OYO रूम्स या soyo रूम्स, स्कूली बच्चों को पतन की ओर ले जारहे ये होटल्स
सुरक्षा मानकों का पालन नहीं कर रहा OYO, गली मोहल्ले में कुकुरमुत्ते की तरह खुले कई होटल्स
परमजीत सिंह
लखनऊ। होटल कारोबार में सरकारी रजिस्ट्रेशन से लेकर इमारत के मानक और फायर के इंतजाम तक शामिल होते है. लेकिन बीते कुछेक बरसों से ओयो होटल्स के टैग ने सैकड़ो-हजारों अवैध होटलों की कतार शहरों में खड़ी कर दी है. ये होटल कई छोटे घरों से लेकर, काम्पलैक्स, संकरे मुहल्ले, शहर के सूने इलाकों और छोटे कस्बों तक पहुंच चुके है. राजस्व के बदले सरकारी मशीनरी इन होटलों से मोटी रकम वसूलती है.
कई सवाल हैं जो जहाँ में आते हैं जैसे कि कैसे खुले गली-मुहल्लों में ओयो होटल, क्या है ओयो होटल्स की हकीकत, कैसे मिलता है ओयो होटल का टैग, पुलिस और सरकारी सिस्टम का क्यों है संरक्षण. क्या शहर और देश की सुरक्षा की कीमत पर इन होटलों से अवैध कमाई जायज है।
एक होटल के संचालन के लिए एप्रूव्ड मानचित्र पर इमारत की जरूरत होती है. यह इमारत सरकारी महकमें में व्यवसायिक गतिविधि के तहत रजिस्टर्ड होनी चाहिए और इसमें फायर सेफ्टी के मानकों के हिसाब से पूरे सुरक्षा इंतजाम हो. लेकिन सब्जी की ठेल की तरह बीते कुछेक सालों में हर शहर और कस्बों में ऐसे होटल खुले है जो सरकार के मानकों से साथ सरकारी राजस्व भी डकार लेते है. इन होटलों को नाम मिला है ओयो होटल्स का. लाल रंग का ओयो लिखा यह बोर्ड जिस इमारत पर लगा हो मान लिया जाता है कि उसने सरकारी नियमों को मानकर होटल संचालन शुरू किया है. लेकिन हैरत होती आपको यह जानकर कि ऑनलाइन निजी बेबसाइट पर रजिस्टर्ड ये इमारतें जीती-जागती लाक्षागृह है. अब आप जान लीजिए कि आप अपने घर, दुकान के ऊपरी हिस्से या सुनसान इलाके में खड़ी इमारत को ओयो होटल में कैसे बदल सकते है।
ओयो की बेबसाइट पर सरकारी मानकों वाले हिस्से में क्लिक करते जाइये और हो गया आपको रजिस्ट्रेशन. इसके बाद पुलिस, विकास प्राधिकरण, नगर निगम या फिर फायर सेफ्टी विभाग कोई नही पूछता कि ये होटल आखिर कैसे चल रहे है. मेरठ के बारे ही जानें तो शहर के नये बसे सुनसान इलाकों से लेकर शहर की संकरी गलियों तक ओयो होटल्स खुले हुए है. ऑफ सीजन में बंद रहने वाले बारातघर भी ओयो होटल बन चुके है. किसी ने घने बाजार में दुकान के ऊपर होटल चला रखा है तो गंगानगर, कंकरखेड़ा, शताब्दीनगर जैसे इलाकों के रेजीडेन्सियल इमारतों में ओयो होटल खोल दिये गये है. स्टेट और नेशनल हाइवेज पर तो इनकी तादात सैकड़ो में है. छोटे कस्बों में भी यह अवैध धंधा अब चोखा रंग देने लगा है. लखनऊ के होटल अग्निकांड के बाद पुलिस होटलों का वेरीफिकेशन करा रही है. लेकिन केवल उन्हीं होटलों के जो सराय एक्ट या होटल एक्ट में रजिस्टर्ड है।
कुकरमुत्तों की तरह उगे ओयो के लाल बोर्ड वाले ये होटल शहर की सुरक्षा में भी बड़ा खतरा है. खुद पुलिस और खुफिया मानती है कि इन अवैध होटलों में एंटी सोशल एलीमेंटों को जमावड़ा होता है. लेकिन इन अवैध होटलों से होने वाली मोटी कमाई के चलते इन पर कभी हाथ नही डाला जाता है. शहर का ऐसा कोई अफसर नही जिसे इन होटलों की जानकारी न हो. लेकिन मोटी कमाई के चलते वे सब चुप है. सवाल यह भी है कि क्या शहर और देश की सुरक्षा की कीमत पर इन होटलों से अवैध कमाई जायज है।