फोटो-एजेंसीज ने भी वसीमुल की फोटो-स्किल को पहचाना। फिर क्‍या था, पूरे देश-दुनिया में वसीमुल की हकदार धमक गूंजने लगी।

सन-86 में वसीमुल को इलाहाबाद से छपनी वाले माया पत्रिका में फोटोग्राफर के तौर पर काम करने का मौका मिला, तो वसीमुल ने तपाक से अपनी अच्‍छी-खासी नौकरी को त्‍याग दिया और माया ज्‍वाइन कर लिया। इसके बाद से तो वसीमुल हक एक नामचीन फोटोग्राफर बन गये। मगर इसी बीच माया क्‍या बंद हुई, वसीमुल की जिन्‍दगी में कोई स्‍थाई ग्रहण सा लग गया। सन-2000 की 23 दिसम्‍बर को माया पत्रिका प्रबंधन की अन्‍दरूनी लड़ाई के चलते माया बंद हुई और वसीमुल बेरोजगार तो हुए, लेकिन उनकी बाकी देनदारियां उसी के साथ डूब गयीं। पूरी तरह मु‍फलिस हो गये वसीमुल। वही वजह रही कि जब उनके 37 साल के बेटे अनवर वसीम को बीमारी लगी, तो वे ठीक से उसका इलाज तक नहीं करा पाये। नतीजा, इसी साल 22 फरवरी-16 को अनवर की मौत हो गयी।

करेली के पालकी गेस्ट हाउस के पास लाल कालोनी यानी लेबर कालोन में नगर निगम स्कूल के बगल में रहने वाले वसीमुल हक़ इन दिनों काफी परेशान हैं। पिछले कई महीनों से गंभीर रूप से बीमार हैं। प्रोस्‍टेट की बीमारी और गालब्‍लाडर में बड़ा स्‍टोन। उन्हें दो महीने तक नली लगी हुई थी और दस दिन पहले उनके दो आपरेशन हुए हैं। उनका एक आपरेशन और होना है। वह पिछले दो हफ्ते तक आलम हास्पिटल, नूरउल्ला रोड बैरियर तिराहा में भर्ती थे। उनकी आर्थिक स्थिति बेहद खराब है और पास में अब फूटी कौड़ी भी नहीं बची है। परिवार में भी पत्नी नसीम के अलावा कोई नहीं है। प्रेस क्लब व कुछ अन्य लोगों के सहयोग से दो आपरेशन तो हो गए हैं। लेकिन आज तो भुखमरी की हालत है। दवा तो खैर बाद की बात है। अब यह दीगर बात है कि लखनऊ में नॉन-वेज की दूकानों की चेन के तौर पर मशहूर दस्‍तरख्‍वान के मालिक बदरूल इस्‍लाम इस शख्‍स के करीबी रिश्‍तेदार हैं।

आओ दोस्‍तों। वसीमुल हक की मदद के लिए अपने हाथ आगे बढ़ाओ। कोशिश करो कि वसीमुल को हम-लोगों के अलावा किसी के भी सामने हाथ न फैलाना पड़े। आप सभी से गुजारिश है कि वसीमुल के इस मुश्किल वक्त में यथासंभव उनकी आर्थिक मदद करें। उनका एक आपरेशन होना अभी बाकी है। जो आप लोगों की मदद के बिना नामुमकिन। कुछ मदद कीजिए। आप अगर उनसे बात करना चाहें तो मोबाइल फोन 9389018555 पर सम्‍पर्क कर सकते हैं।

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