गजब है 4पीएम की महिमा: निकाह शनिच्चरी बेगम से, गुलछर्रे शाम-बदन से
कुमार सौवीर
सड़कछाप मवाली की तरह एक तथाकथित पत्रकार अपनी मोहब्बत के लिए जान पर खेल गया। सरेआम हंगामा हुआ, गजब छीछालेदर हुई, बनावटी इज्जत का फालूदा नाली पर बिखेर दिया गया। मामला पुलिस थाना-कचेहरी तक पहुंच गया। लेकिन अब पता चला है कि यह आदमी जिसके साथ रंगरेलियां मना रहा था, दरअसल वह पहले से ही शादी-शुदा है। उसकी बीवी को उसने अंधेरी कोठरी में धकेल रखा है।
जी हां, यह मामला है एक चौपतिया पेपर और उसके सम्पादक बन कर पत्रकारिता की धौंस देते शख्स का है। पिछले पांच दिनों से इस आदमी ने सरकार और पुलिस-प्रशासन की नाक में दम कर रखा है। इतना ही नहीं, इसकी करतूतों के चलते इस शख्स ने सारी पत्रकारिता के चेहरे पर कालिख पोत रखी है। बहरहाल, अब मामला बेपर्दा हो चुका है। सब जान चुके हैं इस मामले की असलियत।
अब आइये, हम आपको समझाते हैं कि यह मामला क्या है। दरअसल, संजय शर्मा नाम के इस शख्स ने यह पूरा हल्ला खुद की ब्रांडिग के लिए ही बुना-छीला था। मकसद था कि नयी सरकार के निजाम में यह अपना और इस नये चूतियापंथी वाले पेपर की ब्रांडिंग कर ले। जिस 4पीएम नामक चौंपतिया पेपर को इस शख्स ने देश-विदेश में चर्चित और ईमानदारी की बेमिसाल के तौर पर संजय शर्मा चिल्लाते रहते हैं, दरअसल उस अखबार के बारे में न तो यूपी के सूचना विभाग कोई खबर है, और न ही केंद्र सरकार के डीएवीपी वालों को पता है। यह चौंपतिया पेपर बस सौ-दो सौ प्रतियों तक संजय शर्मा के प्रेस में छपता है, और इसमें केवल संजय शर्मा का ही प्रलाप की स्याही फैलायी जाती है।
और सबसे बड़ा दिलचस्प किस्सा तो संजय शर्मा की मुख्यालय स्तर की पत्रकार मान्यता के प्रकरण का है। संजय शर्मा को 4पीएम के नाम पर नहीं, बल्कि एक साप्ताहिक चौंपतिया साप्ताहिक समाचार के तौर पर मान्यता है। यह पेपर भी डीएवीपी की लिस्ट में नहीं है। जबकि किसी भी पत्रकार को तब ही मान्यता दी जा सकती है, जब वह डीएवीपी में दर्ज हो चुका है। लेकिन न तो संजय शर्मा के चौंपतिया वीकेंड-टाइम्स पेपर का नाम डीएवीपी में दर्ज है, और न ही 4 पीएम का।
सूत्र बताते हैं कि संजय शर्मा ने ऐन-केन-प्रकारेण नियमों को दरकिनार करके अपनी मान्यता हासिल कर ली, जबकि नियमों के अनुसार ऐसा होना सर्वथा अनुचित और अवैध था। इसी मान्यता के बल पर संजय ने अपने रिश्ते राजनीतिक और अफसरशाही में जोड़े, और पत्रकारिता की जितनी भी छीछालेदर हो सकती है, कर डाली। जानकार बताते हैं कि अपनी राह में इस शख्स ने अपने लोगों को दोस्त नहीं, बल्कि सीढ़ी के पायदान की तरह इस्तेमाल किया। जब जरूरत पड़ी, अपनाया। और जब जरूरत खत्म हो गयी, तो उसे दूध की मक्खी की तरह चूस कर निकाल बाहर कर दिया।
वीकेंड टाइम्स से उसकी मान्यता तो मिल गयी, लेकिन चूंकि यह साप्ताहिक धंधा था, इसलिए उसने दैनिक सांध्य के तौर पर जमीन जमाने की जुगत भिड़ायी। लेकिन इसके लिए ऐसा किया कि सांप भी मर जाए, लाठी भी बची रहे। 4पीएम का न सुर था, और न ताल। मगर संजय ने पैसा फूंका और मीडिया के लोगों को उपकृत करके ऐसा माहौल बना दिया कि संजय शर्मा से ही पत्रकारिता में ईमानदारी बची है। संजय न हो, तो पत्रकारिता खत्म हो जाएगी।संजय ने पकड़ा प्रांशु मिश्र और नीरज श्रीवास्तव के तौर पर। यह इसलिए क्योंकि प्रांशु-कम्पनी अम्बानी के ग्रुप से जुड़े थे। ऐसे में भाजपा में करीबी गांठने का यह मौका था। एक वरिष्ठ पत्रकार ने बताया कि चाहे कोई भी धंधा हो, संजय शर्मा को होलसेल की हर बारीकियां खूब पता हैं।
वीकेंड-टाइम्स यानी शनिच्चरी बेगम, और 4पीएम का मतलब शाम-बदन। मतलब यह कि जिस नाम पर संजय की मान्यता है, उसको संजय ने दबा लिया, लेकिन जिस शाम-बदन के नाम को किसी ने सुना तक नहीं था, उसका ढिंढोरा मचा दिया। यानी 4पीएम की ब्रांडिंग हो गयी, और इसी बहाने संजय ने सपने बुनने शुरू कर लिये थे कि उसे सरकारी गनर मिल जाएगा, तो जमाने में उसकी तूती बजने लगेगी। लेकिन उसके यह दोनों ही मुंगेरीलाल के सपने एक ही झटके में चकनाचूर हो गये। प्रमुख न्यूज पोर्टल मेरी बिटिया डॉट कॉम ने संजय के इस पूरे धंधे का खुलासा कर उसकी साजिशों को पूरी तरह नंगा कर दिया।
सब लोग खूब जानते थे कि असिलयत क्या है, लेकिन इसके बावजूद अपने चंद ठेलुआ साथी पत्रकारों को लेकर यह पत्रकार एनेक्सी में पहुंचा और बोला कि यह हमला पत्रकारों और उनकी अस्मिता पर है। लेकिन जब गृह विभाग के प्रमुख सचिव के पास ऐसे लोगों का गुट पहुंचा और लगे चिल्ल-पों करने, तो प्रमुख सचिव ने इस पत्रकार की कलई खोल दी। मौजूद पत्रकारों के सामने मुंह पर बता दिया कि इस आदमी जो पत्रकारिता के खतरे का ढिंढोरा मचा रहा है, दरअसल सारा बवाल उसी का किया धरा है। ऐसे में वहां मौजूद पत्रकार अपनी बगलें झांकने लगे और धीरे-धीरे खिसक कर सचिवालय से सरक निकले।
साभार : मेरी बिटिया डॉट कॉम