यह राज्य प्रायोजित हत्या है

झाँसी से बागपत जेल लाकर मारा गया मुन्ना बजरंगी

प्रभात रंजन दीन 
झांसी से बागपत जेल लाकर अपराधी सरगना मुन्ना बजरंगी को मार डाला गया. इस ऑपरेशन के लिए बसपा के पूर्व विधायक लोकेश दीक्षित से ‘डील’ हुई. मुन्ना के खिलाफ रंगदारी मांगने का मुकदमा दर्ज कराया गया और पूरा सत्ता-तंत्र इस मामूली केस के लिए मुन्ना को बागपत जेल भेजने पर आमादा हो गया. कागज पर बागपत जेल ‘हाई-सिक्योरिटी’ जेल है, जहां एक भी सीसीटीवी कैमरा नहीं है, एक भी जैमर नहीं है और सुरक्षा का कोई बंदोबस्त नहीं है. ‘हाई-प्रोफाइल’ हत्या के लिए तथाकथित ‘हाई-सिक्योरिटी’ जेल मुफीद जगह थी. हत्या की तैयारी को अंजाम देने के लिए बसपा के पूर्व विधायक से हुई ‘डील’ इतनी भारी थी कि उसका भार मायावती बर्दाश्त नहीं कर पाईं और भनक मिलते ही लोकेश दीक्षित को पार्टी से निकाल बाहर किया.

बागपत जेल में कुख्यात अपराधी सरगना मुन्ना बजरंगी का मारा जाना राज्य प्रायोजित हत्या है. परिस्थितिजन्य साक्ष्यों के आधार पर कानून निर्णायक नतीजा निकालता है. लिहाजा, मुन्ना बजरंगी की हत्या से जुड़े परिस्थितिजन्य तथ्य काफी अहम हैं जो हत्या के राज्य प्रायोजित षडयंत्र को सामने लाते हैं. मुन्ना बजरंगी की हत्या के प्रसंग में ‘चौथी दुनिया’ कुछ ऐसे परिस्थितिजन्य तथ्य सामने ला रहा है, जिसे अब तक अंधेरे में रखा गया है. इससे राज्य प्रायोजित षडयंत्र के संदेह पुख्ता होते हैं. जांच कोई भी हो और किसी भी स्तर की हो, घटना के पीछे अगर राज्य का प्रायोजन होता है तो वह कभी भी निर्णय तक नहीं पहुंचता, उसे घालमेल करके उलझा दिया जाता है और भुला दिया जाता है. मुन्ना बजरंगी हत्या मामले में भी ऐसा ही होने वाला है.

एक अपराधी का मारा जाना महत्वपूर्ण घटना नहीं होती, लेकिन एक अपराधी को मारने के लिए अगर शासन-प्रशासन तानाबाना बुने और उसे जेल में मार डाले तो ऐसी घटना अत्यंत महत्वपूर्ण और संवेदनशील बन जाती है. मुन्ना बजरंगी हत्या प्रकरण इसीलिए बेहद महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह सत्ता के उस मूल चरित्र को उजागर करता है, जो मुन्ना बजरंगी के आपराधिक चरित्र से फर्क नहीं है. मुन्ना बजरंगी की हत्या के बाद जो एफआईआर लिखी गई और मुन्ना बजरंगी की विधवा सीमा सिंह ने जो तहरीर दी, उसमें जमीन आसमान का अंतर है. यह ऐसी हत्या है जिसमें ‘विक्टिम’ के परिजनों की सुनी नहीं जा रही. बजरंगी की पत्नी पिछले 10 दिन से कह रही थीं कि उनके पति की जेल में हत्या किए जाने का षडयंत्र चल रहा है, लेकिन शासन-प्रशासन ने जैसे कुछ सुना ही नहीं. कानून भुक्तभोगी के परिजन के न्यायिक-संरक्षण की बात कहता है, लेकिन इसे सुनता कौन है! सीमा सिंह की एफआईआर भी स्वीकार नहीं की जा रही. मुन्ना बजरंगी के परिजनों और उसके गांव वालों के आरोप करीब-करीब समान हैं. इन आरोपों की परिधि में जो भी पात्र सामने आ रहे हैं, उसके एक छोर पर केंद्रीय मंत्री मनोज सिन्हा हैं तो दूसरी छोर पर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ. इस परिधि में प्रतिद्वंद्वी माफिया सरगना सह पूर्व सांसद धनंजय सिंह, उसका करीबी प्रदीप कुमार सिंह, मुन्ना के हाथों मारे गए भाजपा नेता कृष्णानंद राय की पत्नी विधायक अलका राय, वाराणसी जेल में बंद माफिया सरगना बृजेश सिंह, बृजेश का भाजपा विधायक भतीजा सुशील सिंह, बांदा जेल में बंद कुख्यात अपराधी सरगना विधायक मुख्तार अंसारी और बसपा के पूर्व विधायक लोकेश दीक्षित का चेहरा बार-बार सामने आता है. इस परिधि में दिखने वाले नौकरशाहों के चेहरे षडयंत्र के शतरंज के मुहरे हैं. यह एक विचित्र किस्म की परिधि बन रही है. इसे ही अंग्रेजी में ‘नेक्सस’ कहते हैं. हम जिन परिस्थितिजन्य तथ्यों की बात कह रहे हैं, वे इसी ‘नेक्सस’ पर रौशनी डालते हैं. यह ‘नेक्सस’ राजनीतिक हत्या के प्रतिशोध, सियासी ‘लाभ’ के लोभ, खतरे में पड़ते राजनीतिक भविष्य, ‘धन के धंधे’ पर आते संकट, भेद खुलने और जान जाने के डर, इन सारे आयामों को समाहित करता है.

