ज्ञानेंद्र शुक्ला ने X पर लिखा पत्रकार साथियों के नाम खुला पत्र, वहीं चुनाव की सरगर्मियों को लेकर मनोज मिश्रा ने पत्रकारों से किया अपील

कमेटी पर निरंतर निर्बाध काबिज रह सकें इसलिए अपने रसूख और तत्कालीन सत्ताओं में पकड़ का फायदा उठाकर कुछ ऐसे लोगों को मान्यता दिलवा दी जिनका पत्रकारिता से लेना देना ही नहीं था। इससे हासिल हुए संख्याबल के जुगाड़ से ये चुनाव जीतने लगे। सत्ताशीर्षों के सामने ये खुद को सभी पत्रकारों के रहनुमा के तौर पर पेश करते थे तो पत्रकारों के हित के लिए कोई भी नीति बनाने के लिए सत्ताधीश भी इन्हीं से संवाद करने लगे।

ज्ञानेंद्र शुक्ला

ये पत्र उत्तर प्रदेश राज्य मुख्यालय मान्यता प्राप्त पत्रकार संघ के चुनाव के सिलसिले में पत्रकार बिरादरी को संबोधित करके लिख रहा हूं:
दरअसल, यूपी की राजधानी में बड़ी संख्या में सरकार द्वारा मान्यता प्राप्त पत्रकार कार्यरत हैं। कुछ दशक पूर्व जब कई पार्टियों की प्रेस कांफ्रेस एक साथ हो जाती थी तब पत्रकारों के सामने असमंजस की स्थिति पेश आती थी। इस समस्या के समाधान के लिए तत्कालीन वरिष्ठ पत्रकारों ने आपसी सहमति से एक कमेटी बनाई थी जिसका कार्य था सभी दलों के साथ तालमेल रखना जिससे प्रेस कांफ्रेस एक साथ न होने पाए और पत्रकारों को अड़चन न हो। वैसे तो सब सुचारू तरीके से चलता रहा लेकिन वक्त के साथ साथ कुछ तत्वों ने निहित स्वार्थ में कमेटी की शक्तियों का इस्तेमाल अपनी निजी महत्वाकांक्षाओं की पूर्ति में करने लगे। कमेटी पर निरंतर निर्बाध काबिज रह सकें इसलिए अपने रसूख और तत्कालीन सत्ताओं में पकड़ का फायदा उठाकर कुछ ऐसे लोगों को मान्यता दिलवा दी जिनका पत्रकारिता से लेना देना ही नहीं था। इससे हासिल हुए संख्याबल के जुगाड़ से ये चुनाव जीतने लगे। सत्ताशीर्षों के सामने ये खुद को सभी पत्रकारों के रहनुमा के तौर पर पेश करते थे तो पत्रकारों के हित के लिए कोई भी नीति बनाने के लिए सत्ताधीश भी इन्हीं से संवाद करने लगे। चूंकि पत्रकारों की एक बड़ी जमात या तो जिस संस्थान में कार्यरत है उसके लिए दिनरात खबर जुटाने में लगे रहते हैं या फिर अपने लघु अखबार और मैगजीन को संचालित करने की जद्दोजेहद में लगे रहते हैं। कमेटी के उच्च पदाधिकारी अपने निहित लाभ में इस कदर लिप्त हुए कि बाकी पत्रकारों की जायज जरूरतों की ओर ध्यान देने की इन्हें कभी फुर्सत ही नहीं रही, ये बात आम पत्रकारो को अखरने लगी, इनकी ओर से विरोध के सुर उठने लगे। ऐसे ही विरोध के कुछ सुर जब एकाकार हुए तब तमाम साथियो के तीव्र आग्रह पर साल 2021 में हुए पत्रकारों के चुनावी मुकाबले में मैंने भी