इनसे मिलिए ये हैं बीबीसी के पूर्व सवाददाता, गोमती नगर में रियायती दर पर मिले प्लाट पर तीन मंजिला निर्माण करवाकर व्यवसायिक कार्य किया जा रहा है बावजूद इसके गुलिस्ता कालोनी के सरकारी मकान में जमा रखा है कब्ज़ा

गोमती नगर, लखनऊ योजना में पत्रकारों के लिए भूखण्डों के लिए पंजीकरण-आवंटन पुस्तिका के कॉलम 13 में यह शर्त रखी गयी थी कि आवंटित भूखण्ड का उपयोग केवल आवासीय प्रयोजन के लिए ही किया जायेगा। यदि किसी समय यह पाया जाता है कि आवंटी ने अन्यथा उपयोग किया है तो उपाध्यक्ष (लविप्रा) को आवंटित भूखण्ड निरस्त करने का पूर्ण अधिकार होगा।

रामदत्त त्रिपाठी को पत्रकारपुरम  में मिला रियायती दर पर प्लाट जिसपर बना है तीन मंजलिला भवन

सैकड़ों पत्रकार ऐसे हैं जिन्हें तत्कालीन मुलायम सरकार ने रियायती दरों पर भूखण्ड और मकान उपलब्ध करवाए थे इसके बावजूद वे सरकारी आवासों का मोह नहीं त्याग पा रहे। इनमें से कई पत्रकार ऐसे हैं जिनके निजी आवास भी लखनऊ में हैं फिर भी सरकारी आवासों का लुत्फ उठा रहे हैं जबकि नियम यह है कि सरकारी आवास उन्हीं को दिए जा सकते हैं जिनका निजी आवास लखनऊ में न हो। कुछ पत्रकारों ने रियायती दरों पर मिले मकानों को किराए पर देकर सरकारी आवास की सुविधा ले रखी है तो कुछ सरकारी आवासों को ही किराए पर देकर दोहरा लाभ उठा रहे हैं।

रामदत्त त्रिपाठी

बीबीसी में संवाददाता रहने के बाद सेवानिवृत्त हो चुके रामदत्त त्रिपाठी को तत्कालीन मुलायम सरकार ने अनुदानित दरों पर पत्रकारपुरम में प्लाट आवंटित किया था। सरकार की ओर से अनुदानित दरों पर जो प्लाट दिया गया था, उस पर इन्होंने तीन मंजिला निर्माण करवाकर व्यवसायिक कार्य के लिए किराए पर दे रखा है। गौरतलब है कि तत्कालीन सरकार के कार्यकाल में अनुदानित दरों पर भूखण्ड आवंटन के समय स्पष्ट रूप से कहा था कि जो भूखण्ड उन्हें दिया जा रहा है उसे 30 वर्ष से पहले न तो बेचा जा सकता है और न ही व्यवसाय के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है इसके बावजूद श्री त्रिपाठी ने अपने भूखण्ड पर निर्माण करवाकर व्यवसायिक कार्यों के लिए दे रखा है। जानकार सूत्रों का दावा है कि उक्त भवन को आवासीय से व्यवसायिक में भी परिवर्तित नहीं कराया गया है।

जाहिर है नगर निगम को व्यवसायिक दरों पर टैक्स भी नहीं मिल रहा है। बताया जाता है कि उन्हीं के कुछ निकट साथियों ने गुपचुप तरीके से नगर निगम को वस्तुस्थिति से अवगत कराया था, लेकिन विभाग वरिष्ठ पत्रकार के सत्ताधारियों से करीबी रिश्तों के कारण कार्रवाई करने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहा। वर्तमान समय में श्री त्रिपाठी किस मीडिया संस्थान में अपनी सेवाएं दे रहे हैं? किसी को जानकारी नहीं, इसके बावजूद श्री त्रिपाठी न सिर्फ स्वतंत्र पत्रकार की हैसियत से राज्य मुख्यालय की मान्यता लेकर सरकारी सुख सुविधाओं का लाभ ले रहे हैं बल्कि सरकारी आवास में भी नियमविरुद्ध तरीके से अध्यासित हैं। पत्रकारों के मध्य वरिष्ठ पत्रकारों की श्रेणी में गिने जाने वाले श्री त्रिपाठी ने गुलिस्तां कालोनी में (भवन संख्या 55 नम्बर) सरकारी आवास पर अपना कब्जा जमा रखा है।

किसी समय जनसत्ता एक्सप्रेस में सम्पादक रहे पंकज वर्मा को भी सरकारी अनुदान पर गोमती नगर, विनय खण्ड में भूखण्ड संख्या

पंकज वर्मा

4/49 आवंटित किया गया है लेकिन वे राजधानी लखनऊ के अति विशिष्ट इलाके में मौजूद राजभवन कालोनी में भवन संख्या 1 पर अवैध रूप से काबिज हैं। इनके कब्जे को राज्य सम्पत्ति विभाग ने भी अवैध मानते हुए इनका आवास एक अन्य पत्रकार को आवंटित कर दिया था लेकिन सूबे की सत्ताधारी सरकारों से मधुर सम्बन्धों के चलते राज्य सम्पत्ति विभाग सरकारी आवास से कब्जा नहीं हटवा सका। जिस पत्रकार को पंकज वर्मा का सरकारी आवास आवंटित किया गया था उस पत्रकार ने श्री वर्मा के अवैध कब्जे को न्यायालय में भी चुनौती दी थी।

