शाह जी ने की थी मेरी मदद : शंभू दयाल वाजपेयी

Shambhu Dyal vajpeyi

सुनील शाह के असामयिक निधन की खबर से स्‍तब्‍ध हूं। वह न केवल अच्‍छे संपादक थे , बल्कि निजी ब्‍यवहार में बहुत संवेदनशील और मददगार भी थे। लगभग 23 साल पहले आवश्‍यकता पडने पर कैसे उन्‍होंने मेरी मदद की थी आज उसे याद कर हृदय भारी हो रहा है। मेरा उनसे परिचय – सम्‍पर्क अमर उजाला बरेली में 1992 में हुआ था । मैं तब कानपुर से दैनिक जागरण , बरेली भेजा गया था और सब एडिटर और प्रादेशिक प्रभारी था । जागरण में तब सब एडिटर बहुत कम होते थे। प्रादेशिक में मुरादाबाद और कुमाऊं मंडल समेत 16 जिले कवर होते थे और मेरी सीधे रिपोर्टिंग डाइरेक्‍टर संदीप गुप्‍ता को थी। लेकिन इस सब के बावजूद मेरा मन नहीं लग रहा था। समाचार संपादक और मैनेजर को लेकर बेहद असहज था। अपने गृह जनपद का पडोसी शहर होने के चलते मैं कानपुर ही जाना चाहता था ।
मैं ने एक लोगों के माध्‍यम से अमर उजाला के मालिक राजुल माहेश्‍वरी से सम्‍पर्क किया । उन्‍होने पूछा कि किस डेस्‍क में काम कर सकता हूं। मैं ने कहा कि मैं जनरल डेस्‍क में बेहतर महसूस करता हूं। राजुल जी ने कहा कि टेस्‍ट देना पडेगा और समाचार संपादक रस्‍तोगी जी के हवाले कर दिया। रस्‍तोगी जी तब पहला पेज देखते थे । सुनील शाह चीफ सब के रूप में उनके सहयोगी। उनसे पहली भेंट वहीं हुई । मेरा टेस्‍ट लेने का जिम्‍मा उनका था । जागरण से अवकाश लेकर मैंने तीन दिन अमर उजाला में चोरी छिपे टेस्‍ट दिया । शाह जी ने बहुत अच्‍छी रिपोर्ट दी और लिखा कि मैं स्‍वतंत्र रूप से जनरल डेस्‍क संभालने में सक्षम हूं। अमर उजाला के कुछ अन्‍य साथियों को यह पता चला तो आश्‍चर्य चकित थे। उनका कहना था कि शाह जी बहुत कडे हैं । इतनी अच्‍छा तो इन्‍हों ने कभी किसी के बारे मे नहीं लिखा ।
एक हफ्ते बाद शाह जी आफिस से घर जाते समय रात में मेरे कमरे मे आये और बताया कि मेरठ के लिए मेरा चयन हुआ है। मैंने उन्‍हें विनम्रता पूर्वक यह कह कर मना किया कि मैं कानपुर ही जाना चाहता हूं। इस के बाद दो तीन बार मैं उनके कैंट स्थित आवास में मिला। तब वह भी किराये पर रहते थे । निजी मकान बाद में हुआ था। फिर डेढ दो महीने बाद शाह जी ने कहा कि मुरादाबाद चला जाऊं । कानपुर के लिए मालिक तैयार नहीं हो रहे हैं। मैंने फिर मना कर दिया । बाद में राजुल जी ने मुझे सब एडिटर के रूप में नियुक्त्‍िा पत्र दिया और मैं अमर उजाला कानपुर गया। मैं डेढ साल बाद फिर दैनिक जागरण , बरेली लौट आया । शाह जी से मिलना जुलना बराबर होता रहा और उनके प्रति एक कृतज्ञ भाव लिये रहा।
शंभू दयाल वाजपेयी
संपादक , कैनविज टाइम्‍स ,लखनऊ।

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