जनसंदेश के प्रधान संपादक की सोच, अपना काम बनता भाड़ में जाए संस्था

subhashआज प्रदेश में तीन बड़े नेताओं की रैलियां थीं राहुल गांधी अमेठी में लोगों को संबोधित कर रहे थे, सपा मुखिया मुलायम सिंह यादव बनारस में लोगों को संबोधित कर रहे थे वहीं भारतीय जनता पार्टी के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेन्द्र मोदी गोरखपुर में एक विशाल जनसभा कर रहे थे। लखनऊ अखबारी जगत से इन तीनों जगह पर कवरेज के लिए या तो अखबारों के संपादक या फिर ब्यूरो चीफ पहुंचे हुए थे, लेकिन एक अखबार ऐसा भी था जिसने खबरें तो लगाईं लेकिन अपने संवादसूत्रों द्वारा लिखी खबरों को लगाया। बात जनसंदेश टाइम्स की हो रही है। जनसंदेश टाइम्स के प्रधान संपादक डा. सुभाष राय को संस्थान के कार्यों में मन नहीं लगता जहां इन बड़े नेताओं की रैलियों की कवरेज के लिए या तो ब्यूरो चीफ को जाना चाहिए था या स्वयं उनको जाना चाहिए था बजाय इसके वह स्वयं सुल्तानपुर में एक कार्यक्रम के दौरान स्वयं अपना सम्मान कराने पहुंच गए। कहते हैं न अपना काम बनता, भाड़ में जाए संस्था। सुभाष राय पर यह मुहावरा एकदम सटीक बैठता है। ऐसा नहीं है कि कवरेज खबरों की नहीं हुई, अमेठी में ब्यूरो के सीनियर रिपोर्टर ने कवरेज किया था लेकिन बाकी दो जगहों से या तो एजेंसी से खबर ले ली गई या फिर संवादसूत्र द्वारा भेजी गई खबरों को लिया गया। क्या इसी कार्यशैली के चलते अखबार का विकास संभव है शायद नहीं। डा. सुभाष राय भी इस बात को अच्छी तरह से जानते हैं बावजूद इसके वह कभी भी संस्थान के हित के बारे में नहीं सोचते।

 

 

bj

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