इन तत्वों के खिलाफ एकदम आखिरी मौके पर ताल ठोंक दी। कई वर्षों से कमेटी शीर्ष पर विराजे शख्स के खिलाफ मैं मैदान में था तो यूपी से लेकर देश के तमाम हिस्सों कई दर्जन अखबारों के मालिक एक अति धनाड्य शख्स भी चुनाव मैदान में था। धन के बूते पर लोगों को उपकृत करने का चुनावी खेल इस कदर खेला जा रहा था कि मेरे हितैषी तमाम वरिष्ठ पत्रकार मानने लगे थे कि मैं विगत वर्षों में चुनाव में उतरे बाकी पत्रकारों के मानिंद पचास वोटों के इर्दगिर्द सिमट जाउंगा, पर बेहद कम अवधि में हुए चुनाव प्रचार के दौरान सबसे निजी संपर्क न कर पाने, क्षुद्र चुनावी हथकंडों की काट न कर पाने की विवशता के बावजूद मैं दो सौ करीब वोटों के आंकडे तक पहुंचकर रनर बन गया, धनबल के जरिए चुनावी मैदान उतारे प्रत्याशी को पत्रकारों ने तीसरे पायदान पर पहुंचा दिया। चूंकि मैं बेहद आम पत्रकार हूं तो एकबारगी चुनावी प्रक्रिया खत्म हुई मैं पुन: पत्रकारिता-परिवार-समाज के प्रति अपने कर्तव्यों को पूरा करने में जुट गया। पर चुनाव लड़ना ही जिनका पेशा है वो लगातार इसी मिशन में सक्रिय हो गए। अब एकबारगी फिर से चुनावी प्रक्रिया शुरु हुई है, आम पत्रकारो की इच्छा के विरुद्ध कतिपय जनों के अहं की वजह से दो गुटों में चुनाव प्रक्रिया हो रही थी पर कुछ वरिष्ठों के आशीर्वाद व युवा साथियों की उर्जा के मेलजोल से खांचेबाजी की इस शर्मनाक प्रक्रिया का अंत हुआ और कमेटी का एकजुट चुनाव होना तय हुआ है। चूंकि मेरे जैसे सैकड़ों पत्रकार साथी हैं जिनके लिए किसी चुनावी गुणागणित के बजाए अपने काम को तरजीह देना और पत्रकारीय गरिमा की बहाली कराना सर्वोच्च प्राथमिकता है।
ये मेरी ही नहीं बल्कि बड़ी तादाद में कार्यकारी पत्रकारों की भावना है कि अगर कमेटी के शीर्ष पर वर्षों से काबिज तत्व हटें तो उनकी जगह सिर्फ और सिर्फ पत्रकारिता को समर्पित रहे आम पत्रकार आएं, देश के कोने-कोने तक अपना कारोबार फैलाए किसी धंधेबाज, धनपशु का काबिज होना भी मौजूदा दुर्दशा सरीखा ही दुर्भाग्यपूर्ण होगा। लघु अखबार और पत्रिकाओं के प्रकाशन के जरिए अपने परिवार और पत्रकारिता के अस्तित्व को बचाए रखने में जुटे तमाम साथियों ने मुझसे अपनी भावना साझा करते हुए दो टूक कहा कि जो लोग खुद कारोबारी है उनकी प्राथमिकता स्वजन हिताय-स्वजन सुखाए से इतर कभी नहीं हो सकेगी। ऐसे लोगों का अँशमात्र समर्थन न पहले कभी किया न भविष्य में कभी करूंगा। पत्रकारिता-पत्रकार-समाज के लिए मेरा जुड़ाव-लगाव-समपर्ण किसी चुनाव का न पहले कभी मोहताज था न है न भविष्य में रहेगा।
इस मुद्दे पर विस्तृत ब्यौरे के साथ चर्चा आगे भी जारी रहेगी।

