मुझे चुनाव नहीं जीतना… जोड़-तोड़ और जुगाड़ का मुखिया बनना मुझे स्वीकार नहीं है…
प्रभात रंजन दीन
मान्यता प्राप्त पत्रकारों की समिति के चुनाव में खूब सारे प्रत्याशी मैदान में हैं. सारे प्रत्याशी साथियों का जोर-शोर से प्रचार-प्रसार चल रहा है. उन सभी प्रत्याशी साथियों को मैं हार्दिक शुभकामनाएं देता हूं. जो भी जीतें, सकारात्मक परिवर्तन और पत्रकारिता की नैतिक स्थापना का संकल्प लेकर अपना काम शुरू करें, इसमें कोई छद्म न हो… चुनाव के पहले की बातों और चुनाव के बाद के कृत्यों में कोई भेद न रहे. यूपी में पिछले दो दशक से खबरनवीसी के धर्म-कर्म में जूझ रहे मेरे जैसे ही एक साथी ने मुझसे कहा कि ठीक है कि मान्यता समिति का संचालन पत्रकार-परिवार की व्यवस्था तय करने का अंदरूनी मसला था, लेकिन जब इसे सार्वजनिक धरातल पर लाकर औपचारिक चुनाव का चलन बना दिया गया है तो उसे उसी तरह ‘टैकल’ करना होगा. ये साथी मेरे शुभैषी हैं, वे हृदय से चाहते हैं कि मैं अध्यक्ष पद के लिए खड़ा हूं, तो मैं भी जीतूं. जीतने के लिए वे सलाह दे रहे थे कि ‘चलन’ के मुताबिक मैं भी ‘सब-कुछ’ करूं. मैं अपने उन साथी को हाजिर-नाजिर करता हुआ आप सबसे कहता हूं कि मुझे चुनाव नहीं जीतना… अगर परिवार के सदस्यों ने समझ-बूझ कर समवेत प्रेमभाव से अपना मुखिया नहीं चुना तो ऐसा मुखिया किस काम का जो परिवार में जोड़-तोड़ करके मुखिया बन जाए..! ऐसा मुखिया परिवार में समान सुसंस्कृत व्यवहार की गृहस्थी व्यवस्था कैसे बना पाएगा..? मुझे जोड़-तोड़ और ‘सब-कुछ’ करके जुगाड़ का मुखिया बनना स्वीकार नहीं है…
नामांकन दाखिल करते हुए भी वहां मौजूद साथियों से मैंने कहा था और आप सबसे भी कहता हूं कि मान्यता समिति के संचालन की प्रक्रिया में मैंने अपना नाम इसीलिए डाला कि पिछले दो दशक में ही पत्रकारों के सम्मान की सर्व-स्वीकार्यता छिन्न-भिन्न हो गई, हम सब इसके साक्षी हैं और मर्माहत हैं. जो नई पीढ़ी के हैं, उन्होंने तो देखा ही नहीं है कि पत्रकार किस तरह का सम्मान पाते रहे हैं. कुछ अनुभव की बातें तो मैंने साथियों से शेयर भी की थीं, लेकिन ऐसी ढेर सारी बातें हैं जिसे नई पीढ़ी के पत्रकारों को बताएं तो उन्हें काल्पनिक लगे, लेकिन वे सच हैं और इस सच से उन्हें अवगत कराने की जरूरत है. क्या आपको नहीं लगता कि नई नस्लों को भी ऐसा ही सम्मान मिले..! तभी तो वे भी इस सम्मान की थाती (धरोहर) को अगली पीढ़ी के लिए ले जाने के लिए तैयार और प्रतिबद्ध होंगे..! कुछ तो सोचें हम सब मिल कर..! क्या मिलना है इस मान्यता समिति का अध्यक्ष या कोई अन्य पदाधिकारी बन कर..! स्व-केंद्रित और गुट-केंद्रित हित और प्रलोभन के तुच्छ इरादे त्याग दें तो एक मिनट में समझ में आ जाए कि मान्यता समिति का संचालन कितना बड़ा बीड़ा है और कितनी व्यापक जिम्मेदारियों से भरा बोझ है. व्यापक जिम्मेदारियों से भरा बीड़ा उठाने और जोखिम लेने का जिसमें माद्दा हो और जिसकी आदत हो, पत्रकार परिवार को अपना ऐसा ही मुखिया चुनना है…
शुभकामनाएं