बागपत जेल में मुन्ना बजरंगी की हत्या कैसे हुई, इसे शासन और प्रशासन ने जैसा बताया, लोगों ने वैसा ही सुना. बड़े शातिराना तरीके से मुन्ना की हत्या को दिल्ली पुलिस के एसीपी राजबीर सिंह की हत्या के प्रतिशोध से भी जोड़ कर संदेह की धारा बदलने की कोशिश की गई. जबकि राजबीर की हत्या किसने की थी, इसे सब जानते हैं. राजबीर की हत्या करने वाला प्रॉपर्टी डीलर विशाल भारद्वाज आजीवन कारावास की सजा भुगत रहा है. फिर मुन्ना बजरंगी की हत्या किसने की? हत्या का कोई चश्मदीद गवाह है कि नहीं? अगर है तो वह जेल से जुड़ा कर्मचारी है या कोई कैदी? जिस पिस्तौल से हत्या की गई और जिस पिस्तौल को गटर से बरामद दिखाया गया, क्या वह एक है? जिस पिस्तौल से गोली चली उसकी क्या फॉरेंसिक जांच के बाद आधिकारिक पुष्टि हुई कि गटर से मिली पिस्तौल ही असली थी, जिसका मुन्ना बजरंगी की हत्या में इस्तेमाल हुआ? पिस्तौल की अगर फॉरेंसिक जांच कराई गई तो वह कहां से हुई? मुन्ना बजरंगी की पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट के प्रामाणिक होने की क्या गारंटी है? क्या उसके पोस्टमॉर्टम की नियमानुकूल (चारो कोनों से) वीडियो रिकॉर्डिंग कराई गई? मुन्ना बजरंगी की बाईं कनपटी से पिस्तौल सटा कर उसका भेजा उड़ा डालने के बाद उसकी फोटो खींची गई. उसके बाद उसके सीने पर फिर से गोलियां दागी गईं और फिर से फोटो खींची गई. इतनी नफरत और गुस्से से भरा हत्यारा सुनील राठी ही था या कोई और? क्या सुनील राठी का मुन्ना बजरंगी से इतना गहरा बैर था? मुन्ना बजरंगी की हत्या का स्टेज-शो चलता रहा, उसके धराशाई होने के बाद भी उसके शरीर में कई खेप में गोलियां उतारी जाती रहीं, धमाके पर धमाके होते रहे… वहां और लोग भी तो रहे ही होंगे? वे कौन लोग थे? हत्या के साथ ही मुन्ना बजरंगी के रक्तरंजित शव की फोटो भी वायरल की जाती रही.

वे कौन लोग थे जो फोटो खींच रहे थे और उसे व्हाट्सएप या सोशल मीडिया पर वायरल करते जा रहे थे? यही वायरल हुई फोटो शासन के आधिकारिक रिकॉर्ड का भी हिस्सा बनी, लेकिन शासन ने जनता को यह बताने की जरूरत नहीं समझी कि शूट-आउट के समय वहां मौजूद लोग कौन थे जो फोटो खींचते जा रहे थे? इन सवालों के सच-जवाब आपको शायद ही कभी मिल पाएं, लेकिन इन सवालों के सच आप महसूस तो करेंगे ही. आप मुन्ना बजरंगी के रक्तरंजित धराशाई शव के इर्द-गिर्द की छाया देखें. आपको तीन-चार लोगों की छाया दिखेगी. इनमें दो लोग बड़ी तसल्ली से फोटोग्राफी करते दिखेंगे. इनके काम करने का अंदाज देख कर यह कतई नहीं लगता कि उसी जगह पर कोई दुस्साहसिक और सनसनीखेज वारदात हुई है. फोटो खींचने वाले इतने ठंडे दिमाग से अपना काम कर रहे थे कि उन्होंने मुन्ना बजरंगी की लाश की कई एंगल से फोटो खींची. पथराई हुई खुली आंख वाली तस्वीर खींचने के बाद उन लोगों ने खुली हुई आंख बंद की और फिर बंद आंख वाली फोटो भी खींची और उसे भी वायरल किया. कौन थे ये ‘कोल्ड-ब्लडेड’ लोग?

