विनोद वर्मा की गिरफ्तारी, भद्दी शक्ल का आईने पर गुस्सा!

अनिल जैन, वरिष्ठ पत्रकार

ऐसा सिर्फ बरतानवी हुकूमत के दौर में और आजाद भारत में आपातकाल के दौरान ही होता था जब सत्ताधीशों के इशारे पर पुलिस किसी भी पत्रकार, लेखक, साहित्यकार या सत्ता विरोधी किसी नागरिक को किसी भी मनगढंत आरोप के तहत गिरफ्तार कर जेल भेज दिया जाता था। वरिष्ठ पत्रकार विनोद वर्मा की आज शुक्रवार 27 अक्तूबर को तड़के हुई गिरफ्तारी उसी पुराने भयावह दौर की याद दिलाने वाली है।

विनोद वर्मा मूल रूप से छत्तीसगढ़ के रहने वाले हैं और कई वर्षों से दिल्ली में रहकर काम कर हैं। वे बीबीसी, अमर उजाला, देशबंधु आदि कई मीडिया संस्थानों में काम कर चुके हैं तथा अभी भी कई अखबारों और समाचार पोर्टलों के लिए लिखते हैं। पुलिस के मुताबिक विनोद वर्मा के खिलाफ धारा 384 (रंगदारी वसूलने) और धारा 506 (जान से मारने की धमकी) के तहत मामला दर्ज किया गया है।

पुलिस की ओर से दावा किया जा रहा है कि वर्मा के घर से 500 सीडी बरामद की गई हैं, जो कथित तौर पर छत्तीसगढ सरकार के लोक निर्माण मंत्री राजेश मूणत की काम-क्रिया से संबंधित है। इस सिलसिले में एक भाजपा कार्यकर्ता ने कल रायपुर में एक एफआईआर दर्ज कराई थी, जिसके आधार पर छत्तीसगढ पुलिस ने अप्रत्याशित तत्परता दिखाते हुए उत्तर प्रदेश और दिल्ली पुलिस के सहयोग से बिना किसी वारंट के विनोद वर्मा को गाजियाबाद के इंदिरापुरम स्थित उनके निवास से गिरफ्तार कर लिया।

फिलहाल गाजियाबाद की सीजेएम कोर्ट ने छत्तीसगढ पुलिस को चार दिन के लिए विनोद वर्मा की ट्रांजिट रिमांड दे दी है। पुलिस अब वर्मा को छत्तीसगढ़ ले जाएगी। विनोद वर्मा का कहना है कि उनके पास छत्तीसगढ़ सरकार के मंत्री राजेश मूणत का एक सेक्स वीडियो जरूर पेनड्राइव में है, लेकिन सीडी होने की बात गलत है, जैसा कि छत्तीसगढ़ पुलिस दावा कर रही है। दूसरी ओर राजेश मूणत का कहना है कि जो सीडी उनसे संबंधित बताई जा रही है, वह पूरी तरह फर्जी है।

जो भी हो, इस मामले में छत्तीसगढ़ पुलिस की अतिरिक्त सक्रियता और तत्परता हैरान करने वाली है और कई सवाल खड़े करती हैं। 26 अक्तूबर की दोपहर रायपुर में एफआईआर दर्ज कराई जाती है और उसी दिन रात को छत्तीसगढ़ पुलिस दिल्ली आकर गाजियाबाद पहुंच जाती है।

एफआईआर में लगाए गए आरोप की कोई छानबीन नहीं, मामले से संबंधित विभिन्न पहलुओं की कोई पड़ताल नहीं। आखिर यह सक्रियता और तत्परता किसके इशारे पर? अगर विनोद वर्मा ने कुछ गलत किया था तो पुलिस को चाहिए था कि वह मामले की पूरी तरह जांच पड़ताल करती, रात बीतने का इंतजार कर दिन के उजाले में उनसे पूछताछ करती, उनकी गिरफ्तारी के लिए सक्षम अदालत से वारंट जारी करवाती। लेकिन ऐसा कुछ नहीं किया गया। ऐसा तो सिर्फ तानाशाही में होता है, लोकतांत्रिक शासन में नहीं।

मंत्री महोदय के मुताबिक कथित सीडी फर्जी है। अगर ऐसा है तो रायपुर से लेकर दिल्ली तक सरकार और पार्टी में बदहवासी का आलम क्यों? मंत्री जी एक ओर तो सीडी को फर्जी बता रहे हैं और दूसरी ओर सीडी की जांच कराने की मांग कर रहे हैं।

सवाल है कि जांच के पहले ही मंत्री जी खुद को क्लीनचिट किस आघार पर दे रहे हैं? उनकी बदहवासी और उनके विरोधाभासी बयान तथा छत्तीसगढ़ पुलिस की हैरतअंगेज सक्रियता बता रही है कि दाल में कहीं कुछ काला जरूर है। यह अपनी शक्ल भद्दी होने के लिए आईने को दोष देने जैसा मामला है।

जाहिर है कि सत्ता में बैठे लोगों के इशारे पर यह पुलिसिया कार्रवाई विनोद वर्मा को और उनके बहाने देशभर के उन तमाम पत्रकारों को सबक सिखाने की कवायद है जो बिना बिके और बिना डरे अपना पेशागत दायित्व निभा रहे हैं। ऐसे पत्रकारों को यह कवायद चेतावनी है कि आप अपनी खैरियत चाहते हैं तो सरकार, सत्तारूढ़ दल या उसके किसी बगल बच्चा संगठन के खिलाफ कुछ लिखने या दिखाने से बचें।

(वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक अनिल जैन पिछले तीन दशकों से पत्रकारिता में सक्रिय हैं। उन्होंने नई दुनिया, दैनिक भास्कर समेत कई अखबारों में वरिष्ठ पदों पर काम किया है।)

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