सूचना विभाग का आदर्श वाक्य: कानून तो बनाये ही जाते हैं तोड़ने के लिये

डायरी में ऐसे तमाम लोगों को स्वतंत्र और वरिष्ठ पत्रकारों के तौर पर मान्यता मिली हुई है जिनका कागज और कलम से नाता बरसों पहले छूट चुका है। मान्यता के नवीनीकरण के लिये नये पुराने माल को गुमनाम पत्र-पत्रिकाओं में छपवाकर कागजी खानापूर्ति कर दी जाती है। लेकिन असल में पत्रकारिता से इनका कोई वास्ता नहीं है। लेकिन सरकारी मकान, रेलवे में छूट, मुफ्त इलाज, सामाजिक प्रतिष्ठा, सचिवालय में घूमने-फिरने की मौज, सरकारी डायरी में नाम जैसी तमाम सुविधाएं सामने देखकर खुद को पत्रकारिता का गौरव और स्तंभ कहलवाने वाले वरिष्ठ पत्रकार छोटी और टुच्ची हरकतें करने से बाज नहीं आते हैं। जब वरिष्ठ साथी ही ओछी और टुच्ची हरकतों पर उतारू हों तो नये नवेले साथियों को क्या दोष दिया जाए। इन्हीं बुजुर्ग और सीनियर साथियों की कुप्रवृति और कुआचरण युवा साथी तेज से सीख व आत्मसात कर रहे हैं। ये मनुष्य स्वभाव है कि वो बुराई के प्रति अधिक आकर्षित होता है।

सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार जनवरी से 15 अप्रेल तक गुपचुप तरीके से यूपी के प्रमुख सचिव सूचना ने अपने मुंहलगे, लगभग 30 से 50 ऐसे पत्रकारों की मान्यता की है जिनका पत्रकारिता से नाता कम और अन्य कामों से नाता ज्यादा है

पत्रकारिता के सिद्धांतों, आदर्शों, नियमों और परिपाटियों पर भले ही लंबे चौड़े व्याख्यान और नसीहतें दी जाएं लेकिन जमीनी सच्चाई यह है कि देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ के तथाकथित प्रतिष्ठित और दिग्गज पत्रकार नेताओं और आईएएस अफसरों की चमचागिरी को ही अपना पत्रकारीय धर्म मानते और समझते हैं। चंद ईमानदार, निष्पक्ष और जनसरोकार की पत्रकारिता करने वाले पत्रकार साइड-लाइन किये जा चुके हैं और बाकी बचे-कुचों को साइड-लाइन करने की तैयारी है। कहने को लखनऊ के मूर्धन्य पत्रकार भले ही लंबी-चौड़ी डींगे हांके लेकिन नेताओं और आईएएस अफसरों के इशारे पर सर्कस के बंदर की तरह नाचते, कूदते और फांदते दिखाई देते हैं।

सारा खेल एनेक्सी और सूचना विभाग से संचालित होता है। एनेक्सी और सूचना विभाग की गणेश परिक्रमा और यहां बैठे भ्रष्ट, लंपट और सत्ता के दलाल अफसरों की चरण वंदना पूरी किये बिना किसी भी पत्रकार को सचिवालय प्रवेश पत्र, मान्यता, सरकारी मकान और तमाम दूसरी सुविधाओं का लाभ नहीं मिल सकता है। प्रदेश में पत्रकारों की मान्यता, सचिवालय प्रवेश पत्र और तमाम दूसरी सुविधाओं के लिये नियमावली व कानूनी प्रावधान है। लेकिन सारे कानून और नियमों को ठेंगे पर रखकर अफसर मनमाने तरीके से अपने चेहते, मुंहलगे और सत्ता के करीबी दलाल टाइप पत्रकारों को लाभ पहुंचाने में परहेज नहीं करते हैं।