ऐसे कई सवाल सामने हैं. इन्हीं सवालों के बीच से गुजरते हुए हम मुन्ना बजरंगी हत्याकांड के उन परिस्थितिजन्य तथ्यों को भी देखते चलें, जो हत्या के राज्य-प्रायोजित षडयंत्र की परतें खोलते हैं. बागपत के एक ‘पेटी’ (तुच्छ) मामले में पूरी सरकार मुन्ना को बागपत भेजने पर इस तरह आमादा थी कि कानून की मर्यादा तो छोड़िए, उसने लोकलाज की भी फिक्र नहीं की. मुन्ना बजरंगी को बागपत भेजने के लिए झांसी के जिलाधिकारी शिव सहाय अवस्थी और एसएसपी विनोद कुमार सिंह की बेचैनी ‘टास्क’ पूरा करने का श्रेय लेने का उतावलापन जाहिर कर रही थी. हत्याकांड के सत्ताई-सूत्रधारों का प्रशासन पर कितना दबाव था, इसे आसानी से समझा जा सकता है. झांसी के डीएम एसएसपी भी यह अच्छी तरह जानते थे कि मुन्ना बजरंगी की कई जगह से तलबी लंबित थी. बनारस के एडीजी फर्स्ट के यहां भी नौ जुलाई को मुन्ना की तलबी थी. वहां वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग से सुनवाई हुई. बनारस में मुन्ना की पेशी इसलिए नहीं हुई कि उसने एसटीएफ के अधिकारी द्वारा पहचान कराए जाने और हत्या का षडयंत्र किए जाने की शिकायत की थी. लेकिन इसके बरक्स झांसी के डीएम शिवसहाय अवस्थी और एसएसपी विनोद कुमार सिंह झांसी जेल के सुपरिंटेंडेंट राजीव शुक्ला पर लगातार दबाव डाल रहे थे कि मुन्ना बजरंगी को पेशी पर बागपत भेजा जाए.

यह दबाव बढ़ता गया. आखिरकार झांसी के एसएसपी विनोद कुमार सिंह ने झांसी जेल के सुपरिंटेंडेंट को अपने दफ्तर में तलब कर लिया. एसएसपी ने सुपरिंटेंडेंट को अपने अरदब में लिया और आदेशात्मक लहजे में मुन्ना बजरंगी को पेशी पर बागपत भेजने को कहा. मुन्ना बजरंगी की बीमारी और कानूनी प्रावधानों का हवाला देने पर एसएसपी ने सुपरिंटेंडेंट के साथ बदसलूकी की और गाली गलौज भी की. एसएसपी ने राजीव शुक्ला पर मुन्ना बजरंगी के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने के लिए भी दबाव डाला. एसएसपी की अभद्रता से कुपित होकर जेल सुपरिंटेंडेंट छुट्टी पर चले गए.

चार जुलाई को लखनऊ में जेल विभाग की समीक्षा बैठक में झांसी जेल के सुपरिंटेंडेंट ने सारी आपबीती जेल विभाग के एडीजी चंद्रप्रकाश और बैठक में मौजूद आला अधिकारियों के समक्ष रखी. झांसी जेल के सुपरिंटेंडेंट ने अपने आला अधिकारियों को यह भी जानकारी दी कि मुन्ना बजरंगी अपनी हत्या की साजिश की आशंका जता रहा था और उनसे कह रहा था कि इस मामले में वे (जेल सुपरिंटेंडेंट) नाहक न पड़ें. यह बात एसएसपी विनोद कुमार सिंह से भी बताई गई थी, तब एसएसपी ने मुन्ना के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने के लिए कहा था. झांसी जेल के सुपरिंटेंडेंट की शिकायत के बावजूद जेल विभाग के शीर्ष अधिकारियों ने इस मसले पर जरूरी कोई कार्रवाई नहीं की. इसके बाद जेल सुपरिंटेंडेंट राजीव शुक्ला फिर छुट्टी पर चले गए. शुक्ला मुन्ना बजरंगी की बागपत में हत्या के बाद ही झांसी लौटे. मुन्ना बजरंगी को बागपत भेजने के लिए झांसी के एसएसपी विनोद कुमार सिंह इतने उतावले क्यों थे? इस गंभीर सवाल के पीछे कई खौफनाक तथ्य झांकते दिखते हैं.