शुभकामनाएँ ज्ञानेंद्र भाई
Gyanendra Shukla
@gyanu999

वहीं चुनाव की सरगर्मियां अलग अलग रुझान देने लगीं हैं…देखिए मनोज मिश्र का पोस्ट

प्रिय साथियों

नमस्कार

प्रयागराज के ग्रामीण इलाके के एक छोटे से गांव से निकलकर बेहद साधारण परिवार का एक साधारण सा नवयुवक जब पत्रकारिता क्षेत्र में आता है तो वो विभिन्न तरह की आशंकाओं से घिरा रहता है ये मुश्किल तब और बड़ी हो जाती है जब उसके घर परिवार व जान पहचान का कोई भी व्यक्ति उस प्रोफेशन में नही होता है जो उसे दिशा दे सके या मदद कर सके लेकिन मन दृढ़ इच्छाशक्ति से भरा था की कुछ करना है जिससे मैं समाज की आवाज बन सकूं. निरंतर कोशिश पिछले 27 सालों से जारी है…और जीवन की आखिरी सांस तक जारी रहेगी…ये सच है की मां पिता व आप भाइयों के आशीर्वाद से आज पत्रकारिता के क्षेत्र में कई अखबारों का संचालन प्रदेश एवं देश भर के कई राज्यों से हो रहा है मेरे जैसे सामान्य ब्यक्ति की इससे बड़ी उपलब्धि और क्या हो सकती है सैकड़ो पत्रकार साथियो के सहयोग से समूह प्रकाशन नित नयी ऊचाईयों की ओर बढ़ रहा है ये मेरे लिए गर्व का विषय है एक तरफ जहाँ मंदी आयी समाचारपत्रों पर GST,लागू हुई , कोविड जैसी विश्वस्तरीय महामारी के बाद भी निरंतर प्रकाशन,एक भी साथी को छोड़कर नहीं जाना मेरे लिए गर्व का विषय (यदि मेरी इस उपलब्धि से किसी को आंतरिक चोट पहुंचती हो तो मुझे क्षमा कर दें ) पत्रकारिता की लौ सुलगी थी वो निरंतर जारी रहेगी…जब भी मुझे लगा की प्रदेश के किसी कोने में बैठा कोई पत्रकार साथी मुसीबत में है या उसे किसी भी तरह की जरूरत है तो उसकी लड़ाई मैने लड़ी है हां ये अलग बात है की मैने कभी इसका ढिंढोरा सोशल मीडिया पर नहीं पीटा.

उत्तर प्रदेश राज्य मुख्यालय मान्यता प्राप्त पत्रकारों का चुनाव है आप सभी शुभचिंतकों के सपोर्ट से मैं भी मैदान में हूं पिछली बार भी अध्यक्ष पद के चुनाव में मैं प्रत्याशी था और आप लोगों ने मुझे बहुत सपोर्ट किया लगभग 180 वोट मिले 8 वोट इनवैलिड थे और इतने ही वोट से मैं तीसरे स्थान पर रहा.

लेकिन मैं चुनाव हारने के बाद भी उसी ऊर्जा के साथ आपके बीच बना रहा. चुनाव एक हो इसके लिए कई साथियो के साथ दोनों जगह नामांकन किया अंततः सभी एक चुनाव पर राजी हुए साथियो द्वारा एकता की मुहीम सफल हुई.

आप सभी से विचार विमर्श के बाद मैं फिर चुनाव मैदान में हूं आपसे निवेदन कर रहा हूं की मुझे अपना बहुमूल्य मत प्रदान करे जिससे कई वर्षो से एक ही सिस्टम से चल रहे काकस को मैं तोड़ सकूं. चुनाव है आरोप प्रत्यारोप आपको आगे भी देखने सुनने को मिलेंगे मेरे खिलाफ यही दुष्प्रचार किया जाता समाचार पत्रों के समूह का संचालन जो मेरे लिए सेवाभाव से जुड़े सैकड़ो साथियो समेत अपने परिवार के चलाने का माध्यम और मिशन है जो जारी रहेगा.

पुनः आप साथियो से अनुरोध है राज्यस्तर की मान्यता प्राप्त साथी ही वोटर है समिति की मर्यादा विगत कई वर्षो धूमिल हुई है साथ ही अन्य राज्यों में समानानंतर पत्रकार साथियों को मिलने वाली मेडिकल , पेंशन, आवास जैसी नितांत आवश्यक सुविधाएं बेहतर हो इसके लिए सरकार और शासन से बेहतर तालमेल बनाकर करवाना मेरी प्राथमिकता होगी.

*23 माह के उपरांत समय पर चुनाव हो…..

अध्यक्ष पद और समिति की गरिमा और विश्वस्नीयता के लिए एक बार अवसर दें

मनोज कुमार मिश्रा

प्रत्याशी अध्यक्ष पद

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