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असल में पत्रकारों की मान्यता का मसला हो या फिर सचिवालय प्रवेश पत्र या विधानसभा की कार्रवाई में प्रवेश पत्र हर कदम पर अफसरों की मनमानी साफ तौर पर दिखाई देती है। कानून तो बनाये ही तोड़ने के लिये जाते हैं ये सूचना विभाग का मानो आदर्श वाक्य बन चुका है। ऐसे में सूचना विभाग में प्रमुख सचिव से लेकर चपरासी तक मनमाफिक तरीके से कानून और नियमों को समझता, लिखता और परिभाषित करता है। लेकिन नीचे से ऊपर तक एक समानता यह है कि बिना लिये-दिये सूचना विभाग की किसी भी मेज से छोटे से छोटा और बड़े से बड़ा काम आगे नहीं सरकता है।

सूचना विभाग के भ्रष्ट, लंपट और दलाल अफसरों और कर्मचारियों के सहयोगी हैं लखनऊ के दल्ले टाइप पत्रकार। सूचना विभाग से लेकर एनेक्सी तक इन्हीं दलाल टाइप पत्रकारों का कब्जा है। चूंकि ये किसी पत्र, पत्रिका या मीडिया संस्थान से जुड़े नहीं है ऐसे में उनको खबर लिखने, खबर भेजने, आफिस जाने की कोई फिक्र नहीं है। सचिवालय पास व मान्यता के दम पर दिन भर एनेक्सी भवन से लेकर सचिवालय की विभिन्न भवनों में दलाल पत्रकार घूमते-फिरते और दलाली करते आसानी से दिख जाएंगे। ट्रांसफर से लेकर नौकरी लगवाने तक तमाम काम इन पत्रकारों के पास हैं और ये प्रदेश के विभिन्न जिलों से आये भोले-भाले लोगों को ठगने का काम करते हैं। सूचना विभाग की डायरी इस बात की तस्दीक करती है।

डायरी में ऐसे तमाम लोगों को स्वतंत्र और वरिष्ठ पत्रकारों के तौर पर मान्यता मिली हुई है जिनका कागज और कलम से नाता बरसों पहले छूट चुका है। मान्यता के नवीनीकरण के लिये नये पुराने माल को गुमनाम पत्र-पत्रिकाओं में छपवाकर कागजी खानापूर्ति कर दी जाती है। लेकिन असल में पत्रकारिता से इनका कोई वास्ता नहीं है। लेकिन सरकारी मकान, रेलवे में छूट, मुफ्त इलाज, सामाजिक प्रतिष्ठा, सचिवालय में घूमने-फिरने की मौज, सरकारी डायरी में नाम जैसी तमाम सुविधाएं सामने देखकर खुद को पत्रकारिता का गौरव और स्तंभ कहलवाने वाले वरिष्ठ पत्रकार छोटी और टुच्ची हरकतें करने से बाज नहीं आते हैं। जब वरिष्ठ साथी ही ओछी और टुच्ची हरकतों पर उतारू हों तो नये नवेले साथियों को क्या दोष दिया जाए। इन्हीं बुजुर्ग और सीनियर साथियों की कुप्रवृति और कुआचरण युवा साथी तेज से सीख व आत्मसात कर रहे हैं। ये मनुष्य स्वभाव है कि वो बुराई के प्रति अधिक आकर्षित होता है।

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सूचना विभाग में अधिकतर कार्यालयों में आपको इन्हीं ठग, लंपट और दलाल पत्रकारों का जमावड़ा मिलेगा। ये किसी न किसी अधिकारी के घेरे बैठे रहते हैं। इनमें से अधिकतर दो से चार तक दैनिक, साप्ताहिक, मासिक पत्र पत्रिका के मालिक, संपादक और प्रकाशक हैं। फाइल कॉपी छपवाकर ये सूचना विभाग से मोटा विज्ञापन बटोरते हैं और इनके इस काम में सूचना विभाग के बाबू से लेकर आला अधिकारी तक सब शामिल हैं।