पूरा जेल प्रशासन राज्य प्रायोजित षडयंत्र के आगे घुटने टेक गया. जेल सुपरिंटेंडेंट की गैर मौजूदगी में मुन्ना बजरंगी को बागपत रवाना करने के लिए ऐसा समय चुना गया कि वहां पहुंचते-पहुंचते रात हो जाए. इसके लिए गाड़ियां इतनी धीमी चलवाई गईं कि जहां पहुंचने में अधिक से अधिक नौ घंटे लगते हैं, वहां करीब 14 घंटे लगे. मुन्ना बजरंगी को बागपत के लिए लेकर चली एस्कॉर्ट टीम को यह पता ही नहीं था कि मुन्ना को कहां रखा जाना है. जबकि कैदी की रवानगी के पहले ही एस्कॉर्ट टीम के मुखिया के हाथ में दो आदेश-पत्र सौंप दिए जाते हैं. मूल जेल से कैदी को ले जाने और जिस जेल में कैदी को रखा जाना है वहां का आदेश पत्र एस्कॉर्ट टीम के पास रहता है. ये दोनों आदेश-पत्र सम्बन्धित जेल अधिकारियों को सौंपे जाने के बाद ही कैदी की जेल में आमद की औपचारिकता पूरी की जाती है. मुन्ना बजरंगी को बागपत ले जाने वाली एस्कॉर्ट टीम के पास यह आदेश-पत्र नहीं था. लिहाजा, मुन्ना बजरंगी को लेकर गए एंबुलेंस एवं अन्य वाहनों को बागपत पुलिस लाइन की तरफ मोड़ा गया. रास्ते में ही एस्कॉर्ट के पास एक फोन आया और वाहनों को बागपत जेल की तरफ मोड़ दिया गया. बागपत जेल गेट पर ड्यूटी दे रहे अधिकारियों और जेल कर्मियों ने मुन्ना बजरंगी को रात के साढ़े नौ बजे लाने पर जेल में आमद का आदेश पत्र मांगा. एस्कॉर्ट के पास ऐसा कोई आदेश पत्र नहीं था.

मुन्ना बजरंगी को लेकर आया एम्बुलेंस वाहन, अन्य गाड़ियां और एस्कॉर्ट टीम बागपत जेल के दरवाजे पर खड़ी रही. फिर फोन घनघनाना शुरू हो गया. शासन से लेकर प्रशासन तक, कई शीर्ष अधिकारियों ने जेल प्रशासन पर मुन्ना बजरंगी की जेल में आमद किए जाने का दबाव डाला. लेकिन आमद के आदेश-पत्र का मसला फंसा था. आखिरकार जेलर उदय प्रताप सिंह ने रास्ता निकाला. डीआईजी जेल का एक पुराना आदेश पत्र निकाला गया जो कुछ महीने पहले मुन्ना बजरंगी को पेशी के लिए बागपत जेल में रखे जाने से सम्बन्धित था. बागपत जेल प्रशासन ने इसी पुराने आदेश पर मुन्ना बजरंगी की जेल में इंट्री कराई. मुन्ना की हत्या होने के बाद इन्हीं जेल अधिकारियों और कर्मचारियों पर कर्तव्य में लापरवाही बरतने का आरोप मढ़ कर उन्हें सस्पेंड कर दिया गया. निलंबित होने वालों में बागपत जेल के जेलर उदय प्रताप सिंह, डिप्टी जेलर शिवाजी यादव, जेल हेडवार्डर अरजेंदर सिंह और बैरक के प्रभारी जेल वार्डर माधव कुमार शामिल हैं. इनमें जेलर की भूमिका संदेह के दायरे में है. जानकार कहते हैं कि जेलर जौनपुर का रहने वाला है और माफिया सरगना सह सांसद का पूर्व-परिचित है. खूबी यह भी है कि मुन्ना बजरंगी की हत्या की एफआईआर भी सस्पेंडेड जेलर उदय प्रताप सिंह ने ही दर्ज कराई. गृह विभाग के एक आला अधिकारी ने कहा कि जेल कर्मियों का निलंबन और अनुशासनिक कार्रवाई की बातें सब प्रायोजित प्रहसन का हिस्सा हैं. इसमें किसी के खिलाफ कुछ नहीं होने वाला है.