विवादों से काफी पुराना नाता है पंकज वर्मा का , 2019 में दर्ज हो चुका है जालसाजी का मुकदमा दर्ज निरस्त हो गई थी मान्यता 

खुद को साधना टीवी का पत्रकार बताने वाले विवादित पंकज वर्मा एक बार फिर विवादों में पड़ गए हैं। इस बार साधना टीवी में विशेष संवाददाता के रूप में सूचना विभाग से मान्यता होने के बावजूद फ़र्ज़ी पत्र सूचना विभाग को देकर खुद को टीवी का ग्रुप एडिटर बताने पर चैनल द्वारा उन्हें पहले चेतावनी दी गयी थी।

लेकिन सुधार न होने पर हज़रतगंज कोतवाली में मुकदमा दर्ज कराया गया। इतना ही नहीं, इनकी सरकारी मान्यता भी निरस्त कर दी गयी है। राजभवन कॉलोनी में इनके आवास को खाली कराने का काम राज्य संपत्ति विभाग कर रहा है। रसूख दिखाकर ब्यूरोक्रेसी पर रौब झाड़ना शायद इन्हें महँगा पड़ गया है।

नियमों की उड़ती रही धज्जियां : गोमती नगर, लखनऊ योजना में पत्रकारों के लिए भूखण्डों के लिए पंजीकरण-आवंटन पुस्तिका के कॉलम 13 में यह शर्त रखी गयी थी कि आवंटित भूखण्ड का उपयोग केवल आवासीय प्रयोजन के लिए ही किया जायेगा। यदि किसी समय यह पाया जाता है कि आवंटी ने अन्यथा उपयोग किया है तो उपाध्यक्ष (लविप्रा) को आवंटित भूखण्ड निरस्त करने का पूर्ण अधिकार होगा।

उक्त शर्त के बावजूद ज्यादातर पत्रकारों ने अपने भूखण्डों का उपयोग कामर्शियल के तौर पर कर रखा है। इतना ही नहीं कॉलम 12 में यह स्पष्ट वर्णित है कि यदि कोई आवंटी भूखण्ड के निबंधन तिथि से पांच वर्ष के अन्दर मानचित्र स्वीकृत कराकर मानचित्र के अनुसार निर्माण कार्य पूरा नहीं करवाता है उसे अतिरिक्त 5 वर्ष का समय सरचार्ज लेकर दिया जायेगा। अधिकतम 10 वर्ष तक यदि भूखण्ड पर निर्माण नहीं होता तो दस वर्ष लीज को समाप्त कर दिया जायेगा। कई पत्रकार ऐसे हैं जिन्होंने निर्धारित अवधि बीत जाने के बावजूद भूखण्ड पर कोई निर्माण नहीं करवाया है और उनके भूखण्ड मौजूदा समय में भी उन्हीं के कब्जे में हैं।

गोमती नगर की विभिन्न योजनाओं में पत्रकारों के लिए राज्य सरकार की ओर अनुदानित भू-खण्डों के लिए कुछ नियम व शर्ते तय की गयी थीं। शर्तों में कहा गया है कि भू-खण्ड उन्हीं श्रमजीवी पत्रकारों को आवंटित किए जायेंगे जो वर्किंग जर्नलिस्ट एक्ट 1955 के तहत शर्तों को पूरा करते हों। यदि किसी पत्रकार ने पूर्व में ही पुराने सब्सिडी योजना में भवन अथवा भू-खण्ड ले रखा है या प्राप्त कर बेच चुका है, वह इस योजना का लाभ लेने का पात्र नहीं होगा। इसके बावजूद ज्यादातर पत्रकारों ने नियमों की धज्जियां उड़ाते हुए अनुदानित दरों पर भू-खण्ड तत्कालीन मुलायम सरकार से झटक लिए।

 

नियम पुस्तिका में स्पष्ट लिखा गया है कि सरकार की ओर से दिए गए अनुदानित दरों वाले भू-खण्डों को कम से कम कम 30 वर्षों तक बेचा नहीं जा सकेगा और न ही किसी अन्य को हस्तान्तरित किया जा सकेगा। निर्धारित अवधि पूरी होने से पहले ही ज्यादातर भू-खण्ड या तो बेचे जा चुके हैं या फिर उन भू-खण्डों पर निर्माण करवाकर उन्हें किराए पर उठाया जा चुका है।

 

महत्वपूर्ण शर्तों में भू-खण्ड पर मकान के निर्माण के बाबत सख्त निर्देश दिए गए हैं। निर्देशानुसार भू-खण्ड के निबन्धन की तिथि से पांच वर्ष के अन्दर आवंटी को मानचित्र स्वीकृत कराकर निर्माण कार्य पूरा करा लेना होगा। यदि कोई आवंटी उपरोक्त निर्धारित अवधि में निर्माण कार्य नहीं कराता है तो पांच वर्ष की अवधि के उपरांत उसे पांच वर्ष का अतिरिक्त समय प्रति वर्ष क्रय मूल्य को दो प्रतिशत सरचार्ज लेकर दिया जायेगा और यदि वह 10 वर्ष के अन्दर भी निर्माण नहीं करवा पाता है तो दस वर्ष बाद उसकी लीज समाप्त कर दी जायेगी। सख्त आदेशों के बावजूद दर्जनों की संख्या में भू-खण्ड डेढ़ दशक से भी ज्यादा समय से खाली पडे़ हैं लेकिन किसी भी पत्रकार के भू-खण्ड की लीज को निरस्त नहीं किया गया।

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