सचिवालय प्रवेश पत्र की लिस्ट से आपको पता चल जाएगा कि लखनऊ में कैसे-कैसे पत्रकारों और मीडिया संस्थानों के प्रतिनिधियों को प्रवेश पत्र जारी किया गया है। सचिवालय प्रवेश पत्र पत्रावली की जांच कराई जाए तो आधे से ज्यादा फर्जी और पत्रकारिता के नाम पर दलाली की दुकान चलाने वाले लोग मिलेंगे। लेकिन ऐसा होता इसलिए नहीं है क्योंकि इस गोरखधंघे में सूचना विभाग के भ्रष्ट अधिकारी और कर्मचारी शामिल हैं। लखनऊ में पनवाड़ी से लेकर साइकिल स्टैण्ड चलाने वाले को भी मान्यता मिली हुई है। सूचना विभाग की डायरी में आपको ऐसी पत्र-पत्रिकाओं और संस्थानों का नाम पढ़ने को मिलेंगे जिन्हे आप अपनी जिंदगी में शायद पहली बार ही पढेंगे।

लखनऊ राज्य मुख्यालय पर ऐसी पत्र-पत्रिकाओं के प्रतिनिधियों को मान्यता मिली हुई जो पत्र और पत्रिकाएं प्रिटिंग प्रेस से छपकर सीधे सूचना विभाग की फाइल में लग जाती हैं, बाजार, बुकस्टाल, न्यूज पेपर स्टैण्ड और आम आदमी से उसका कोई वास्ता ही नहीं होता है। सूचना विभाग की वेबसाइट पर उपलब्ध लिस्ट के अनुसार राज्य मुख्यालय पर 950 पत्रकारों को मान्यता प्राप्त है। यह लिस्ट 31 मार्च  2024 तक अपडेट है। सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार जनवरी से 15 अप्रेल तक गुपचुप तरीके से यूपी के प्रमुख सचिव सूचना ने अपने मुंहलगे, लगभग 30 से 50 ऐसे पत्रकारों की मान्यता की है जिनका पत्रकारिता से नाता काम और अन्य कामों से नाता ज्यादा है ।

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लखनऊ में पिछले दो दशकों से सत्ता की उलट-पुलट और क्षेत्रीय दलों के प्रभाव के चलते पत्रकारों के चरित्र में बदलाव आया है। क्षेत्रीय दलों ने पत्रकारों में पैठ बनाने के लिये प्रलोभन, छूट और खाने-कमाने के जरिये बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। धूर्त, भ्रष्ट और चालाक पत्रकारों ने भी सत्ता सुख भोगने और संपत्ति जोड़ने में कोई कसर बाकी नहीं छोड़ी। आज लखनऊ में इक्का दुक्का पत्रकारों को छोड़कर अधिकतर पत्रकारों के पास गोमती नगर में करोड़ों की प्रापर्टी है। नये नवेले पत्रकारों को नैतिकता का पाठ पढ़ाने वाले सीनियर खुद भ्रष्टाचार के दलदल में गले तक धंसे है अगर नये नवेलों का पता चल जाए तो इनके पांव छून की बजाय इनको गरियाने का काम करेंगे।

नेताओं और आईएएस अफसरों के इर्द-गिर्द लखनऊ के मठाधीश और दलाल टाइप पत्रकारों की पत्रकारिता चलती है। पिछले एक दशक में लखनऊ के किसी पत्रकार ने राष्ट्रीय स्तर की खबर ब्रेक की हो, मुझे याद नहीं आता है। जब सारा दिन राजनीतिक दलों के कार्यालयों में चाय पीने, नेताओं की चमचागिरी करने, ट्रांसफर, पोस्टिंग करने में बीतेगा तो खबर ब्रेक क्या कद्दू ब्रेक करेंगे।

एक पत्रकार द्वारा भेजे गए पत्र पर आधारित।

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