विडंबना यह है कि बागपत जेल में सुपरिंटेंडेंट का पद अर्से से खाली है, लेकिन सरकार को यह नहीं दिखता. गौतम बुद्ध नगर जेल के सुपरिंटेंडेंट विपिन मिश्र बागपत जेल के सुपरिंटेंडेंट का भी अतिरिक्त कार्यभार संभाल रहे हैं. ऐसी अराजकता की स्थिति बना कर रखना हत्या के उच्चस्तरीय षडयंत्रों की कामयाबी के लिए जरूरी होता है. जब मुन्ना बजरंगी को झांसी जेल से बागपत के लिए रवाना किया गया तब वहां सुपरिंटेंडेंट नहीं थे और जब बागपत जेल से मुन्ना बजरंगी को जिंदगी से रवाना किया गया तब वहां भी सुपरिंटेंडेंट नहीं थे. यह संयोग है या ‘योग’? मुन्ना बजरंगी हत्याकांड में ऐसे कई ‘योग’ आपको देखने को मिलेंगे. सरकार ने या प्रशासन ने अब तक यह भी नहीं बताया है कि मुन्ना बजरंगी का बायां हाथ कैसे टूटा? क्या पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट में यह तथ्य दर्ज किया गया? जेल प्रशासन कहता है कि पोस्टमॉर्टम की वीडियो रिकॉर्डिंग कराई गई. क्या पोस्टमॉर्टम की वीडियो रिकॉर्डिंग में मुन्ना बजरंगी का बायां हाथ ताजा-ताजा टूटे होने का मामला शव-विच्छेदन के दौरान पकड़ में आया था या उसकी तरफ किसी ने ध्यान ही नहीं दिया? मुन्ना बजरंगी का बायां हाथ तोड़ा गया या गोली लगने से उसका हाथ टूटा, पोस्टमॉर्टम में यह बात सामने आनी चाहिए थी, लेकिन नहीं आई.

बागपत जेल में गोलीबारी की घटना सवेरे छह बजे हुई, लेकिन दोपहर तक मुन्ना बजरंगी की लाश जेल परिसर में ही पड़ी रही. शव को अस्पताल भेजने की जरूरत नहीं समझी गई. कारण पूछने पर जेल प्रशासन ने कहा कि जेल अस्पताल के डॉक्टर ने मुन्ना बजरंगी की मरने की पुष्टि कर दी थी, इसलिए अस्पताल नहीं भेजा गया. दोपहर दो बजे के बाद मुन्ना बजरंगी की बॉडी पोस्टमॉर्टम के लिए अस्पताल भेजी गई. लेकिन पोस्टमॉर्टम चार बजे शाम तक नहीं हुआ. बागपत के सीएमओ को औपचारिक सूचना भी काफी देर से भेजी गई. जिला प्रशासन के एक आला अधिकारी ने कहा कि यह विलंब जानबूझ कर किया जा रहा था ताकि देर शाम तक बॉडी रिलीज़ हो और उसी सीधे जौनपुर ले जाया जा सके. एफआईआर दर्ज कराने के लिए अड़ीं मुन्ना बजरंगी की पत्नी सीमा सिंह की तहरीर तब ली गई जब मुन्ना बजरंगी का शव लेकर जा रहा वाहन बागपत की सीमा पार कर एक्सप्रेस हाईवे टोल पर पहुंच गया. वहीं पर सीमा सिंह से तहरीर लिखवाई गई और एक पुलिस अधिकारी ने उसे रिसीव करने की औपचारिकता निभा कर उन्हें रवाना कर दिया.

पहले पीलीभीत जेल में निपटाने की साजिश थी

जेल विभाग के ही अधिकारी बताते हैं कि मुन्ना बजरंगी को निपटाने की साजिश लंबे अर्से से की जा रही थी. वर्ष 2017 में उसे पीलीभीत जेल इसी इरादे से ट्रांसफर किया गया था. झांसी से पीलीभीत जेल ट्रांसफर करने के पीछे शासन ने यह तर्क दिया था कि माफिया सरगना मुन्ना बजरंगी ने झांसी जेल में इतनी पकड़ बना ली है कि वह जेल से अपना धंधा फैला रहा है. इसी पर अंकुश लगाने के लिए उसे पीलीभीत भेजा गया. लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश सरकार की इस कोशिश पर पानी फेर दिया. सुप्रीम कोर्ट ने मुन्ना बजरंगी को झांसी से पीलीभीत जेल शिफ्ट करने के यूपी सरकार के आदेश को गलत और गैर-वाजिब बताया और उसे तत्काल प्रभाव से वापस झांसी जेल ले जाने का आदेश दिया था.

लोकेश से ‘डील’ कर निकाला बागपत का रास्ता

पीलीभीत ‘प्लॉट’ में नाकामी मिलने के बाद मुन्ना बजरंगी को किसी भी तरह बागपत जेल भेजने का बहाना तलाशा जा रहा था. इसके लिए पूर्व बसपा विधायक लोकेश दीक्षित का साथ मिल गया. मुन्ना के खिलाफ बागपत में रंगदारी की पहले भी एक एफआईआर हुई थी लेकिन वो खारिज हो गई थी. अब ऐसे व्यक्ति की तलाश की जा रही थी जो मामला दर्ज करने के साथ-साथ अदालत में लंबे समय तक स्टैंड कर सके. पूर्व विधायक लोकेश दीक्षित के जरिए मुन्ना बजरंगी के खिलाफ रंगदारी के लिए धमकी दिए जाने का मामला सितम्बर 2017 में दर्ज करा दिया गया. मुकदमे में कहा गया कि फोन पर किसी ने मुन्ना बजरंगी के नाम पर लोकेश दीक्षित से रंगदारी टैक्स मांगा था. बस षडयंत्र के प्लॉट को इतना ही बहाना चाहिए था. टेलीफोन पर दी गई धमकी की अंदरूनी जांच कराने की भी जरूरत नहीं समझी गई और मुन्ना बजरंगी की बागपत में पेशी का डेथ-वारंट जारी हो गया. वर्ष 2016-17 के आयकर-रिटर्न के मुताबिक जिस पूर्व विधायक लोकेश दीक्षित की आय चार लाख 24 हजार 940 रुपए हो, उससे मुन्ना बजरंगी जैसे कुख्यात अपराधी सरगना द्वारा रंगदारी टैक्स मांगने का आरोप किस तरह के षडयंत्र का हिस्सा है, यह स्पष्ट है. लोकेश दीक्षित से हुई ‘डील’ के 2019 के पहले उजागर होने तक इस मामले पर रहस्य बना रहेगा. हालांकि इस ‘डील’ की भनक बसपा सुप्रीमो मायावती को लग गई और उन्होंने लोकेश दीक्षित को पार्टी से निकाल बाहर किया.

फोन डिसकनेक्टेड, कॉन्सपिरैसी कनेक्टेड

झांसी जेल के डॉक्टर और मुन्ना बजरंगी के वकील अनुज यादव की बातचीत का ऑडियो रिकॉर्ड सुनें तो बागपत ले जाकर मुन्ना बजरंगी को मार डालने की साजिश का साफ-साफ अंदाजा मिलेगा. मुन्ना बजरंगी को बागपत ले जाए जाने के पहले जेल डॉक्टर और वकील के बीच हुई टेलीफोनिक बातचीत का प्रासंगिक हिस्सा यहां हूबहू प्रस्तुत है… वकील- क्या स्टेटस है उनके हेल्थ का? डॉक्टर- बीपी बढ़ा चल रहा है. हम दवा दे रहे हैं. इंजेक्शन दिया है, दवा भी दी है, लेकिन बीपी कम नहीं हो रहा है. वकील- ऐसी स्थिति में क्या उनके मूवमेंट की स्थिति है? डॉक्टर- नहीं, उन्हें देखने के लिए जितने भी डॉक्टर आए हैं, सबने उन्हें आईसीयू में एडमिट कराने की सलाह दी है. वकील- लेकिन मरीज जिंदा रहेगा तब तो उसका इलाज होगा! हम यह चाहते हैं कि जेल के अस्पताल में ही मुन्ना बजरंगी का इलाज हो. उन्होंने भी ऐसा ही लिख कर दे दिया है. फिर उन्हें बाहर क्यों भेजा जा रहा है… इसका कोई जवाब आए उसके पहले ही फोन लाइन डिसकनेक्ट हो जाता है.

राठी, पिस्तौल, धनंजय, मुख्तार और फोन

मुन्ना बजरंगी की हत्या में सुनील राठी का नाम लिए जाने से पूरब और पश्चिम का एक नया आपराधिक-राजनीतिक समीकरण सामने आया. सुनील का नाम लेकर कहा गया कि पिस्तौल मुन्ना बजरंगी के हाथ में थी, जिसे छीन कर उसने गोली मार दी. फिर पिस्तौल को लेकर एक जेलकर्मी का बयान आया कि रात में टिफिन में रख कर पिस्तौल भेजी गई. एक जेल अधिकारी ने कहा कि यह नहीं पता चल पाया कि वह टिफिन मुन्ना बजरंगी के लिए आया था या सुनील राठी के लिए. जेल अधिकारी को यह पता था कि पिस्तौल टिफिन में छिपा कर पहुंचाई गई, लेकिन उन्हें यह नहीं पता था कि टिफिन किस कैदी के लिए आया था. मुन्ना बजरंगी की बागपत जेल में आमद साढ़े नौ बजे रात के बाद हुई. फिर देर रात में टिफिन किसके लिए भेजा गया था? टिफिन का खाना किस कैदी के लिए गया? यह चेक किए बगैर कैसे पता चला कि टिफिन में पिस्तौल छुपा कर रखी गई थी? सब बकवास है. जेल के ही जानकार बताते हैं कि जब हत्या का ‘प्लॉट’ सत्ता के उच्चस्तर से हो रहा हो तो पिस्तौल पहुंचना कौन सी बड़ी बात है!

अभी यह भी तो पता चले कि मुन्ना बजरंगी को गोली किसने मारी? ऑपरेशन पूरा करने में कितने लोग अंदर भेजे गए थे और वे कौन थे? जिस सुनील राठी को इस हत्या प्रकरण में आगे लाया गया, वह कभी मुन्ना बजरंगी का दोस्त था. पूरब और पश्चिम में दोनों के गिरोह आपसी समझदारी से अपराध किया करते थे. संजीव माहेश्वरी जीवा और रविप्रकाश के जरिए सुनील ने मुन्ना बजरंगी से दोस्ती गांठी थी और मुख्तार अंसारी के गिरोह से भी जुड़ गया था. आखिर ऐसा क्या हुआ कि मुन्ना बजरंगी की हत्या में राठी का इस्तेमाल किया गया? जौनपुर के पूर्व सांसद धनंजय सिंह के जेल जाकर राठी से दो-दो बार मिलने और मुख्तार अंसारी के साथ लगातार संवाद में रहने को भी मुन्ना बजरंगी की हत्या से जोड़ कर देखा जा रहा है. एसटीएफ के एक जानकार अफसर ने कहा कि मुख्तार अंसारी को यह भी संदेह था कि कृष्णानंद राय की हत्या के मामले में मुन्ना बजरंगी कहीं सरकारी गवाह बन कर उसका खेल न बिगाड़ दे. मुन्ना बजरंगी पर बागपत जेल में हुई गोलीबारी के ठीक पहले राठी के पास किस व्यक्ति का फोन आया था? यह फोन टास्क पूरा करने के लिए तो नहीं आया था? फोन कहां गायब हो गया? जब पिस्तौल बरामद हो गई तो फोन बरामद क्यों नहीं हुआ? यह सवाल उस संदेह को पुख्ता करता है कि जो पिस्तौल बरामद दिखाई गई वह असली नहीं है. जिस तरह फोन गायब हो गया उसी तरह हत्या में इस्तेमाल हथियार भी गायब कर दिया गया.

जब बीच सड़क पर लिखवाई गई सीमा सिंह की तहरीर

जब मुन्ना बजरंगी की हत्या का मामला दो अपराधियों के बीच शूट-आउट का मामला था तो पुलिस प्रशासन मुन्ना की पत्नी सीमा सिंह की तहरीर पर एफआईआर क्यों नहीं दर्ज कर रहा था? बागपत पुलिस बार-बार सीमा सिंह की मांग टालती रही. पोस्टमॉर्टम गृह (मॉर्चुरी) पर मौजूद सीमा सिंह से कहा गया कि पोस्टमॉर्टम के बाद खेकड़ा थाने में उनकी एफआईआर दर्ज कर ली जाएगी. लेकिन पोस्टमॉर्टम के बाद जब शव लेकर एंबुलेंस वाहन चला तो रुकने का नाम ही नहीं लिया. रास्ते में भी पुलिस ने कहा कि खेकड़ा थाने पर एफआईआर लिखी जाएगी. लेकिन वाहन चलते रहे, आखिरकार जब एक्सप्रेस हाइवे आ गया और बागपत बॉर्डर पीछे छूट गया तब दूसरी एक गाड़ी ने ओवरटेक करके एम्बुलेंस को जबरन रोका और परिजनों ने रास्ता जाम कर दिया. आखिरकार सड़क पर ही सीमा सिंह की तरफ से एडवोकेट विकास श्रीवास्तव ने तहरीर लिखी. रामानंद कुशवाहा नामके एक पुलिस अधिकारी ने तहरीर रिसीव करने की औपचारिकता निभाई और उन्हें रवाना कर दिया.

मुन्ना बजरंगी की पत्नी ने तहरीर में यह आरोप लगाया है कि उनके पति की हत्या के षडयंत्र में जौनपुर के पूर्व सांसद धनंजय सिंह, उनके साथी प्रदीप सिंह उर्फ पीके, रिटायर्ड डीएसपी जीएस सिंह और सहयोगी राजा शामिल हैं. इन आरोपियों ने ही उनके भाई पुष्पजीत सिंह और पति के मित्र मोहम्मद तारिक की कुछ अर्सा पहले लखनऊ में हत्या कराई थी. इसके पहले सीमा सिंह ने एसटीएफ कानपुर में तैनात इंस्पेक्टर घनश्याम यादव के भी षडयंत्र में शामिल होने का सार्वजनिक आरोप लगाया था, जिसने झांसी जेल में मुन्ना बजरंगी को खाने में जहर देने की कोशिश की थी.

बजरंगी ने ली थी आर्म्स डीलर को मारने की सुपारी

समय समय की बात है. अपराधी सरगना मुन्ना बजरंगी ने आर्म्स डीलर अभिषेक वर्मा को तिहाड़ जेल में ही निपटाने की सुपारी ली थी. तब मुन्ना भी तिहाड़ जेल में बंद था और बहुचर्चित आर्म्स-डील घोटाला मामले में अंतरराष्ट्रीय आर्म्स डीलर अभिषेक वर्मा और उसकी रोमानियाई पत्नी आन्का मारिया वर्मा भी तिहाड़ जेल में कैद थी. ‘चौथी दुनिया’ ने पिछले साल अगस्त के पहले हफ्ते में इसे उजागर किया था. रक्षा सौदे से जुड़े आर्म्स डीलर और दलालों द्वारा आपसी प्रतिद्वंद्विता में एक दूसरे को निपटाने के लिए उत्तर प्रदेश के माफिया सरगना को सुपारी दिए जाने का यह पहला मामला था. ‘चौथी दुनिया’ ने मुन्ना बजरंगी के हाथ का लिखा वह पत्र भी छापा था, जो उसने आर्म्स डीलर के बारे में लिखी थी. यह एक अजीबोगरीब खुलासा था कि रक्षा सौदे से जुड़े आर्म्स डीलरों, दलालों और उनके मददगार नौकरशाहों ने ‘रोड़े हटाने के लिए’ दाऊद इब्राहीम के भाई अनीस इब्राहीम तक को ‘ठेका’ दिया था. इसमें आर्म्स डीलर अभिषेक वर्मा को रास्ते से हटाने का ठेका मुन्ना बजरंगी को मिला था. सुपारी-प्रकरण में बड़े आर्म्स डीलरों, नेताओं और नौकरशाहों के नाम आए थे, लेकिन सीबीआई में मामला दब गया.

सीबीआई के कई अधिकारी भी ‘आर्म्स डीलर नेक्सस’ से जुड़े थे. सरकारी गवाह बनने के बाद अभिषेक वर्मा ने जिन अधिकारियों और दलालों की संदेहास्पद भूमिका के बारे में लिखित जानकारी दी थी, उसे सीबीआई ने ‘संदर्भित नहीं’ बता कर दबा दिया. सीबीआई के तत्कालीन संयुक्त निदेशक ओपी गलहोत्रा ने इस बात की पुष्टि की थी कि सरकारी गवाह और उसकी पत्नी को जान से मारने धमकियां दी जा रही हैं. इस बारे में उनका और दिल्ली के पुलिस कमिश्नर के बीच आधिकारिक संवाद भी हुआ था. फिर तिहाड़ जेल में वर्मा दम्पति की सुरक्षा का पुख्ता इंतजाम किया गया. लेकिन इसकी जांच ठंडे बस्ते में डाल दी गई. प्रवर्तन निदेशालय के डिप्टी डायरेक्टर रहे अशोक अग्रवाल, सीबीआई के एसएसपी रमनीश गीर और इंसपेक्टर राजेश सोलंकी के नाम इस प्रसंग में सामने आए और सरकारी गवाह को धमकी देने के साथ-साथ रक्षा सौदा मामले को दूसरी दिशा में मोड़ने की कोशिशें करने की शिकायतें भी हुईं, लेकिन सीबीआई ने उसे अपनी जांच की परिधि में नहीं रखा. हालांकि गृह मंत्रालय ने इस शिकायत को गंभीरता से लेते हुए केंद्रीय सतर्कता आयोग को जरूरी कार्रवाई करने को कहा था. सीबीआई के तत्कालीन संयुक्त निदेशक (पॉलिसी) जावीद अहमद के समक्ष भी यह मामला पहुंचा, लेकिन उन्होंने भी इसकी जांच कराने के बजाय इसे टाल देना ही बेहतर समझा.

उल्लेखनीय है कि तिहाड़ जेल प्रबंधन के हस्तक्षेप पर दिल्ली के लोधी रोड थाने में एफआईआर दर्ज हुई थी. उस एफआईआर में यह तथ्य दर्ज है कि दलाल विक्की चौधरी और ईडी के आला अफसर अशोक अग्रवाल ने ‘कॉन्ट्रैक्ट-किलर’ मुन्ना बजरंगी को सुपारी दी है. सुपारी मसले पर तो कुछ नहीं हुआ, बस मुन्ना बजरंगी को तिहाड़ जेल से हटा कर पहले सुल्तानपुर जेल और फिर झांसी जेल शिफ्ट कर दिया गया. मुन्ना बजरंगी को झांसी से पीलीभीत जेल ट्रांसफर किया गया, लेकिन उसने सुप्रीम कोर्ट से अपना ट्रांसफर रुकवा लिया. मुन्ना बजरंगी की पत्नी सीमा सिंह ने अपना दल (कृष्णा पटेल) और पीस पार्टी के साझा उम्मीदवार के बतौर मड़ियाहू विधानसभा सीट से 2017 में चुनाव लड़ा, लेकिन हार गईं. कई गंभीर मामलों से धीरे-धीरे बरी होते जा रहे मुन्ना बजरंगी की भविष्य में राजनीतिक क्षेत्र में होने वाली आमद एक साथ कई महारथियों को परेशान कर रही थी.

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